मणिपुर हिंसा: बीरेन सिंह सरकार पर मंडराया अविश्वास प्रस्ताव का खतरा, अब नहीं कोई चारा!
Biren Singh government: मणिपुर सरकार कथित तौर पर विधानसभा सत्र बुलाने से बच रही है. क्योंकि भाजपा के 19 मैतेई विधायकों ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है.;
Manipur violence: हिंसा ग्रस्त मणिपुर में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटाए जाने के खतरे का सामना कर रही है. क्योंकि बढ़ते असंतोष के बीच उनको फरवरी तक विधानसभा सत्र बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. सरकार कथित तौर पर सत्र बुलाने से बच रही है. क्योंकि भाजपा के 19 मैतेई विधायकों ने विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया है, जिससे सरकार अल्पमत में आ गई है. सरकार के करीबी सूत्रों ने बताया कि बीरेन सिंह के पास अब केवल 15 विधायकों का समर्थन है. जिनमें भाजपा के 8, नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के 5, जेडी(यू) का एक और एक निर्दलीय शामिल हैं.
अल्पमत में सरकार
60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में, 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के पास 32 विधायक थे. बाद में, जेडी(यू) के पांच विधायक भगवा पार्टी में शामिल हो गए. सरकार को नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के सात और एनपीएफ के पांच विधायकों का भी समर्थन प्राप्त था. पिछले साल अक्टूबर में समीकरण बदल गया. जब 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बदलने की मांग करते हुए एक पत्र लिखा (जैसा कि द फेडरल ने रिपोर्ट किया). हालांकि, बागी विधायकों ने अब तक प्रधानमंत्री को पत्र भेजने की न तो पुष्टि की है और न ही इनकार किया है. इसके बाद, एनपीपी ने भी बीरेन सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. सूत्रों ने कहा कि घटते समर्थन के कारण ही सरकार ने दिसंबर में सदन का शीतकालीन सत्र आयोजित करने की परंपरा को तोड़ दिया.
पिछले साल केवल दो बैठक
मणिपुर विधानसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम एक वर्ष में तीन बैठकों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं. परंपरागत रूप से बजट सत्र फरवरी में, शरद सत्र जुलाई-अगस्त में और शीतकालीन सत्र दिसंबर में आयोजित किया जाता है. हालांकि, पिछले साल विधानसभा की सिर्फ़ दो बैठक हुई थीं- 28 फरवरी से 5 दिन और 31 जुलाई से 9 दिन. हालांकि, भारत का संविधान एक साल में होने वाले सत्रों की संख्या के बारे में चुप है. संविधान के अनुच्छेद 174 में सिर्फ़ इतना कहा गया है कि दो बैठकों के बीच का अंतर छह महीने से ज़्यादा नहीं हो सकता है. इसका मतलब है कि मणिपुर विधानसभा को बुलाने की अधिसूचना 28 जनवरी के आसपास जारी करनी होगी. क्योंकि सदन को बुलाने के लिए कम से कम 15 दिन का नोटिस देना होता है. अगर मणिपुर सरकार 12 अगस्त को अपनी आखिरी बैठक के छह महीने के भीतर सत्र बुलाने में विफल रहती है तो विधानसभा निलंबित हो जाएगी.
कोई रास्ता नहीं बचा
इसके अलावा, फरवरी का सत्र बजट सत्र होगा. इसलिए, सरकार के वित्तीय लेन-देन को जारी रखने के लिए विधानसभा द्वारा लेखानुदान पारित किया जाना चाहिए. अब जब बीरेन सिंह सरकार के पास विधानसभा सत्र को और आगे बढ़ाने का कोई विकल्प नहीं बचा है तो भाजपा के भीतर एक तीव्र राजनीतिक लॉबिंग शुरू हो गई है. बीरेन सिंह और उनके वफादार कथित तौर पर असंतुष्टों का समर्थन जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. कथित तौर पर एनपीपी को विभाजित करने की भी कोशिश की जा रही है, ताकि उसके सात विधायक पार्टी के फैसले के खिलाफ जाकर सरकार का समर्थन करें.
स्पीकर असंतुष्टों का कर रहे हैं नेतृत्व
इस बीच, मणिपुर भाजपा के सूत्रों ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम सत्यब्रत सिंह ने पिछले एक महीने में दो बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. हालांकि, बार-बार प्रयास करने के बावजूद स्पीकर से संपर्क नहीं हो सका. सूत्रों ने कहा कि सत्यब्रत सिंह असंतुष्ट समूह का नेतृत्व कर रहे हैं. संयोग से, भाजपा सूत्रों ने दावा किया कि शाह ने सत्यव्रत सिंह से मुलाकात की. लेकिन उन्होंने बीरेन सिंह से मुलाकात नहीं की. जब सिंह ने पिछले महीने अगरतला में उत्तर पूर्व परिषद की पूर्ण बैठक के दौरान गृह मंत्री से वन-टू-वन मुलाकात के लिए समय मांगा था. मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों ने भी इसकी पुष्टि की.
कांग्रेस नेताओं ने की राज्यपाल से मुलाकात
इस बीच, राज्य कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को नए राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात की और उन्हें संवैधानिक संकट से बचने के लिए विधानसभा सत्र बुलाने की जरूरत से अवगत कराया. मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह, राज्य कांग्रेस प्रमुख के मेघचंद्र और लोकसभा सदस्य अंगोमचा बिमोल अकोईजाम ने राज्यपाल से मुलाकात की. उन्होंने राज्यपाल से आगे कहा कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि अगली बार सदन की बैठक में कुकी विधायकों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाए. मई 2023 में राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से कुकी विधायक सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सत्र में शामिल नहीं हुए हैं.
मेघचंद्र ने द फेडरल को बताया कि यह अब एक खुला रहस्य है कि भाजपा विधायक दल में सब कुछ ठीक नहीं है. कई भाजपा विधायकों और यहां तक कि मंत्रियों ने भी मौजूदा संकट को कम करने में विफलता के लिए खुले तौर पर मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया है. परंपरागत रूप से, अगर मंत्रिपरिषद का एक मंत्री भी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाता है तो यह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव शुरू करने का आधार हो सकता है. इस संभावना के डर से, सरकार विधानसभा सत्र में देरी कर सकती है. अतीत में, बीरेन सिंह पार्टी के भीतर ऐसे कई विद्रोहों को दबाने में कामयाब रहे हैं. यह देखना होगा कि क्या वह फिर से ऐसा कर पाते हैं.