Maharashtra: क्या है मंत्रियों के कार्यकाल पर ढाई साल का फॉर्मूला, जानें

सूत्रों का दावा है कि NCP और शिवसेना के कोटे से बनाये गए मंत्रियों से पहले ही शपथ पत्र ले लिया गया है कि ढाई साल बाद वो पद छोड़ देंगे ताकि अन्यों की बारी आ सके.;

Update: 2024-12-15 14:06 GMT

Mahayuti 2.0 : महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को फडणवीस मंत्रिमंडल का विस्तार तो हो गया, लेकिन इस प्रक्रिया ने राज्य में नई सियासी चर्चा छेड़ दी है। 39 मंत्रियों को शपथ दिलाए जाने के साथ ही यह घोषणा हुई कि इनमें से अधिकांश का कार्यकाल केवल ढाई साल का होगा। शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी के मंत्रियों से शपथ पत्र लिखवाकर इस बात की पुष्टि की गई है। हालांकि, भाजपा के मंत्रियों पर यह नियम लागू होगा या नहीं, इस पर स्थिति साफ नहीं है।


ढाई साल का फॉर्मूला: क्या है विशेष?
शिवसेना के नेताओं को शपथ लेने से पहले यह आश्वासन देना पड़ा कि वे ढाई साल बाद अपने पद से इस्तीफा देंगे। शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने अपने विधायकों को इस फॉर्मूले के बारे में पार्टी की बैठक में जानकारी दी। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी इस फॉर्मूले की पुष्टि करते हुए कहा कि "जो नेता मंत्री बने हैं, वे ढाई साल तक ही इस पद पर रह सकते हैं।"

भाजपा पर क्यों है संशय?
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि भाजपा के मंत्रियों पर यह नियम लागू होगा या नहीं। भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस मुद्दे पर लचीला रुख अपना सकती है।

शपथ पत्र की शर्तें
सूत्रों के अनुसार शिवसेना और एनसीपी के मंत्रियों से एक लिखित शपथ पत्र लिया गया है, जिसमें यह स्वीकारोक्ति है कि ढाई साल बाद वे अपना पद छोड़ देंगे। यह कदम सत्ता संतुलन बनाए रखने और गठबंधन के भीतर असंतोष को रोकने के लिए उठाया गया है।

शिवसेना और NCP ने क्यों भरवाए शपथ पत्र
सूत्रों का कहना है कि शिवसेना और NCP द्वारा शपथ पत्र भरवाना इसलिए जरुरी था क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों में जो भी नेता शामिल हुए वो कहीं न कहीं सत्ता लोभ के लिए टूट कर शिंदे और अजित पवार के साथ आये। ये सत्ता लोभ अपनी अपनी प्रमुख पार्टियों से अलग होने के बाद ख़त्म हो गया हो ऐसा जरुरी नहीं। यही वजह है कि एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने शपथ पत्र भरवाने के बाद मंत्री पद की शपथ दिलवाई ताकि जो अन्य लोग बच गए हैं उनकी बारी भी आ सके। इन दोनों ही नेताओं के मन में इस बात का भी डर है कि अगर विधायकों में नाराज़गी बढ़ गयी या असंतोष बढ़ गया तो कहीं फिर से टूट फूट न हो जाए, हालाँकि अभी टूट फूट के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।

राजनीतिक असंतोष और चुनौतियां
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद ढाई साल के फॉर्मूले ने असंतोष को भी जन्म दिया है। शिवसेना के विधायक भोंडेकर ने मंत्री पद न मिलने पर उपनेता पद से इस्तीफा दे दिया। RPI नेता रामदास अठावले ने भी नाराजगी जताई और वादा पूरा न होने की बात कही।

सियासी समीकरणों पर असर
यह फॉर्मूला गठबंधन के भीतर सत्ता-साझेदारी का एक नया मॉडल पेश करता है। हालांकि, यह देखना अहम होगा कि क्या यह व्यवस्था गठबंधन की स्थिरता बनाए रख पाएगी या अंततः असंतोष और संघर्ष का कारण बनेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भाजपा पर यह फॉर्मूला लागू नहीं हुआ तो विपक्ष इसे गठबंधन में असमानता और मनमानी का मुद्दा बना सकता है। ढाई साल का फॉर्मूला महाराष्ट्र की राजनीति में एक अनूठा प्रयोग है। इससे गठबंधन की स्थिरता सुनिश्चित करने की कोशिश तो हुई है, लेकिन इसका भविष्य सत्ता के साझेदारों की प्रतिबद्धता और संतुलन बनाए रखने की क्षमता पर निर्भर करेगा।


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