महाराष्ट्र में 'हिंदी थोपने' का विवाद: राज्य सरकार ने पलटे अपने ही दो फैसले

राज्य में सभी विपक्षी दलों द्वारा विरोध होता देख महायुती सरकार को दूसरी बार अपना फैसला वापस लेना पड़ा है. अब एक समिति का गठन कर इस पर निर्णय लेने की बात कही गयी है.;

Update: 2025-06-29 17:48 GMT

Politics Over Three Language System: महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में भाषा नीति से जुड़े अपने ही दो अहम आदेश रद्द कर दिए हैं। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब राज्य में 'हिंदी थोपो' के खिलाफ सियासी घमासान तेज हो गया था और विपक्षी दल लगातार सरकार को घेर रहे थे। अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ किया है कि इस नीति का भविष्य तय करने के लिए एक नई कमेटी बनाई जाएगी।

दो आदेश रद्द, अब नई कमेटी करेगी फैसला

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि "हमने तय किया है कि शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति तय करेगी कि स्कूलों में भाषाओं को किस कक्षा से लागू किया जाए, इसे कैसे लागू किया जाए, और छात्रों को क्या-क्या विकल्प दिए जाएं। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही राज्य सरकार त्रि-भाषा नीति पर अपना आखिरी फैसला लेगी। तब तक, 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए दोनों सरकारी आदेश (GR) रद्द कर दिए गए हैं।"

दरअसल, 17 जून के आदेश में कहा गया था कि अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं तक हिंदी 'आमतौर पर' तीसरी भाषा होगी, लेकिन 'अनिवार्य' नहीं। इससे पहले, 16 अप्रैल को फडणवीस सरकार ने एक आदेश जारी कर दिया था, जिसमें अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं तक के छात्रों के लिए हिंदी को 'अनिवार्य' तीसरी भाषा बना दिया गया था। इसी दूसरे आदेश ने 'हिंदी थोपो' विवाद को फिर से हवा दे दी थी। गैर-हिंदी भाषी राज्यों का आरोप रहा है कि उनकी भाषाओं को दरकिनार कर हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है।

विपक्ष और ठाकरे भाइयों का मोर्चा

सरकार के इन दोनों आदेशों की विपक्षी महा विकास अघाड़ी ने जमकर आलोचना की थी, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, और एनसीपी (एसपी) शामिल हैं।

महाराष्ट्र विधानसभा के मॉनसून सत्र से ठीक पहले बोलते हुए, फडणवीस ने साफ किया कि सरकार का मुख्य ध्यान मराठी पर ही रहेगा।


उन्होंने उद्धव ठाकरे पर भी निशाना साधा, जो हिंदी का विरोध कर रहे थे लेकिन अंग्रेजी को स्वीकार कर रहे थे। फडणवीस ने आरोप लगाया कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों को माना था, जिसमें पहली से बारहवीं तक त्रि-भाषा नीति लागू करने और इसके लिए एक समिति बनाने की बात थी।

फडणवीस ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा, "उस समय राज ठाकरे तो कहीं तस्वीर में थे ही नहीं। उन्हें उद्धव से पूछना चाहिए कि जब उनकी पार्टी विपक्ष में शामिल हुई तो उनका रुख क्यों बदल गया।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि बाबासाहेब अंबेडकर चाहते थे कि हर कोई हिंदी भाषा सीखे।


विरोध प्रदर्शन के बाद आया आदेश

इन आदेशों को रद्द करने का ऐलान, मुंबई और पूरे राज्य में शिवसेना (यूबीटी) के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के कुछ घंटों बाद आया है, जहां 17 जून के आदेश की प्रतियां जलाई गई थीं। उद्धव ठाकरे ने तब कहा था कि वे हिंदी के विरोधी नहीं हैं, बल्कि उसके थोपे जाने के खिलाफ हैं।

मुंबई में आने वाले नगर निगम चुनावों को देखते हुए, इस भाषा विवाद ने लंबे समय से बिछड़े ठाकरे भाई-उद्धव और राज-को भी एक साथ ला दिया था। उन्होंने इस मुद्दे पर 5 जुलाई को विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था। हालांकि, यह विरोध अब रद्द हो गया है।

मुख्यमंत्री ने आखिर में बताया कि डॉ. जाधव की अगुवाई वाली समिति ने इस पूरे मामले पर कोई नतीजा निकालने के लिए तीन महीने का समय मांगा है।


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