बात सिर्फ 17 साल पुरानी जब बुलंदी पर थीं मायावती, अब राह में अड़चन अधिक

यूपी की सियासत में बीएसपी की कभी तूती बोलती थी। लेकिन बदलते समय के साथ अब चुनौती राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-27 03:58 GMT

Mayawati Political Journey:  बात सिर्फ 17 साल पुरानी है, साल 2007 का था। यूपी की राजनीति में बीएसपी सुप्रीमो मायवती तिलक, तराजू और तलवार को गले लगा चुकी थीं। यानी कि बहुजन से सर्वजन की तरफ बढ़ चुकी थीं। उसका फायदा उन्हें इस तरह से मिला कि बिना बैसाखी वो सरकार बनाने में कामंयाब हुईं। सरकार भी पूरे पांच साल चली। लेकिन 2012 के बाद बीएसपी का तेज धीरे धीरे कमजोर पड़ने लगा। ऐसे में मायावती को लगने लगा कि सर्वजन से मिला फायदा क्षणिक था। लिहाजा वो जिस तिलक, तराजू और तलवार को गले लगाई थीं उससे धीरे धीरे तौबा कर लिया और नतीजा सबके सामने है कि बीएसपी के सामने राज्य स्तरीय दर्जा बचाए रखने की चुनौती है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मायावती को एससी-एसटी कोटे वाले मुद्दे से संघर्ष करने के लिए आक्सीजन मिल चुका है। हालांकि उनकी राह इतनी आसान नजर नहीं आ रही है। 

बदलाव लेकिन चुनौती कम नहीं
बीएसपी पहले हाईटेक पार्टी नहीं थी। लेकिन अब कलेवर बदल गया है। मायावती पहले शायद ही ट्वीट किया करती थीं। लेकिन अब वो हर एक दिन ट्वीट करती हैं। मायावती पहले बीजेपी पर जमकर निशाना साधती थीं। लेकिन उसमें कमी आई है। उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव रहा करते थे, ऐसा नहीं कि अब वो निशाने पर नहीं हैं। लेकिन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कुछ ज्यादा हैं। अब सवाल यही है कि जो कांग्रेस यूपी में आम चुनाव में सिर्फ 6 सीट पाई है उससे मायावती को डर क्यों लगता है। समाजवादी पार्टी जिसके खाते में 37 सीट गई है डर उससे भी कम लगता है लेकिन थोड़ा कम। इसे समझने से पहले मायावती के बारे में एक खास बात जानिए जिसके बाद आपको समझ में आएगा कि कांग्रेस से उनको क्यों अधिक खतरा है।

बादलपुर से नाता
दिल्ली- अलीगढ़ हाईवे पर दादरी से कुछ किमी पहले एक गांव है बादलपुर। बीएसपी सुप्रीमो मायावती का नाता इस गांव से है। उस गांव में मायावती के पुश्तैनी मकान में रहने वाले एक शख्स से मुलाकात हुई। सवाल यही था कि चंद्रशेखर रावण कितना नुकसान पहुंचाएंगे। इस सवाल के जवाब में उस शख्स ने कहा था कि बहन जी को नगीना वाली सीट छोड़ देनी चाहिए थी। चंद्रशेखर भी अपने ही समाज का लड़का है। उसे मौका देना चाहिए। इस जवाब पर सवाल था कि मायावती ही तो जादव समाज का चेहरा रही हैं और सियासत में जब कोई खिलाफ होकर ताल ठोंकता है तो वो अपना कहां रह जाता। इस सवाल के जवाब में उस शख्स ने कहा कि आपने खुद देखा होगा कि वो एक्टिव कहां है। लेकिन 26 अगस्त को मायावती ने कहा कि राजनीति से संन्यास लेने का सवाल ही नहीं पैदा होता। इस बयान के जरिए वो आखिर किसे संदेश दे रही हैं उसे भी समझना जरूरी है।
2024 में बीएसपी की हाथी हुई बेदम
आम चुनाव 2024 के नतीजों में यूपी से बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया था। सीट तो मिली नहीं उनके कोर वोट बैंक यानी जाटव समाज में सेंध लग गई है। आम चुनाव 2024 से पहले 2022 विधानसभा चुनाव को देखें तो बीएसपी के एकमात्र नेता उमाशंकर सिंह बलिया की रसड़ा सीट को जीतने में कामयाब रहे। लेकिन वो जीत बीएसपी से अधिक उनकी खुद की थी। अगर आप बीएसपी के इतिहास को देखें तो बहुजन के बाद जब सर्वजन का नारा अपनाया तो यूपी की गद्दी पर मायावती अपने दम पर काबिज हो गईं। लेकिन जब सर्वजन से वो पीछे हटीं तो पार्टी का हश्र क्या हुआ सबके सामने है। हाल ही में जब एससी-एसटी कोटे में कोटे और क्रीमीलेयर निर्धारित करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया तो निर्णय पर सबसे पहले ऐतराज मायावती की तरफ से आया। उन्होंने लगे हाथ सवाल किया कि इस मुद्दे पर कांग्रेस और सपा का क्या रुख है। इन दोनों दलों के नेता इस विषय पर खुलकर क्यों नहीं बोलते।
खतरा इनसे है
अब जब राहुल गांधी ने मिस इंडिया में आरक्षण का मुद्दा उठाया तो मायावती ने कहा कि राहुल गांधी किस मुंह से इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं। आखिर इनकी पार्टी ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम के साथ क्या किया। सबको पता है। अब यहीं से मायावती के कांग्रेस पर आक्रामक होने का जवाब मिलता है। आमतौर पर दलित समाज कांग्रेस का हिस्सा रहा। लेकिन 1984 के बाद जब बीएसपी आंदोलन जोर पकड़ने लगा तो यूपी की सत्ता से कांग्रेस की विदाई हो गई। विदाई भी ऐसी कि पिछले 40 साल से यूपी की गद्दी पर कांग्रेस काबिज नहीं हो सकी। लेकिन अब कांग्रेस को आम चुनाव 2024 से उम्मीद जगी है।
ये बात सच है कि कांग्रेस के खाते में महज 6 सीटें आई हैं लेकिन एक सच यह भी है कि कांग्रेस, मायावती के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही है। राहुल गांधी का संविधान-आरक्षण बचाओ का दांव काम कर गया। ऐसे में कांग्रेस के उभार का मतलब बीएसपी का नुकसान है. जहां तक समाजवादी पार्टी की बात तो उसे गैर जाटव के वोट मिले और यह तबका ऐसा रहा है कि जो स्विंग की तरह काम करता रहा है। उदाहरण के लिए गैर जाटव समाज ने बीजेपी के पक्ष में 2019 और 2022 में मतदान किया था. हालांकि इस दफा दूरी बना ली। ऐसे में आप के लिए समझना आसान होगा कि मायावती के लिए अखिलेश यादव से अधिक खतरा राहुल गांधी क्यों बने हुए हैं।
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