गुजरात में कांग्रेस की नई मुहिम, आदिवासी वोट बैंक पर नजर
कांग्रेस गुजरात में आदिवासी वोट बैंक साधने को आक्रामक अभियान शुरू करेगी, तुषार चौधरी के नेतृत्व में दक्षिण से मध्य गुजरात तक रणनीति बनेगी।;
गुजरात में लंबे समय से प्रतीक्षित चुनावी वापसी की कोशिश में कांग्रेस पार्टी अब राज्य की 15 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी को लुभाने के लिए आक्रामक अभियान चलाने की योजना बना रही है। यह आबादी मुख्य रूप से राज्य के मध्य और दक्षिणी जिलों में केंद्रित है। हाल ही में नियुक्त कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के प्रमुख और आदिवासी नेता तुषार चौधरी इस अभियान की अगुवाई करेंगे, जो दलितों और पिछड़ी जातियों को साधने के कांग्रेस के मौजूदा प्रयासों के साथ पूरक होगा।
दक्षिण गुजरात से होगी शुरुआत
अभियान की विस्तृत रूपरेखा तय होना बाकी है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस अपना आदिवासी आउटरीच दक्षिण गुजरात से शुरू करेगी और फिर इसे मध्य गुजरात तक बढ़ाया जाएगा। इन दोनों क्षेत्रों में राज्य की 27 में से 24 अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें दक्षिण गुजरात में ही 14 सीटें शामिल हैं। बाकी तीन सीटें उत्तर गुजरात के अरावली, बनासकांठा और साबरकांठा जिलों में हैं।
पार्टी के आदिवासी वोट बैंक को वापस पाने के संकेत तब मिले जब पिछले महीने तुषार चौधरी, जो राज्य में कांग्रेस के केवल दो आदिवासी विधायकों में से एक हैं, को सीएलपी प्रमुख बनाया गया। इसके कुछ दिन बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने ‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत 40 से अधिक नए जिला कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किए, जिनमें 13 आदिवासी समुदाय से हैं।
चौधरी ने बताया कि नए जिला अध्यक्षों को हर तालुका में 8-10 सदस्यों की स्थानीय टीम बनाने का निर्देश दिया गया है, जो जमीनी स्तर से राजनीतिक, चुनावी और सामाजिक फीडबैक जुटाकर जिला अध्यक्षों को देंगे।
बीजेपी का बढ़ता प्रभाव और हिंदुत्व की पैठ
कांग्रेस का मानना है कि 1995 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद आरएसएस-बीजेपी ने आदिवासी संस्कृति और आस्था में हिंदुत्व थोपने का अभियान चलाया, जिससे कांग्रेस का पकड़ ढीली पड़ गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटों के साथ 1995 के बाद अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, लेकिन 27 में से केवल 5 एसटी सीटें जीत पाई।
2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के उभार ने कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दीं। आदिवासी वोटों के त्रिकोणीय बंटवारे में बीजेपी 27 में से 23 एसटी सीटें जीत गई, कांग्रेस के खाते में सिर्फ 3 आईं और आप ने 1 सीट जीती, जबकि 18 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।
‘भगवाकरण’ के खिलाफ सांस्कृतिक रणनीति
कांग्रेस अब विकास में पिछड़ेपन और आदिवासी परंपराओं पर हिंदुत्व के असर को मुद्दा बनाकर बीजेपी को चुनौती देना चाहती है। चौधरी का कहना है कि आरएसएस ने आदिवासी समाज में प्रकृति पूजा की जगह मूर्ति पूजा स्थापित की है। वे आदिवासी त्योहारों और पारंपरिक कला-नृत्य को हिंदू धार्मिक आयोजनों के विकल्प के रूप में पेश करने की योजना बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, सावन माह में जब हिंदू शिव पूजा करते हैं, तब आदिवासी समुदाय 40 दिन का ‘गवरी’ उत्सव मनाता है, जिसमें भवाई जैसे पारंपरिक नृत्य और सड़क नाटक होते हैं।
तुषार चौधरी की चुनौती
हालांकि रणनीति तैयार है, लेकिन तुषार चौधरी के सामने व्यक्तिगत और राजनीतिक, दोनों तरह की चुनौतियाँ हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अमरसिंह चौधरी के पुत्र होने के बावजूद, तुषार लंबे समय तक आदिवासी इलाकों की जमीनी राजनीति से दूर रहे हैं। 2009 में वे बड़ौली लोकसभा सीट से जीते और केंद्र में मंत्री बने, लेकिन 2014 और 2019 में हार का सामना किया। 2017 में महुवा विधानसभा सीट से भी हार गए। 2022 में खेड़ब्रह्मा से जीते, लेकिन कांग्रेस का कुल प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह 17 सीटों तक सिमट गई।
कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि आदिवासी वोट बैंक की वापसी राज्य में पार्टी के पुनरुत्थान के लिए बेहद अहम है, लेकिन क्या चौधरी इस भारी जिम्मेदारी को निभा पाएंगे, यह समय ही बताएगा।