31 साल पहले ममता ने खाई थी कसम, मुद्दा वही लेकिन अब साध ली है चुप्पी
ममता बनर्जी जब विपक्ष में थीं तब रेप जैसे मामलों में सरकारों को घेरा करती थीं। लेकिन उन्हें रेप जैसे मामलों में लोगों के विरोध में राजनीतिक साजिश कुछ अधिक नजर आती है।
Mamata Banerjee News: सियासत का एक अघोषित सिद्धांत है कि जो मुद्दे आपके एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करे उस पर खूबर बोलो। लेकिन जो मुद्दे गौण लगे उस पर चुप्पी साध लो। दरअसल कोलकाता के मशहूर आर जी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर को अंजाम दिया जाता है। लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने जिस तरीके से इस मामले में एक्शन लिया उसके बाद सरकार सवालों के घेरे में है। वैसे तो अब यह जांच सीबीआई के हवाले है। इन सबके बीच 1993 की एक घटना का जिक्र करेंगे जिसे देख ममता बनर्जी ने कसम खाई थी कि कोलकाता के रॉयटर्स बिल्डिंग में कदम तभी रखेंगी जब वामदल का पूरी तरह से बंगाल में सफाया हो जाएगा। पहले जानिए वो मामला क्या था।
1993 का नाडिया रेप केस
साल 1993 का था जगह नाडिया जिला। एक दिव्यांग बच्ची के साथ रेप जैसा घिनौना कृत्य होता है। सूबे में तब वामदल की सरकार थी और मुखिया ज्योति बसु थे। नाडिया की बलात्कार वाली घटना के बाद बंगाल सुलग पड़ा था. ममता बनर्जी विरोध जताने के लिए ज्योति बसु से मिलना चाहती थीं। वो रायटर्स बिल्डिंग स्थित सीएम दफ्तर के सामने धरने पर बैठ गईं। पुलिस वाले उनसे मनुहार करते रहे। जब ज्योति बसु अपने दफ्तर पहुंचने के लिए घर से निकले। उसी समय कोलकाता पुलिस ने ममता बनर्जी को जबरन वहां से उठाया और लाल बाजार स्थित पुलिस मुख्यालय गए उस दौरान उनका कपड़ा भी फट गया। उस समय ममता ने कसम खाई कि रॉयटर्स बिल्डिंग में कदम तभी रखूंगी जब वाम दल का सूरज अस्त हो गया। 18 साल बाद वो मौका 2011 में आया जब उनका मां, माटी और मानुष का नारा काम कर गया था और वामदलों का किला ढह चुका था।
तब ममता ने खाई थी कसम
अब आप याद करिए कि 1993 में बलात्कार की वारदात पर ममता ने कहा था कि उस सरकार को सत्ता में बने रहने का हक नहीं है जो बेटियों का आबरू की हिफाजत नहीं कर सके। लेकिन 2011 में सत्ता संभालने के सिर्फ दो साल के भीतर साल्टलेक पार्क और कामदूनी प्रकरण हुआ। लेकिन ममता बनर्जी को तब इसमें सियासत नजर आने लगी थी। एक बार फिर कोलकाता शर्मसार हुआ। नॉर्थ 24 परगना की रहने वाली ट्रेनी डॉक्टर सरकार के स्वामित्व वाले आरजी कर अस्पताल में शर्मनाक और भयानक घटना का शिकार होती है और ममता बनर्जी इसमें वाम और राम को देखती है। यानी कि वो वाम दलों और बीजेपी के निशाना बना रही है। सवाल यहीं से शुरू होता है कि हर एक नेता जो विपक्ष में रहते हुए सत्ता पक्ष की घेरेबंदी करता है वो सत्ता में आते ही खुद के लिए अलग पैमाना क्यों बना लेता है। उसे हर घटना में सियासत नजर आने लगती है।