दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का ट्रायल पूरा, कृत्रिम बारिश का इंतजार जारी

उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के ऊपर किया गया पहला प्रयोग सफल न होने की आशंका; नमी कम होने के कारण बारिश शाम 5 बजे से पहले संभव नहीं.

Update: 2025-10-28 10:02 GMT

Cloud Seeding : दिल्ली में प्रदूषण से राहत दिलाने के उद्देश्य से की जा रही क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) की प्रक्रिया का दूसरा ट्रायल मंगलवार को पूरा कर लिया गया। जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के कानपुर से उड़ान भरने वाला विमान अब अपने बेस पर लौट गया है। इस बीच, दिल्ली अब उस कृत्रिम बारिश का इंतजार कर रही है जो शायद जहरीली धुंध से कुछ राहत दिला सके।


नमी कम, बारिश की संभावना फिलहाल कमजोर

सूत्रों के अनुसार इस समय दिल्ली के ऊपर मौजूद बादलों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में बारिश की संभावना बेहद कम होती है। हालांकि, अगर मौसम ने साथ दिया और पहला प्रयास असफल रहा, तो दूसरी उड़ान कानपुर से फिर रवाना की जा सकती है।



IIT कानपुर के साथ करार

दिल्ली सरकार ने सितंबर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत पांच क्लाउड सीडिंग ट्रायल करने की योजना है, जिनकी कुल लागत ₹3.21 करोड़ रखी गई है।

ये सभी ट्रायल 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली में किए जाने हैं।


क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग यानी बादलों में रासायनिक तत्व मिलाकर कृत्रिम रूप से बारिश कराने की प्रक्रिया। इसमें सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स, आयोडाइज्ड नमक और ड्राई आइस (सूखी बर्फ) जैसी सामग्री को बादलों में रोपा जाता है, ताकि वे पानी की बूंदों में बदलकर बरस सकें। यह तकनीक वायुयान, रॉकेट या ज़मीन से चलने वाली मशीनों के माध्यम से की जाती है। आमतौर पर इसे जल संकट वाले इलाकों में बारिश लाने, ओलों को कम करने या कोहरा हटाने के लिए उपयोग किया जाता है।


दिल्ली को क्यों चाहिए कृत्रिम बारिश?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली लंबे समय से गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है। सालभर प्रदूषण का स्तर ऊँचा रहता है, लेकिन सर्दियों में यह समस्या चरम पर पहुंच जाती है, जब मौसम की स्थितियाँ और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने, वाहनों से निकलने वाले धुएं हवा में मिलकर को जहरीला प्रदूषण बना देते हैं।

इस बार दिवाली पर सुप्रीम कोर्ट ने “ग्रीन पटाखों” की सीमित अनुमति दी थी, लेकिन नियमों की खुलेआम अनदेखी की गई। परिणामस्वरूप, दिवाली के अगले दिन दिल्ली घने स्मोग की चादर में ढकी नजर आई।

दिल्ली सरकार के मुताबिक, फसल अवशेष जलाने के मामलों में 77.5% की कमी आई, फिर भी हालात भयावह हैं। PM2.5 का औसत स्तर 488 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सुरक्षित सीमा से लगभग 100 गुना अधिक है। यह दिवाली से पहले की तुलना में 212% की बढ़ोतरी दर्शाता है।


दिल्ली की मौजूदा स्थिति

दिवाली के एक सप्ताह बाद भी प्रदूषण के स्तर में खास गिरावट नहीं आई है। मंगलवार सुबह 8 बजे कई इलाकों में AQI 300 के पार दर्ज किया गया :

सिरी फोर्ट (350)

आरके पुरम (320)

बवाना (336)

बुराड़ी क्रॉसिंग (326)

द्वारका सेक्टर 8 (316)

मुंडका (324)

नरेला (303)

पंजाबी बाग (323)


स्वास्थ्य पर गंभीर असर

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में प्रदूषित हवा के कारण नागरिकों की औसत आयु लगभग 11.9 वर्ष तक घट रही है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार चिंताजनक है।


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