आखिर क्या है 10 हजार बस मार्शल नियुक्ति मामला? इतना हंगामा है क्यों बरपा?

डीटीसी की बसों में 10 हजार मार्शलों की बहाली को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. AAP लगातार उपराज्यपाल और बीजेपी को घेरने में जुटी हुई है. वहीं, बीजेपी आप पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है.

Update: 2024-10-07 05:06 GMT

DTC bus marshal: दिल्ली में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. ऐसे में इन दिनों कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनको सत्ता और विपक्षी राजनीतिक दल जोर-शोर से उठा रहे हैं. इनमें से ही एक मुद्दा डीटीसी (दिल्ली परिवहन निगम) की बसों में 10 हजार मार्शलों की बहाली का है. बता दें कि लंबे समय से अपनी बहाली की मांग को लेकर बस मार्शल प्रदर्शन कर रहे हैं. इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी (AAP) लगातार उपराज्यपाल और बीजेपी को घेरने में जुटी हुई है. वहीं, बीजेपी मार्शलों की तैनाती न करने को लेकर आप पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है. हालांकि, यह सियासत केवल राजनीतिक तक सीमित नहीं है. बल्कि यह आम परिवहन सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है. ऐसे में आइए जानने की कोशिश करते हैं कि बस मार्शल नियुक्ति को लेकर आखिर दिक्कत आ कहां रही है?

बता दें कि बस में यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने, बसों के अंदर व्यवस्था बनाए रखने के लिए बस मार्शलों की तैनाती की गई थी. लेकिन बाद में कई तरह की दिक्कतें आने के चलते इन पर रोक लगा दी गई थी. ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों का मानना है कि मार्शलों की सैलरी 20 से 22 हजार रुपये प्रति माह होती है. अगर इनकी नियुक्ति गृह विभाग से होती है तो ही समस्या का समाधान हो सकता है. क्योंकि डीटीसी में रखे गए बस मार्शलों के लिए अलग से बजट नहीं आता है. ऐसे में इनका वेतन रोड सेफ्टी बजट से जारी किया जाता है. इसके अलावा पब्लिक वेलफेयर का फंड भी बस मार्शलों के वेतन में खर्च हो रहा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बस मार्शलों को सिविल डिफेंस से जोड़कर दिल्ली सरकार के होम डिपार्टमेंट के अधीन कर दिया जाए तो नियुक्ति को लेकर जो भी दिक्कतें आ रही हैं, वह खत्म हो सकती हैं. क्योंकि दिल्ली की कानून व्यवस्था सीधे तौर पर एलजी के अधीन आती है. ऐसे में हो सकता है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच पेंच यहीं फंस रहा हो. बता दें कि दिल्ली सरकार ने बसों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साल 2015 में बस मार्शल योजना लागू की थी.

वहीं, बस मार्शल नियुक्ति को लेकर इस बीच हाई वोल्टेज ड्रामा देखा गया. 10 हजार मार्शलों की नौकरी बहाल करने की करने की मांग को लेकर बीजेपी विधायकों ने मुख्यमंत्री आतिशी से मुलाकात की थी. हालांकि, इस मुलाकात में सीएम आतिशी और बीजेपी विधायकों के बीच कोई बात नहीं बन पाई. दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि हम बस मार्शलों की बहाली और उनकी नौकरी पक्की करने के लिये मुख्यमंत्री आतिशी से मिलने के लिए दिल्ली सचिवालय पहुंचे हैं, ताकि दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा की जाए.

बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री आतिशी ने बीजेपी विधायकों के सामने प्रस्ताव रखा कि सभी उपराज्यपाल से मिलने चलते हैं. अचानक मंत्री सौरभ भारद्वाज और अन्य विधायक नेता विपक्ष के पैर पकड़ने लगे. आप नेताओं का आरोप था कि नेता विपक्ष एलजी हाउस जाना नहीं चाहते थे और मौके से भाग रहे थे. इस कारण उनको रोका गया है. इसके बाद मुख्यमंत्री नीचे आईं और विजेंद्र गुप्ता की कार में बैठ गईं. इस पर विजेंद्र गुप्ता कार के इधर-उधर घूमते रहे और दूसरी कार मंगाने के लिए फोन करने लगे. लेकिन मंत्री सौरभ भारद्वाज ने जबरदस्ती उन्हें कार में बैठा लिया. इसके बाद विजेंद्र व आतिशी एलजी हाउस पहुंचे. एलजी से मुलाकात के बाद आश्वासन न मिलने पर बस मार्शल और दिल्ली सरकार के मंत्री व विधायक मार्शल के साथ धरने पर बैठ गए. बाद में पुलिस ने मंत्री सहित अन्य को हिरासत में लेकर कुछ देर बाद दूर ले जाकर छोड़ दिया. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाजपा ने बस मार्शलों को धोखा दिया है. कैबिनेट नोट पर सभी मंत्रियों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं. अब एलजी के हस्ताक्षर का इंतजार है.

वहीं, विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आम आदमी पार्टी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह डीटीसी के 10 हजार मार्शलों की नौकरी बहाल करने की नौटंकी कर रही हैं. इन युवाओं के अरमानों को कुचल कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है. दस हजार मार्शलों को नौकरी बहाल करने के लिए जो भी जरूरी है वह किया जाए, बीजेपी विधायक दल अपना पूरा सहयोग देने को तैयार है.

कैबिनेट मीटिंग की मांग

बता दें कि 26 सितंबर को भाजपा विधायक दल ने विधानसभा में 10 हजार बस मार्शलों की नौकरी को बहाल करने और उन्हें नियमित करने के संबंध में एक प्रस्ताव पेश किया था. इस प्रस्ताव पर चर्चा होने के बाद इसे सदन में पारित कर दिया गया था. अब नियमानुसार इसको कैबिनेट से अप्रूव करके कैबिनेट नोट बनाया जाना है. अंत में उपराज्यपाल की स्वीकृति के लिए एलजी ऑफिस भेजा जाना था. लेकिन सरकार की तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया गया. बीजेपी विधायकों ने मांग की है कि इस मसले पर सरकार गंभीर है तो तुरंत कैबिनेट की बैठक बुलाई जाए.

सरकार नहीं देना चाहती नौकरी

विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया. क्योंकि यह इन मार्शलों को नौकरी पर रखना ही नहीं चाहती. तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 11 अक्टूबर 2023 के नोट पर ही इन्हें बर्खास्त किया गया था. इन्होंने इन सबसे बचने के लिए कैबिनेट नोट और मीटिंग जैसी औपचारिकता पूरी न करने का फैसला लिया. गेस्ट टीचर्स, कॉन्ट्रैक्ट इंप्लाइज, डाक्टर्स, शिक्षक, वॉलन्टियर्स, बस मार्शल्स, सबके साथ धोखा करना इनकी फितरत बन गई है. पहले ये अस्थाई भर्तियां करके वाही-वाही लूटते हैं और फिर 6-7 महीने तक उन्हें सैलरी ना देकर उनका शोषण करते हैं और फिर रातों-रात उन्हें बर्खास्त कर देते हैं.

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