'रत्न भंडार' वाले कक्ष में ना कोई सांप ना सुरंग, सभी दावे निकले काल्पनिक
जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार वाले कक्ष के खुलने के बाद कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं. मसलन पर्यवेक्षण करने वाली समिति ने कहा कि ना तो उन्हें सांप या सुरंग दिखाई दी.
By : Lalit Rai
Update: 2024-07-19 04:41 GMT
Ratna Bhandar Jagannath Temple: 12वीं सदी में बने जगन्नाथ पुरी मंदिर के रत्न भंडार वाले कक्ष को 46 साल बाद खोला गया. रत्न भंडार से आभूषणों और कीमती सामानों को अलग कमरे में रखा गया है. लेकिन यहां हम बात करेंगे रत्न भंडार वाले कक्ष में सांपों और सुरंग के बारे में. ऐसा दावा किया जा रहा था कि रत्न भंडार वाले कक्ष की निगरानी कोई और नहीं नाग देवता करते हैं.जिस दिन यानी 14 जुलाई को जब रत्न भंडार कक्ष को खोला गया तो सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के साथ साथ एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम मौके पर मौजूद थी ताकि किसी अनहोनी को टाला जा सके. अब जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक सांपों और सुरंग की बात सिर्फ कल्पना और भ्रांति थी.
ओडिया घरों में यह एक प्रचलित किस्सा रहा है कि रत्न भंडार के अंदर खजाने की रखवाली सांप करते थे और इसमें कई छिपी हुई सुरंगें थीं. लेकिन खजाने की सूची की निगरानी के लिए नियुक्त 11 सदस्यीय समिति ने गुरुवार (18 जुलाई) को इसके अंदर सात घंटे से अधिक समय बिताया और इन दावों को खारिज कर दिया.
गलत सूचना फैलाना बंद करें
पर्यवेक्षी समिति के अध्यक्ष और उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विश्वनाथ रथ ने कहा, "हमारे निरीक्षण के आधार पर हमें सुरंग जैसी किसी भी विशेषता का कोई सबूत नहीं मिला. उन्होंने मीडिया और सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों से इस विषय पर गलत सूचना फैलाने से बचने का आग्रह किया। समिति के एक अन्य सदस्य और सेवादार दुर्गा दासमोहपात्रा ने कहा कि हमें भगवान के खजाने के अंदर कोई गुप्त कक्ष या सुरंग नहीं दिखी. रत्न भंडार लगभग 20 फीट ऊंचा और 14 फीट लंबा है. उन्होंने निरीक्षण के दौरान कुछ छोटी-मोटी समस्याओं का उल्लेख किया.छत से कई छोटे-छोटे पत्थर गिरे और रत्न भंडार की दीवार में दरार आ गई. सौभाग्य से फर्श उतना गीला नहीं थाजितना कि आशंका थी.
एएसआई आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है:
समिति के सदस्य पुरी के राजा गजपति महाराज दिव्य सिंह देब ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सुरंगों की मौजूदगी की जांच के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है. देब ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कक्ष की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए लेजर स्कैनिंग जैसे उन्नत उपकरणों का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करके सर्वेक्षण करने से सुरंगों जैसी मौजूदा संरचनाओं के बारे में जानकारी मिल सकती है.
गुरुवार को समिति के सभी 11 सदस्य रत्न भंडार के आंतरिक कक्ष का ताला तोड़कर उसमें घुस गए थे। समिति ने कक्ष के अंदर करीब सात घंटे बिताकर सभी सोने के आभूषणों को आंतरिक कक्ष से मंदिर के अंदर बने अस्थायी स्ट्रांग रूम में पहुंचाया. हालांकि, रथ ने आंतरिक कक्ष में रखे आभूषणों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया था.
एएसआई ने अभी तक मिली वस्तुओं की सूची बनाना शुरू नहीं किया है. कोई भी ‘सांप’ खजाने की रखवाली नहीं करता. रविवार (14 जुलाई) को जब समिति के सदस्य, सपेरों, सांप बचाव दल और ओडिशा आपदा त्वरित कार्रवाई बल (ओडीआरएएफ) की टीम के साथ रत्न भंडार में दाखिल हुए तो कोई भी सांप नहीं मिला था. सरकार ने मंदिर में विशेष रूप से सांप हेल्पलाइन की 11 सदस्यीय टीम तैनात की थी जो किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए रत्न भंडार के बाहर पहरा दे रही थी. इसके अलावा, पुरी के मुख्यालय अस्पताल को भी एंटी-वेनम तैयार रखने के लिए कहा गया था। रथ ने कहा कि खजाने के खुलने को लेकर अनावश्यक प्रचार किया गया.
रत्न भंडार, जिसे मूल रूप से पुरी के ‘राजा’ द्वारा प्रबंधित किया जाता था. उसे पहली बार अंग्रेजों ने 1905 में निरीक्षण के लिए खोला था. ब्रिटिश प्रशासन द्वारा 1926 में एक सूची तैयार की गई थी. खजाने की आखिरी सूची 1976 में तत्कालीन ओडिशा के राज्यपाल भगवत दयाल शर्मा की अध्यक्षता वाली एक समिति की देखरेख में बनाई गई थी.