सबरीमला विवाद से व्यावहारिकता तक, सीपीआई-एम की नई दिशा पर बहस
सबरीमला विवाद पर CPI(M) का रुख बदल गया है। अब पार्टी मंदिर विकास और भक्त भावनाओं से जुड़ रही है। सवाल है क्या इससे उसका जनाधार लौटेगा?;
हाल ही में केरल में माकपा (CPI-M) के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने जब कहा कि सबरीमला में महिलाओं की एंट्री का मुद्दा अब एक बंद अध्याय है, तो यह कोई सहज टिप्पणी नहीं थी। उनके शब्दों ने पार्टी के रुख में आए बड़े बदलाव को उजागर कर दिया। यह रुख उनके पूर्ववर्ती स्व. कोडियेरी बालकृष्णन की सख्त स्थिति से बिलकुल विपरीत था, जिन्होंने 2018-19 के तूफ़ान के बीच कहा था कि पार्टी दस वोटों के लिए भी समझौता नहीं करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद का सफर
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर लगी पाबंदी हटाई थी। उस समय पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार ने फैसले का खुलकर समर्थन किया और पुलिस सुरक्षा तक दी। इसे ‘नवजागरण परंपरा’ का हिस्सा बताया गया।लेकिन, जब जनवरी 2019 में बिंदु अम्मिनी और कनकदुर्गा मंदिर में दाखिल हुईं, तो व्यापक विरोध-प्रदर्शन भड़क उठा। बीजेपी और आरएसएस ने आंदोलन तेज़ किया, मंदिर की शुद्धिकरण क्रियाएं हुईं और वामपंथियों पर आरोप लगा कि उन्होंने “आस्था पर वैचारिक हमला” किया। 2019 लोकसभा चुनाव में इसका असर दिखा। 20 में से वाम मोर्चे को सिर्फ़ एक सीट मिली।
धीरे-धीरे पीछे हटती सरकार
हार के बाद CPI(M) के भीतर यह माना गया कि हिंदू मतदाताओं, खासकर परंपरागत समर्थकों, ने नाराज़गी दिखाई। नतीजा 2019 के अंत तक सरकार ने सक्रिय भूमिका कम करनी शुरू कर दी। 2022 में महिला प्रवेश का ज़िक्र करने वाला पुलिस हैंडबुक प्रावधान औपचारिक रूप से हटा दिया गया।बीजेपी और हिंदुत्व समूह अब मांग कर रहे हैं कि सरकार और त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) सुप्रीम कोर्ट में दिए गए उस हलफ़नामे को वापस लें जिसमें महिला प्रवेश का समर्थन किया गया था।
सुधार बनाम राजनीतिक जोखिम
दलित नेता पन्नाला श्रीकुमार, जो 2018 के बाद बनी नवजागरण समिति के अहम सदस्य थे, ने चेतावनी दी अगर सरकार सुधार के रास्ते से पीछे हटी तो बड़ा झटका लगेगा। जिम्मेदारी टालने से काम नहीं चलेगा। सवाल यह है कि क्या सरकार समाज सुधार का नेतृत्व कर सकती है।
अयप्पा संगमम और नई रणनीति
20 सितंबर को होने जा रहा ग्लोबल अयप्पा संगमम इस नए रुख का प्रतीक है। सरकार और TDB के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 800 भक्त शामिल होंगे। मकसद है सबरीमला को वैश्विक तीर्थ केंद्र के रूप में प्रस्तुत करना। TDB प्रमुख पी.एस. प्रसांत ने इसे भक्त-प्रथम पहल बताया।यह CPI(M) की रणनीतिक शिफ्ट को दिखाता है।अब पार्टी खुद को मंदिर विकास और भक्त भावना से जोड़कर पेश करना चाहती है, न कि परंपरा को चुनौती देने वाली ताक़त के रूप में।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
बीजेपी ने इसे दोहरा रुख बताया और सरकार से माफी मांगने तथा आंदोलनकारियों पर दर्ज केस वापस लेने की मांग की। कांग्रेस नेतृत्व वाला यूडीएफ (UDF) इसे बहुसंख्यक सांप्रदायिकता करार दे रहा है और संकेत दिए हैं कि वे इस आयोजन से दूरी बना सकते हैं। नारीवादी वर्ग ने निराशा जताई। त्रिशूर की वकील आशा उन्नीथन ने कहा सरकार का हलफ़नामा अब भी कायम है, जब तक उसे औपचारिक रूप से वापस नहीं लिया जाता। अगर महिलाएँ सबरीमला जाएँगी तो सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होगी, और अगर वह विफल हुई तो मामला कोर्ट तक जाएगा।”
रणनीतिक गणित और विचारधारात्मक संकट
CPI(M) के भीतर गोविंदन की टिप्पणी को एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।हिंदू वोटरों में बीजेपी के प्रभाव को रोकने के लिए। मगर पार्टी के कई वर्गों में चिंता है कि इससे वामपंथ की ऐतिहासिक सुधारवादी पहचान कमजोर हो रही है।
2018 में जहां कोडियेरी ने अडिग रुख अपनाया था, वहीं अब गोविंदन व्यावहारिकता दिखा रहे हैं। यह बदलाव बताता है कि सबरीमला विवाद ने न सिर्फ़ केरल की राजनीति, बल्कि वामपंथ के वैचारिक कम्पास को भी बदल डाला है। आगे सवाल यही है क्या यह रणनीतिक बदलाव CPI(M) को खोया जनाधार दिला पाएगा या फिर आंतरिक बहस और गहराएगी? इसका जवाब 2026 विधानसभा चुनावों में सामने आएगा।