'टीएमसी गुंडों' के आतंक ने ममता के छवि बदलने के प्रयास को पहुंचाई चोट

हाल के वीडियो में दिखाया गया है कि टीएमसी के ताकतवर नेताओं के इशारे पर भीड़ द्वारा तत्काल न्याय किया जा रहा है, जबकि मुख्यमंत्री ने कहा है कि हिंसा और अपराध बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

Update: 2024-07-11 12:06 GMT

Mamata Banerjee Image Makeover: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा अपनी पार्टी और प्रशासन की छवि सुधारने के लिए हाल ही में किए गए सार्वजनिक प्रयास को राज्य में लगातार चल रही भीड़ हिंसा की वजह से करारा झटका लगा है. जन सतर्कता या जागरूकता के नाम पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से जुड़े ताकतवर लोगों द्वारा की गयी मारपीट ने ममता बनर्जी की तथाकथित सफाई मुहिम पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

मंगलवार (9 जुलाई) को एक दर्दनाक वीडियो क्लिप वायरल हुआ, जिसमें टीएमसी के कद्दावर नेता जयंत सिंह और उनके साथी उत्तर 24 परगना के कमरहाटी के एक क्लब में एक महिला को पकड़कर उसकी पिटाई करते नजर आये.

बुरे लड़के

इससे पहले एक अन्य वीडियो क्लिप में एक किशोर लड़के और उसकी मां को उसी जिले के अरियादाहा में भीड़ द्वारा हमला करते हुए देखा गया था. इस हमले में भी मुख्य आरोपी जयंत सिंह ही थे.

ये घटनाएं सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े स्थानीय गुंडों से जुड़े अत्याचारों के वीडियो की श्रृंखला का हिस्सा मात्र हैं, जो पिछले हफ्तों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से सामने आए हैं.

टीएमसी के एक पदाधिकारी, तजीमुल इस्लाम उर्फ जेसीबी को उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा में एक महिला और एक पुरुष को “अवैध संबंध” में शामिल होने के आरोप में सार्वजनिक रूप से पीटते हुए देखा गया था, जिसका एक वीडियो 30 जून को वायरल हुआ था.

कंगारू कोर्ट

भीड़ द्वारा न्याय के क्रूर वितरण के एक अन्य मामले में, जलपाईगुड़ी जिले के फुलबारी में एक गृहिणी को उसके कथित अवैध संबंध के चलते सार्वजनिक रूप से गाली दी गई तथा अपमानित किया गया. पीड़िता के पति ने आरोप लगाया था कि इलाके की प्रभावशाली महिला टीएमसी नेता स्वप्ना अधिकारी ने कंगारू कोर्ट का आयोजन किया था. बाद में महिला ने अपमान के कारण आत्महत्या कर ली.

पिछले एक पखवाड़े में बंगाल के विभिन्न हिस्सों में भीड़ हिंसा के जो दर्जन भर मामले सामने आए हैं, उनमें से ये मामले राज्य में नागरिक और पुलिस प्रशासन की लगभग विफलता को उजागर करते हैं.

ममता का शोक

ये घटनाएं इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि पिछले महीने टीएमसी सुप्रीमो ने अपने पार्टी सहयोगियों और प्रशासन के सदस्यों पर नियमों के उल्लंघन के लिए कड़ी कार्रवाई की थी.

त्वरित न्याय की इन घटनाओं में से कई में मुख्य आरोपी टीएमसी के पदाधिकारी हैं, जिससे पार्टी के गुंडों द्वारा कानून का शासन चलाने की बहुचर्चित प्रवृत्ति सामने आ गई है, जबकि बनर्जी बार-बार कहती रही हैं कि हिंसा और अपराध बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे.

वरिष्ठ पत्रकार मोनीदीपा बनर्जी ने कहा, "बंगाल में अब इस भीड़ द्वारा हत्या की मानसिकता को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है, साथ ही इसे रोकने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का घोर अभाव भी देखने को मिल रहा है."

आतंक का शासन

इस्लाम और सिंह दोनों ही बार-बार अपराध करने वाले लोग हैं. पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस्लाम के खिलाफ पहले से ही 12 मामले दर्ज हैं, जिनमें पिछले साल सीपीआई(एम) कार्यकर्ता की हत्या का मामला भी शामिल है. सिंह पर हत्या, हत्या के प्रयास और मारपीट समेत नौ मामले दर्ज हैं. उसे पिछले साल जून में बिल्डर अरित्रा घोष पर कथित तौर पर गोली चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

हालांकि, ऐसे जघन्य आरोप उन्हें लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रख सके, क्योंकि उनके राजनीतिक रसूख के कारण ऐसा संभव नहीं था. दोनों कुछ ही महीनों में जमानत पर बाहर आ गए और फिर से अपना आतंक का राज शुरू कर दिया.

बलपूर्वक तरीके

हाल ही में उनकी क्रूरता के वायरल होने के बाद पुलिस ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया. लेकिन विपक्षी दलों को इस बात पर संदेह है कि इस रसूखदार आरोपियों को न्याय के कटघरे में लाया जाएगा या नहीं. जिस तरह से भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय और सीपीआई (एम) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम के खिलाफ इस बात के लिए एफआईआर दर्ज करवाई गयी कि इन लोगों ने कोड़े मारने की घटना का वीडियो वायरल किया था. विपक्षियों का केहना है कि ये FIR सिर्फ और सिर्फ मामले को कमजोर करके वास्तविक अपराधियों को बचाने का प्रयास है.

सलीम ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर के बारे में कहा, "ऐसे मामलों में टीएमसी की एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) विरोध की आवाज़ के खिलाफ फर्जी मामले दर्ज करना है." उन्होंने कहा कि "टीएमसी अपराधी और पुलिस मिलकर काम करते हैं."

राजनेताओं के मित्र

संदेशखली के टीएमसी नेता शाहजहां शेख ने हाल ही में अपने कथित अत्याचारों के लिए कुख्याति प्राप्त की. लेकिन ज़्यादातर मामलों में इन “बाहुबलियों” की हरकतें रिपोर्ट नहीं की जाती हैं, क्योंकि पीड़ित अक्सर बोलने से डरते हैं या पुलिस आँखें मूंद लेती है या विधायकों और सांसदों के गुस्से से बचने के लिए कथित तौर पर मिलीभगत करती है.

इस्लाम को चोपड़ा विधायक हमीदुल रहमान का करीबी बताया जाता है. हालांकि, विधायक ने कथित तौर पर पार्टी नेतृत्व के दबाव में खुद को इस्लाम से अलग कर लिया. लेकिन वे ये याद दिलाना नहीं भूले कि चोपड़ा ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में टीएमसी को एक लाख वोटों की बढ़त दिलाई थी. चोपड़ा विधानसभा क्षेत्र दार्जिलिंग लोकसभा सीट का हिस्सा है.

सिंह को टीएमसी के कमरहाटी विधायक मदन मित्रा का करीबी बताया जाता है. अब उन्होंने पुलिस और टीएमसी सांसद सौगत रॉय पर सिंह को संरक्षण देने का आरोप लगाया है.

पुलिस मूकदर्शक के सिवा कुछ नहीं

मित्रा ने दावा किया कि पुलिस ने कार्रवाई नहीं की, जबकि उसे जयंत सिंह द्वारा तालतला क्लब में की जा रही अवैध गतिविधियों के बारे में पता था. "जब भी मैंने पुलिस से कार्रवाई करने का आग्रह किया, तो मुझे सांसद (सौगत रॉय) से बात करने के लिए कहा गया. कई बार मुझे अपनी जान का डर लगता है, क्योंकि मैं जुआ, सट्टा और अन्य अवैध गतिविधियों के खिलाफ लड़ रहा हूं," टीएमसी विधायक ने कहा. रॉय ने मित्रा के आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

राजनीतिक टिप्पणीकार निर्मल्या बनर्जी कहते हैं, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन बाहुबलियों को अपने-अपने इलाकों पर नियंत्रण करने की खुली छूट देने में टीएमसी की भूमिका है. सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के संरक्षण के बिना, उनके खिलाफ दर्ज कई मामलों के बावजूद उनका राज करना संभव नहीं होता."

वामपंथी-टीएमसी गुंडे

ये बाहुबली टीएमसी की मजबूत चुनावी मशीनरी के अहम हिस्से हैं. पार्टी के चोपड़ा विधायक ने इस बात का संकेत तब दिया जब उन्होंने कोड़े मारने के संदर्भ में दावा किया कि पार्टी को इस क्षेत्र में भारी बढ़त मिल रही है.

बाहुबलियों की मदद से वोट जुटाने की ये परंपरा सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के दौर से चली आ रही है. वास्तव में, इस्लाम और शाहजहां सहित टीएमसी के कई मौजूदा बाहुबली नेता वाम मोर्चे से अलग हुए हैं.

वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी इन ताकतवर लोगों को स्थानीय मामलों पर प्रभाव डालने की अनुमति देती है, ताकि वे अपने प्रभाव का प्रयोग करके वोट जुटा सकें, जिसे राजनीतिक भाषा में प्रभावी बूथ प्रबंधन कहा जाता है, जिससे इस लेन-देन की व्यवस्था को कुछ सम्मान मिल सके.

मतगणना

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के आने के बाद से वोटों की गिनती बूथवार की जाती है. इससे राजनीतिक दलों को ये पता चल जाता है कि किसी खास इलाके में किसने उनका समर्थन किया और किसने नहीं.

चुनाव आयोग (ईसी) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या 1,500 से अधिक नहीं हो सकती. पार्टियों ने "बेहतर बूथ प्रबंधन" की आड़ में मतदाताओं की राजनीतिक संबद्धता पर नज़र रखने के लिए बूथ कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया.

एक घनिष्ठ ग्रामीण व्यवस्था में इस तरह की राह पर चलना बहुत मुश्किल नहीं है. खासकर इसलिए क्योंकि बंगाल में ग्रामीण समाज लंबे समय से पार्टी समाज में तब्दील हो चुका है, जहां लगभग हर निवासी खुद को किसी न किसी पार्टी से जोड़ता है.

चुनाव-पश्चात हिंसा

मतदाताओं को चिन्हित करने का एक परिणाम ये होता है कि चुनाव से पहले या बाद में राजनीतिक हिंसा होती है, ताकि पार्टी का प्रभुत्व स्थापित किया जा सके या उसे बरकरार रखा जा सके। यहीं पर बाहुबलियों की उपयोगिता सामने आती है.

बीरभूम जिले के बोलपुर के कचारी पट्टी के एक निवासी ने कहा, "अगर हम सत्ताधारी पार्टी के साथ सहयोग करते हैं, तो हमें किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है और राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है. अगर हम अनुपालन करने में विफल रहते हैं, तो सब कुछ बिगड़ जाता है."

भाजपा मतदाताओं पर हमला

इलाके के भाजपा नेता धर्मेंद्र रजक ने आरोप लगाया, "टीएमसी के गुंडों ने 4 जून की रात को बोलपुर विधानसभा क्षेत्र के बूथ नंबर 222 के मतदाता बलराम मल और मोहन बरुई के घर पर हमला किया क्योंकि उनकी पार्टी बूथ पर बढ़त हासिल करने में विफल रही. दोनों ने भाजपा को वोट दिया, हालांकि वे सीधे तौर पर पार्टी से जुड़े नहीं हैं."

इस तरह की जवाबी कार्रवाई की खबरें बहुत हैं. 4 जून को संसदीय चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद से पुलिस ने चुनाव के बाद की हिंसा के लगभग 100 मामले दर्ज किए हैं.

तृणमूल कांग्रेस की ऑटो यूनियन ने कोलकाता के उल्टाडांगा स्थित एक आवासीय परिसर में घुसकर हंगामा किया, क्योंकि पार्टी को लोकसभा चुनाव में इस सोसायटी से पर्याप्त वोट नहीं मिले थे.

चुनाव आयोग का प्रस्ताव

चुनाव आयोग ने 21 नवंबर, 2008 को विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव को लिखे पत्र में नियमों में संशोधन करने की सिफारिश की थी, ताकि 14 ई.वी.एम. (अर्थात 14 मतदान केन्द्रों) के समूह में दर्ज मतों की गणना के लिए टोटलाइज़र के उपयोग का प्रावधान किया जा सके.

चुनाव आयोग के प्रस्ताव के पीछे ये तर्क था कि प्रत्येक मतदान केंद्र द्वारा मतों की गणना की वर्तमान प्रणाली से प्रत्येक बूथ में मतदान के रुझान का पता चल जाता है, जिससे उस क्षेत्र के मतदाताओं को उत्पीड़न, धमकी और चुनाव के बाद उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

दुर्भाग्यवश, परिवर्तन अभी तक शुरू नहीं किया गया है.

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