ताकि वो दाग मिट सके, कोटा में अलग अलग तरीके से सुधार की पहल
कोटा पर सुसाइड के दाग के बीच यह बताया गया है कि कैसे स्टेकहोल्डर्स ने परामर्श, आत्महत्या विरोधी बुनियादी ढांचे-मनोरंजन के जरिए छात्रों को सुरक्षित वातावरण देने की पहल हुई है।;
यह कोटा के ट्यूशन उद्योग पर दो-भागीय श्रृंखला का दूसरा लेख है। पहले भाग में यह बताया गया था कि कैसे छात्र आत्महत्याओं से जुड़ी नकारात्मक चर्चाओं के कारण कोटा संस्थानों में नामांकन घट गया है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
अब, जब कोटा छात्र आत्महत्याओं के कलंक और अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से जूझ रहा है, तब कोचिंग संस्थानों से लेकर हॉस्टलों, पुलिस, टिफिन सेवा केंद्रों तक—सभी हितधारक मिलकर इस प्रसिद्ध कोचिंग हब को फिर से खड़ा करने और इसकी नकारात्मक छवि को मिटाने के प्रयास कर रहे हैं।
"बचाई गई जिंदगियों की चर्चा क्यों नहीं?"
कोटा कलेक्टर डॉ. रविंद्र गोस्वामी ने द फेडरल से बातचीत में इस बात पर चिंता जताई कि मीडिया में कोटा को केवल छात्र आत्महत्याओं से जोड़कर देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि मीडिया हमेशा मौतों की बात करता है, लेकिन प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों से जो छात्रों की जिंदगियां बचाई गई हैं, उनकी चर्चा नहीं होती।
डॉ. गोस्वामी ने कहा, "हमेशा आत्महत्याओं की संख्या को ही प्रमुखता दी जाती है। लेकिन उन छात्रों की कोई खबर नहीं आती, जिन्हें काउंसलिंग दी गई और आत्मघाती कदम उठाने से रोका गया। यदि हम 10 छात्रों को काउंसलिंग देते हैं, तो उनमें से संभवतः एक आत्महत्या का प्रयास करता है, जबकि बाकी ऐसा करने से बच जाते हैं। लेकिन इस सकारात्मक पहलू को कभी भी समाचारों में जगह नहीं मिलती," उन्होंने अफसोस जताया।
'कलेक्टर के साथ डिनर' पहल
कोटा कलेक्टर डॉ. रविंद्र गोस्वामी ने बताया कि कोटा देश का एकमात्र शहर है जहां 10,000 गेटकीपिंग स्टाफ को प्रशिक्षित किया गया है। ये स्टाफ छात्रों पर नजर रखते हैं और जो छात्र उदास या अकेले रहना पसंद करते हैं, उनकी निगरानी और काउंसलिंग शुरू कर देते हैं।
उन्होंने बताया, “हर शुक्रवार को आयोजित ‘कलेक्टर के साथ डिनर’ कार्यक्रम में मैं स्वयं छात्रों से मिलता हूं, उनके साथ घुलता-मिलता हूं और उनकी समस्याएं सुनता हूं। इसके अलावा, ‘संवाद’ कार्यक्रम के तहत भी हम छात्रों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। न केवल मैं, बल्कि हमारा स्टाफ भी छात्रों से रैंडम तरीके से मिलकर बातचीत करता है। इसका मुख्य उद्देश्य उनके लिए एक सकारात्मक और सहयोगी माहौल तैयार करना है।”
गोस्वामी ने यह भी बताया कि केवल कोचिंग संस्थान या प्रशासन ही नहीं, बल्कि ऑटो-रिक्शा चालक और चाय विक्रेताओं जैसे आम नागरिक भी छात्रों के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने में योगदान दे रहे हैं।
नियमों में सुधार और बेहतर सुरक्षा उपाय
परामर्श (काउंसलिंग) से जुड़े लोगों का कहना है कि छात्रों से नियमित बातचीत के दौरान कई ऐसी समस्याएं सामने आईं जो आमतौर पर छोटी लग सकती हैं, लेकिन छात्रों के लिए ये मानसिक दबाव का कारण बनती हैं। इनमें ऑटो-रिक्शा चालकों और हॉस्टल मालिकों द्वारा अधिक शुल्क वसूलना, हॉस्टलों और किराए के आवासों में भोजन की गुणवत्ता, सुरक्षा व्यवस्था और चिकित्सा आपातकाल जैसी समस्याएं शामिल हैं। इन मुद्दों को हल करने के लिए विभिन्न स्तरों से सुझाव लिए जा रहे हैं।
छात्रों को 10-12 घंटे की पढ़ाई के बीच थोड़ा सुकून देने के लिए प्रशासन ने उन्हें चंबल रिवरफ्रंट और अन्य मनोरंजन स्थलों तक निःशुल्क पहुंच उपलब्ध कराई है।
चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष विश्वनाथ शर्मा ने बताया कि अब छात्रों से पहले की तरह सुरक्षा निधि (सिक्योरिटी मनी) नहीं ली जाएगी। उन्होंने कहा, "कोटा में करीब 4,000 हॉस्टल और 40,000 पीजी (पेइंग गेस्ट) आवास हैं। पहले छात्रों को दो महीने का अग्रिम किराया जमा करना पड़ता था, लेकिन अब यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है।"
हॉस्टल शुल्क और सुरक्षा मानकों में सुधार
कोटा में अब मेंटेनेंस शुल्क का मानकीकरण किया गया है, जिसकी वार्षिक सीमा ₹2,000 तय की गई है। इसके अलावा, आधुनिक सुरक्षा उपायों को लागू किया गया है, जिनमें एंटी-हैंगिंग डिवाइस, सीसीटीवी और बायोमेट्रिक सिस्टम की अनिवार्य स्थापना शामिल है। खासतौर पर महिला हॉस्टलों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
आत्महत्याओं के पीछे क्या कारण हैं?
कोटा की पहचान पारंपरिक कक्षा शिक्षण और उच्च प्रतिस्पर्धी माहौल के लिए रही है। हालांकि, वर्षों से यह शिकायतें भी आती रही हैं कि कोचिंग संस्थान छात्रों को आंतरिक अंकों के आधार पर ‘एलीट’ और ‘नॉन-एलीट’ समूहों में विभाजित करते हैं, जिससे छात्रों के बीच असमानता और दबाव बढ़ता है।
इसके अलावा, कई छात्रों ने शिक्षकों की गुणवत्ता को लेकर भी चिंता व्यक्त की है। आमतौर पर ‘स्टार’ शिक्षकों का ध्यान उन्हीं छात्रों पर अधिक होता है, जो विशेष बैच में होते हैं, जिससे अन्य छात्रों को कम मार्गदर्शन मिल पाता है।
इस कड़े शैक्षणिक माहौल और सफलता की अनिश्चितता के साथ-साथ पारिवारिक अपेक्षाएं छात्रों पर और अधिक मानसिक दबाव डालती हैं। कई छात्रों पर यह जिम्मेदारी होती है कि उनके माता-पिता ने उनकी कोचिंग के लिए अपनी जमापूंजी खर्च की है, जिससे उनके लिए असफलता कोई विकल्प नहीं रह जाता। यही मानसिक तनाव कई बार आत्महत्या जैसी घटनाओं का कारण बन जाता है।
मानसिक तनाव दूर करने के लिए गहन काउंसलिंग
बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं ने कोटा के कोचिंग संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए मजबूर किया है।
एलन करियर इंस्टीट्यूट, जो हर साल 60,000-65,000 छात्रों को पढ़ाता है, ने 100 विशेषज्ञों की एक टीम गठित की है जो मानसिक तनाव से जूझ रहे छात्रों की मदद करती है।
संस्थान के 'सैनिक्षा' (छात्रों और अभिभावकों के लिए एक इमोशनल वेलबीइंग सेंटर) के प्रमुख डॉ. हिमांशु शर्मा के अनुसार, इस टीम में—
44 प्रशिक्षित साइकोलॉजिकल काउंसलर
15 शैक्षणिक काउंसलर
8 एमबीबीएस डॉक्टर
2 एमडी डॉक्टर
2 मानसिक रोग विशेषज्ञ (साइकेट्रिस्ट) शामिल हैं।
इसके अलावा, अन्य कोचिंग संस्थानों में भी जहां 15,000 से अधिक छात्र हैं, वहां 5-6 काउंसलर नियुक्त किए गए हैं, वहीं सरकारी स्तर पर भी काउंसलर उपलब्ध कराए गए हैं।
"पढ़ाई ही एकमात्र कारण नहीं"
डॉ. शर्मा का मानना है कि कोटा का प्रतिस्पर्धी माहौल ही आत्महत्या का एकमात्र कारण नहीं है।उन्होंने बताया कि टूटी हुई दोस्ती या रिश्ते, पारिवारिक दबाव और ऑनलाइन गेमिंग की लत भी आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण हो सकते हैं।
एक उदाहरण साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक मेधावी छात्र, जो कोटा आने के मात्र तीन दिन बाद ही आत्महत्या कर बैठा, उसके मामले में अध्ययन का तनाव मुख्य कारण नहीं हो सकता। कई बार अभिभावकों की अपेक्षाएं, प्रेम संबंधों की जटिलताएं और पारिवारिक रिश्तों में दूरी भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ती हैं।
अभिभावकों की भूमिका और सामाजिक कलंक
उन्होंने बताया कि कई अभिभावक अपने बच्चों के असफल होने को शर्मिंदगी की तरह देखते हैं। जब उन्हें यह सलाह दी जाती है कि यदि उनका बच्चा कोटा के माहौल में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है, तो उसे वापस ले जाना चाहिए, तो वे अनिच्छा दिखाते हैं।
यही कारण है कि हाल ही में छात्रों के लापता होने की घटनाएं भी सामने आई हैं। कई माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा कोचिंग पूरी किए बिना वापस न लौटे, क्योंकि वे इसे सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं।
'बडी काउंसलर्स' की पहल
डॉ. शर्मा ने बताया कि छात्रों के मानसिक तनाव को कम करने और उनकी मानसिक स्थिति पर नजर रखने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं।अब काउंसलर छात्रों से हर दिन बातचीत करते हैं—चाहे वह कक्षा में हो, कैंटीन में, लाइब्रेरी में या गेमिंग एरिया में। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को यह महसूस कराना है कि वे अकेले नहीं हैं और उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुना और समझा जा रहा है।
छात्र-काउंसलर संवाद: भरोसे की नई पहल
प्रत्येक काउंसलर को हर दिन 20 छात्रों से बातचीत करनी होती है और दिन के अंत तक उनकी रिपोर्ट दाखिल करनी होती है।
डॉ. शर्मा बताते हैं, "इस प्रक्रिया से छात्रों और काउंसलर्स के बीच की दूरी कम हुई है। अब वे काउंसलर को ‘बडी’ (मित्र) की तरह देखते हैं, जिससे वे खुलकर अपनी भावनाएं साझा कर सकते हैं। कई बार छात्र अपने उन दोस्तों के बारे में भी बताते हैं, जो मानसिक रूप से परेशान हैं। इससे हमें उन छात्रों की पहचान करने में मदद मिलती है, जो किसी कारणवश चुप रहते हैं या खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं।"
'मातृ-संवेदना' और सामुदायिक समर्थन
पहले जब कोई छात्र दो-तीन दिनों तक कक्षा में नहीं आता था, तब सिर्फ टेली-काउंसलिंग के माध्यम से संपर्क किया जाता था। अब, काउंसलर स्वयं हॉस्टल जाकर उनसे मिलते हैं, व्यक्तिगत रूप से काउंसलिंग करते हैं, अभिभावकों से बात करते हैं और यदि आवश्यक हो तो उन्हें बच्चे को वापस ले जाने की सलाह भी देते हैं।
इसके अलावा, ‘वात्सल्य’ नामक एक नई पहल शुरू की गई है, जिसमें कोटा में अपने बच्चों के साथ रह रही माताओं को भावनात्मक समर्थन प्रदान करने और बच्चों को मानसिक संबल देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
माताओं को यह सिखाया जाता है कि कैसे वे परीक्षा से पहले अपने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा सकती हैं।
यदि बच्चा तनाव में हो, तो उसके साथ बैठकर बात करें और सकारात्मक माहौल बनाएँ।
किसी भी मानसिक परेशानी की स्थिति में तुरंत काउंसलर से संपर्क करें।
डॉ. शर्मा बताते हैं कि "यह बैठकें न केवल बच्चों की मदद करती हैं, बल्कि इन माताओं के बीच भी एक आपसी जुड़ाव और सामुदायिक भावना विकसित करती हैं, क्योंकि ये सभी महिलाएं अपने बच्चों के लिए अपने घर-परिवार को छोड़कर कोटा आई हैं।"
कोटा के सामने चुनौतियां: आर्थिक पुनरुद्धार की आवश्यकता
हालांकि कोटा में छात्रों की भलाई के लिए नई सामुदायिक पहलें शुरू की गई हैं, लेकिन शहर की स्थानीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए छात्रों की संख्या को बढ़ाना आवश्यक है।
हर साल IIT और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए कोचिंग लेने वाले छात्रों में से लगभग 10% कोटा आते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में आत्महत्याओं की घटनाओं, कोचिंग संस्थानों के सख्त नियमों (16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों का प्रवेश वर्जित),बढ़ती ट्यूशन फीस 2-भाग की श्रृंखला के अंतिम भाग में बताया गया है कि कैसे हितधारकों ने परामर्श, आत्महत्या विरोधी बुनियादी ढांचे और मनोरंजन के माध्यम से छात्रों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए एकजुट हुए हैंजैसे कारणों से कई अभिभावक अपने बच्चों को अन्य शहरों में स्थित कोचिंग सेंटरों में भेजना पसंद कर रहे हैं।एलन करियर इंस्टीट्यूट के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन वाइस प्रेसिडेंट नितेश कुमार के अनुसार, "अब ब्रांडेड कोचिंग सेंटरों की शाखाएँ देशभर में खुल रही हैं, जिससे माता-पिता को अपने बच्चों को कोटा भेजने की आवश्यकता नहीं पड़ रही है।"
इनोवेशन और मार्केटिंग की ज़रूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि छात्रों को वापस आकर्षित करने के लिए कोटा के कोचिंग संस्थानों को अपनी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
मनोज शर्मा (Growth Strategist, Resonance) के अनुसार, "कोचिंग को अधिक किफायती और सुलभ बनाने के लिए शिक्षण पद्धति, अध्ययन सामग्री, टेस्टिंग सिस्टम, व्यक्तिगत ध्यान, स्व-निर्देशित शिक्षा, और लागत प्रबंधन में निरंतर सुधार आवश्यक है।"
✔ नए ट्रेंड्स और तकनीकों के अनुसार शिक्षकों का अपस्किलिंग किया जाना चाहिए।
✔ कोटा की व्यक्तिगत सफलता दर को उजागर किया जाना चाहिए।
✔ वर्तमान में संस्थान अपने सभी शाखाओं के कुल परिणाम जारी करते हैं, लेकिन कोटा-विशिष्ट सफलता की कहानियों को अलग से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
भविष्य की संभावनाएं
डॉ. शर्मा के अनुसार, कोटा में अभी भी प्रशिक्षित काउंसलर्स की भारी कमी है, जिसे दूर किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि "COVID-19 महामारी के दौरान हमें यह सीखने को मिला कि कोटा ने अब तक केवल बड़े कैंपस और विशाल कक्षाओं में निवेश किया था। अब हमें एक मिश्रित (ब्लेंडेड) शिक्षण प्रणाली अपनानी होगी, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों का संयोजन हो।"
हालांकि, उन्होंने यह भी चेताया कि एड-टेक कंपनियों की असफलता से सबक लेना जरूरी है, क्योंकि कई कंपनियाँ आक्रामक मार्केटिंग और वित्तीय कुप्रबंधन के कारण ढह गईं।इसलिए, कोटा को नए युग के अनुरूप खुद को ढालते हुए शिक्षण गुणवत्ता, मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों और सामुदायिक समर्थन प्रणाली को मजबूत करना होगा।
कोटा का भविष्य: आईटी हब और एयरपोर्ट की योजना
सुलभ यातायात सुविधाओं की दिशा में, कोटा का ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट अभी निर्माणाधीन है। इसके अलावा, बेंगलुरु की तर्ज़ पर आईटी हब स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है, जिससे छात्रों को करियर के नए अवसर मिल सकें।
कोटा का इतिहास उतार-चढ़ाव और चुनौतियों से भरा रहा है, लेकिन हर बार इस शहर ने अपनी मजबूती और आत्मनिर्भरता से विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है। अब कोटा शैक्षणिक और भावनात्मक कल्याण पर केंद्रित सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से छात्रों के लिए एक अभूतपूर्व सहायता प्रणाली तैयार कर रहा है।
छात्रों की वापसी की उम्मीद
स्थानीय निवासी मानते हैं कि कोटा का लगातार नया रूप लेना और सुधारों को अपनाना इस उम्मीद को जिंदा रखे हुए है कि छात्रों की भीड़ एक बार फिर लौटेगी, और कोटा अपनी पुरानी प्रतिष्ठा वापस हासिल करेगा।
आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन
यदि आप या आपका कोई जानने वाला मानसिक तनाव से गुजर रहा है, तो कृपया मदद लेने से न हिचकिचाएं। आत्महत्या रोकथाम के लिए निम्नलिखित हेल्पलाइनों से संपर्क करें: नेहा आत्महत्या रोकथाम केंद्र – 044- 24640050, आसरा हेल्पलाइन (भावनात्मक सहयोग और आघात सहायता) – +91-9820466726, किरण (मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास) – 1800-599-0019, दिशा – 0471-2552056, मैत्री – 0484-2540530, स्नेहा आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन – 044-24640050याद रखें: हर समस्या का हल है, और मदद हमेशा उपलब्ध है।