कर्नाटक कांग्रेस में तूफ़ान! दो दिग्गजों की जंग से हाईकमान संकट में
कर्नाटक कांग्रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच नेतृत्व संघर्ष तेज है। जनता में लोकप्रियता और संगठनात्मक पकड़ की इस जंग से पार्टी में गहरी उथल-पुथल है।
कर्नाटक कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर खींचतान थमती नहीं दिख रही है। पार्टी के दो सबसे बड़े नेताओं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच बढ़ता तनाव अब खुलकर सामने आ रहा है। विडंबना यह है कि दोनों ही नेता पार्टी के लिए उतने ही अनिवार्य हैं जितना उसका अस्तित्व और भविष्य।
एक तरफ सिद्धारमैया जनता में अपार लोकप्रियता रखते हैं, तो दूसरी ओर डीके शिवकुमार संगठन की रीढ़ माने जाते हैं रणनीतिक सोच और संकट प्रबंधन की कला में माहिर। कर्नाटक कांग्रेस अपने आंतरिक मतभेदों से जूझ रही है और पार्टी की दिशा तथा दुविधाएँ इन्हीं दो नेताओं से तय हो रही हैं।
सिद्धारमैया: जनता के नेता, सामाजिक न्याय का चेहरा
संगठनात्मक ताकत के लिए मशहूर डीके शिवकुमार से बिल्कुल विपरीत, सिद्धारमैया कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे बड़े जननेता हैं। छात्र राजनीति और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित उनका राजनीतिक जीवन AHINDA—अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलित समुदायों के इर्द–गिर्द केंद्रित रहा है। यही सामाजिक समूह उनकी सबसे मजबूत राजनीतिक नींव भी है।
सिद्धारमैया की ताकत संगठन से नहीं, बल्कि आम लोगों से सीधे जुड़ाव से आती है। उनकी भाषा, शैली, Welfare Politics और सामान्य जनता के मुद्दों को उठाने का तरीका उन्हें बेहद लोकप्रिय बनाता है। वह 2013 और 2023 में दो बार मुख्यमंत्री बने जो कर्नाटक की राजनीति में बहुत दुर्लभ है।
उनकी छवि कई कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी है अन्न भाग्य, क्षीर भाग्य, शादी भाग्य, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली—इन योजनाओं ने उन्हें गरीब और वंचित वर्गों के सबसे बड़े राजनैतिक प्रतिनिधि के रूप में स्थापित किया।
उनकी राजनीतिक मूल जड़ें जनता परिवार में हैं। रामकृष्ण हेगड़े और बाद में एचडी देवेगौडा के नेतृत्व में वह पिछड़ा वर्ग की आवाज बने। वित्त मंत्री, उपमुख्यमंत्री जैसे पदों तक पहुंचे। लेकिन देवेगौडा से मतभेदों के कारण 2005 में उन्होंने जनता दल छोड़ दिया। इसके बाद उनका कांग्रेस में प्रवेश एक ऐतिहासिक रैली के साथ हुआ, जिसने पार्टी के सामाजिक आधार को नई ऊर्जा दी।
डीके शिवकुमार: संगठन के शिल्पकार और कांग्रेस के ‘क्राइसेस मैनेजर’
दूसरी ओर, डीके शिवकुमार—जिन्हें लोकप्रिय रूप से DKS कहा जाता है—कांग्रेस के ‘रॉक’ माने जाते हैं। एक ऐसे नेता, जो मुश्किल हालातों में भी पार्टी को बचाकर रखते हैं। कर्नाटक ही नहीं, देशभर के कई राजनीतिक संकटों में उन्होंने अपनी क्षमता दिखाई है।
1980 के दशक में छात्र नेता के रूप में उनकी पहचान बनी और तब के मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कराया। 1985 में पहली विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद 1987 में जिला पंचायत चुनाव जीतकर उन्होंने जोरदार वापसी की। 27 साल की उम्र में 1989 में वह पहली बार विधायक बने। तब से अब तक उन्होंने 10 में से 8 चुनाव जीते—1999 में एचडी कुमारस्वामी और 2023 में आर. अशोक जैसे दिग्गजों को हराया।
कांग्रेस के संकटमोचक
45 सालों से वह पार्टी के सबसे भरोसेमंद Troubleshooter रहे हैं। 2017 में उन्होंने गुजरात कांग्रेस के 42 विधायकों को “पोचिंग” से बचाया और अहमद पटेल की राज्यसभा जीत सुनिश्चित की।
2018 में वह कांग्रेस–जेडीएस सरकार बनाने और बचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।
2002 में महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख सरकार को गिरने से बचाने के लिए विधायकों को सुरक्षित रखा।
2020 में KPCC अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने संगठन को मजबूत किया, फंडिंग खड़ी की और 2023 चुनाव के लिए पूरी पार्टी मशीनरी को तैयार किया। मेकदाटु पदयात्रा और प्रजाध्वनि यात्रा जैसे अभियानों से उनकी पकड़ और मजबूत हुई।
2023 में कांग्रेस की ऐतिहासिक 135 सीटों की जीत के बाद वह भावुक हो उठे और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
उनकी संपत्ति ₹1,414 करोड़ घोषित है—देश के सबसे धनी राजनेताओं में से एक।
हालांकि 2019 में दो महीने की जेल, ईडी जांच और अवैध संपत्ति के आरोपों ने उनके राजनीतिक ग्राफ को चुनौती दी। सोनिया गांधी का जेल में उनसे मिलना उनके हाईकमान से रिश्ते को मजबूत करता है। लेकिन वोक्कालिगा समुदाय के सर्वोच्च नेता के रूप में उनकी पूर्ण स्वीकार्यता अभी भी चुनौती है—क्योंकि आज भी देवेगौडा परिवार का प्रभाव मजबूत माना जाता है।
दोनों नेता कैसे अलग हैं?
सिद्धारमैया डीके शिवकुमार
जननेता, जनता से सीधा जुड़ाव संगठन, फंडिंग और रणनीति में माहिर
AHINDA समुदायों के नेता वोक्कालिगा समुदाय में आधार
सामाजिक न्याय और Welfare मॉडल चुनाव रणनीति और संकट प्रबंधन
भावनात्मक व वैचारिक समर्थन संगठनात्मक व जातीय समर्थन
दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं—पर प्रतियोगी भी।
नेतृत्व की लड़ाई: 2023 के बाद सबसे बड़ा सवाल
2023 की बड़ी जीत के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल था—मुख्यमंत्री कौन?
सिद्धारमैया का जनसमर्थन और AHINDA शक्ति बहुत मजबूत थी, जबकि डीके शिवकुमार के पास संगठन पर निर्णायक पकड़ थी। High Command ने संतुलन साधते हुए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और DKS को उपमुख्यमंत्री बनाया। अब, जब नया नेतृत्व परिवर्तन चर्चा में है, हाईकमान कई संवेदनशील पहलुओं पर नजर रखे हुए है सिद्धारमैया की जनता में लगातार ऊंची लोकप्रियता
DKS की संगठन में बढ़ती पकड़
वोक्कालिगा–AHINDA जातीय समीकरण
2028 चुनाव की तैयारी
दोनों ही नेता अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं—
सिद्धारमैया अपनी जनअपील से DKS खुद को अगले मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में साबित करके।
आगे का रास्ता: सहयोग या टकराव?
कर्नाटक कांग्रेस अब इस सबसे अहम सवाल से जूझ रही है—क्या सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार साथ काम कर पाएंगे?अगर दोनों सहयोग करते रहे, तो कांग्रेस कर्नाटक में मजबूत रह सकती है। यदि प्रतिस्पर्धा बढ़ी, तो पार्टी आंतरिक टूट का शिकार हो सकती है।हाईकमान की सबसे बड़ी चुनौती है—दोनों नेताओं के बीच संतुलन बनाए रखना और 2028 की लड़ाई के लिए पार्टी को तैयार करना।कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह दौर बेहद कठिन है, और हर फैसले का असर आगामी राजनीति पर गहरा पड़ेगा।