निमिषा प्रिया मामला: कौन हैं कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार, भारत के ग्रैंड मुफ्ती?
कंथापुरम की पहल यह दिखाती है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की व्यावहारिकता हमेशा धर्मनिरपेक्ष पात्रों से संचालित नहीं होती— कभी-कभी सबसे रूढ़िवादी आवाज़ें भी सबसे मानवीय नतीजे दे सकती हैं।;
यमन में मौत की सजा का सामना कर रहीं भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी जब अचानक टाल दी गई तो इसके पीछे जिस शख्स की भूमिका सबसे अहम रही, वह कोई राजनयिक या मंत्री नहीं, बल्कि केरल के पारंपरिक सुन्नी धर्मगुरु कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार (ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया) थे। धार्मिक संवाद और रहमत की अपीलों के ज़रिए कंथापुरम ने यमन के सूफी नेटवर्क और आदिवासी नेताओं से संपर्क साधा और इस बेहद संवेदनशील मामले में एक नया संवाद का रास्ता खोला।
मरकज से यमन तक
कंथापुरम, जिन्हें लोग प्यार से ए. पी. उस्ताद भी कहते हैं, ने 1978 में कोझिकोड में स्थापित किया था जामिआ मरकज (Markazul Saqafathi Sunniyya)। यह संस्थान आज एक शैक्षणिक और धार्मिक केंद्र के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक कल्याण का भी मंच बन चुका है, जिसमें हजारों छात्र – पुरुष और महिलाएं – इस्लामी शिक्षा, अरबी भाषा, आधुनिक विज्ञान और व्यावसायिक प्रशिक्षण पाते हैं। 2016 में उन्हें ऑल इंडिया तंजीम उलमा-ए-इस्लाम द्वारा भारत का ग्रैंड मुफ्ती घोषित किया गया – एक औपचारिक मान्यता जो उनकी पहले से स्थापित लोकप्रियता को प्रमाणित करती है।
राजनीतिक समीकरण
केरल में जहां इस्लाम कई वैचारिक धाराओं में बंटा है, कंथापुरम का गुट पारंपरिक सुन्नियों का सबसे बड़ा समूह है, जिन्हें आम बोलचाल में 'अरिवल सुन्नी' (हंसिया सुन्नी) कहा जाता है – यह नाम उनके वामपंथी झुकाव को इंगित करता है। वे राजनीतिक इस्लाम और वहाबी विचारधारा दोनों का विरोध करते हैं, लेकिन वे आधुनिक इस्लामी सुधारों के पक्षधर नहीं हैं। विरोधाभास यह है कि वे लिंग समानता और उदारवादी व्याख्याओं के खिलाफ रहे हैं, फिर भी केरल की वामपंथी सरकार के साथ उनकी रणनीतिक नज़दीकियां रही हैं, जिसने उन्हें नीति निर्माण और धार्मिक शिक्षा में विशेष भूमिका दी है।
निमिषा प्रिया मामले में हस्तक्षेप
जब भारत और यमन के बीच राजनयिक प्रयास सीमित हो गए, तब कंथापुरम ने धार्मिक रहमत और इस्लामी मेल-मिलाप की अपीलों के माध्यम से यमन के प्रभावशाली धार्मिक और जनजातीय नेताओं से संवाद किया। यह प्रयास कूटनीतिक तारों की बजाय आस्था और नैतिकता की भाषा में हुआ। उनका हस्तक्षेप रूढ़िवादी तो है, लेकिन इस्लामी मानवीय मूल्यों के ज़रिए न्याय और रहम की पैरवी करता है। यदि निमिषा प्रिया की सज़ा को क़बीलाई समझौते या 'दिया' (ब्लड मनी) के ज़रिए माफ कर दिया जाता है तो यह धार्मिक कूटनीति की एक ऐतिहासिक सफलता मानी जाएगी।
फेमिनिस्ट विरोध
कंथापुरम अक्सर नारी अधिकार कार्यकर्ताओं और प्रगतिशील मुस्लिम बुद्धिजीवियों के निशाने पर रहते हैं, खासकर उनके रूढ़िवादी स्त्री-विरोधी विचारों के कारण। लेकिन ग्रामीण और अर्ध-शहरी केरल में उनकी लोकप्रियता अपार है। उनके नेतृत्व में मरकज ने मदरसों, अस्पतालों, तकनीकी संस्थानों और सामाजिक सेवा केंद्रों का जाल बिछाया है।
'धार्मिक कूटनीति' का नया अध्याय?
कंथापुरम की पहल यह दिखाती है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की व्यावहारिकता हमेशा धर्मनिरपेक्ष पात्रों से संचालित नहीं होती — कभी-कभी सबसे रूढ़िवादी आवाज़ें भी सबसे मानवीय नतीजे दे सकती हैं। जब शक्ति का स्रोत नैतिक वैधता हो तो वह सिर्फ आत्मा नहीं, ज़िंदगियां भी बचा सकती है।