नाकाफी है आयुष्मान जैसी योजना की रकम, मरीज़-तीमारदार बन रहे कर्ज़दार
यूपी में किडनी मरीज़ों की जांच, डायलिसिस और दवा का खर्चा आम मरीजों की पहुंच से बाहर है। कई परिवारों को बैंकों से लोन यहां तक ज़मीन भी गिरवी रखनी पड़ रही है।;
Kidney Transplant Expense News: किडनी की बीमारी से लड़ रहे मरीज़ों के परिवारों को गंभीर आर्थिक तंगी से भी जूझना पड़ रहा है।किडनी ट्रांसप्लांट् कराने के बाद मेडिकल ख़र्चों के लिए इन मरीज़ों के परिवार बैंक के क़र्ज़ में डूबे हैं तो कई परिवार ऐसे हैं जिनको अपनी ज़मीन तक गिरवी रखनी पड़ी है।लखनऊ के एसजीपीजीआई के डॉक्टरों की टीम की एक ‘स्टडी रिपोर्ट’ में ये बात सामने आई है कि अस्पताल का खर्चा ऑपरेशन-ट्रांसप्लांट के बाद भी जारी रहता है जिससे ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर परिवार क़र्ज़ में डूब जाते हैं।ऐसे में आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना समेत सरकारी योजनाएं भी बीमारी से लड़ने में नाकाफी साबित हो रही हैं।
ट्रांसप्लांट के बाद फॉलो अप का खर्चा
लखनऊ में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज( SGPGI) में बुधवार का दिन किडनी से संबंधित मरीज़ों के लिए ओपीडी का दिन होता है।दूर दूर से यहाँ तक कि यूपी के बाहर दूसरे राज्यों से भी आनेवाले मरीज़ों की तादात यहाँ काफ़ी होती है।ऐसे में यहाँ आने वाले मरीज़ों और उनके परिजनों की तकलीफ़ खुल कर सामने आ जाती है।जाँच रिपोर्ट्स से लेकर फॉलो अप तक के मरीज़ ओपीडी में आते हैं।इनमें कई मरीज़ ऐसे हैं जिनके किडनी ट्रांसप्लांट और उसके बाद होने वाले ख़र्चों से परिवार की कमर टूट चुकी है।
बहराइच से आई सुषमा के पति घर के कमाने वाले इकलौते सदस्य हैं।पर दो साल से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।सरकारी योजना का लाभ मिला है पर अब वो 2 लाख रुपए और जमा पूंजी खर्च हो गई है।ऐसे में चेकअप के लिए पति और बेटे के साथ हर बार लखनऊ आना भारी पड़ रहा है। वहीं झारखंड के दिनेश को भी लखनऊ पीजीआई आकर इलाज कराना पड़ा है।उन्होंने बैंक से कर्ज किया है।कई तो ऐसे हैं जिनको जानकारी के अभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ तक नहीं मिला है।
पीजीआई के तीन डॉक्टर्स की टीम द्वारा 2023-2025 के बीच की गई स्टडी में ख़ास तौर पर पीजीआई इलाज के लिए आए ऐसे मरीज़ों पर फोकस किया गया जिन लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया।जिन लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया ऐसे लोगों में से 46 प्रतिशत को बैंक से इलाज के लिए लोन लेना पड़ा है। वहीं इनमें से 28 प्रतिशत लोग अपनी ज़मीन गिरवी रख चुके हैं।
इस स्टडी को करने वाले पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजेश हर्षवर्धन स्पष्ट करते हैं कि ‘सरकारी योजनाएं आने के बाद ज्यादातर लोगों को आयुष्मान योजना और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ मिल रहा है।100 में से 97 मरीज़ों को ट्रांसप्लांट के लिए मदद मिली है, लेकिन अभी भी कुछ लोग इस दायरे में नहीं आ पाए हैं, साथ ही ये भी मानते हैं कि जिनको योजनाओं का लाभ मिला हैउनको भी फॉलो अप अपने ही खर्चे से करना पड़ता है।
डायलिसिस, जाँच, दवा,आने जाने का किराया, और काम के नुक़सान की लोन से भरपाई
इस अध्ययन के ज़रिए डॉ राजेश हर्ष वर्धन और उनके साथ दो सहयोगी डॉ रश्मि सिंह और डॉ नारायण प्रसाद ने ये पता लगाया कि आयुष्मान भारत और जैसी योजनाओं में किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती होने से लेकर किडनी ट्रांसप्लांट तक का ही लाभ मिलता है।जबकि मेडिकल खर्चे उससे कहीं ज़्यादा हैं।
इन खर्चों के बारे में बात करते हुए डॉ राजेश हर्षवर्धन कहते हैं कि ‘ किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज़ों को नियमित और अनिवार्य रूप से फॉलो अप के लिए आना पड़ता है।ये देखा गया है कि दवाइयों से लेकर रिपोर्ट्स और यहाँ आने का खर्चा उनके लिए बहुत ज़्यादा होता है।डायलिसिस, जाँच, दवा, अस्पताल आने जाने का किराया और यहाँ रुकने खाने का खर्चा बहुत होता है।ऐसे में ये परिवार लंबे समय तक उस ख़र्चे को उठाने के लिए बैंक से लोन लेते हैं तो बहुत आर्थिक रूप से कमजोर परिवार आपकी घर- ज़मीन तक गिरवी रख रहे हैं।’
एक बार आने जाने में खर्च हो जाते हैं क़रीब दस हज़ार रुपए
डॉ राजेश हर्षवर्धन एक और बात की ओर ध्यान दिलाते हैं। उनका मानना है कि आजकल स्वास्थ्य बीमा भी नौकरी पेशा और मध्यम वर्गीय परिवार करते हैं।पर किसी भी इंश्योरेंस पालिसी में लाइफ लांग मेडिसिन और किडनी ट्रांसप्लांट के बाद के फॉलो अप्स को कवर नहीं किया जाता।यही वजह है कि गरीब परिवार अपने मरीज़ का इलाज कराने में पूरी तरह से टूट जाते हैं।
इस स्टडी में मरीज़ों के किडनी ट्रांसप्लांट के बाद फॉलो अप के लिए आने वाले मरीज़ों का एक दिन का खर्चा भी निकाला गया है। एक बार पीजीआई आने पर मरीज़ के 9431.38 रुपए खर्च होते हैं। इतना खर्च क्यों ? ये पूछने पर डॉ हर्षवर्धन बताते हैं कि ‘किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज़ के साथ कोई परिजन भी आता है।ऐसे में आने वाले लोगों के रहने आने जाने के किराए पर भी खर्च होते हैं तो यहाँ रुकने -खाने पर भी खर्चा आता है।स्टडी में साथ आने वाले परिजन के डेली वेज( रोज़गार-दिहाड़ी )का जो नुकसान होता है वो भी शामिल है।’ ऐसे मरीज़ों को औसतन महीने -दो महीने में एक बार तो आना ही पड़ता है।जिनको दूसरी बीमारियां हैं उनको उस बीमारी की दवा भी लेनी पड़ती है।
जानकर कहते हैं कि 2-3 लाख रुपए अलग-अलग योजनाओं से मिलते हैं पर आम तौर पर लाख रुपए खर्च हो ही जाते हैं।प्राइवेट अस्पताल में तो इससे कई गुना ज़्यादा खर्चा आता है।पीजीआई जैसे संस्थान में वेटिंग को देखते हुए कई बार ये मरीज़ों की मजबूरी जो जाती है कि वो प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराएँ।ट्रांसप्लांट के बाद फ़ॉलोअप के लिए आने पर 20-25 हज़ार रुपए का खर्च आता है। डॉ राजेश हर्षवर्धन कहते हैं कि इसका एक तरीका ये है कि जाँच, डायलिसिस, दवा और फॉलो अप का भी खर्चा इंश्योरेंस में शामिल किया जाए।