कांग्रेस पर मायावती इतनी हमलवार क्यों, 1995 गेस्ट हाउस कांड का खास जिक्र

बीएसपी सुप्रीमो मायावती इन दिनों सक्रिय हो गई हैं। खास बात यह है कि वो जाति गणना, एससी-एसटी कोटा पर बीजेपी-सपा को घेर तो रही हैं लेकिन निशाने पर राहुल गांधी ज्यादा हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-26 04:37 GMT

Mayawati: आम चुनाव 2024 के नतीजे जब सामने आए तो किसी को यकीन नहीं हुआ कि बीएसपी के खाते में एक भी सीट नहीं आएगी। लेकिन ना सिर्फ बीएसपी को सीट मिली बल्कि वोट शेयर में भी कमी आ गई। बीएसपी के कोर वोटर्स भी छिटक गए। राहुल गांधी के संविधान-आरक्षण बचाओ नारे ने असर दिखाया और कांग्रेस ने बीएसपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगा दिया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने भी गैर जाटव वोटबैंक में सेंधमारी की। बीएसपी की राजनीति भी यही रही है कि करीब 20 फीसद एससी वोटबैंक से भले ही वो अपने दम पर सत्ता में ना आए किंगमेकर तो बन सकते हैं।

2007 यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी अपने दम पर लखनऊ की गद्दी पर काबिज हुई लेकिन नारा बहुजन से बदलकर सर्वजन हो चुका था। हालांकि जब सर्वजन ने बीएसपी से किनारा किया तो यूपी की सत्ता मायावती से दूर हो गई। रही सही कसर 2024 के चुनाव ने पूरी कर दी। अब जब अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना है तो बीएसपी दमखम के साथ सियासी पिच पर बैटिंग करने के लिए तैयार है। अपनी इस लड़ाई में मायावती अब मुखर हो कर कांग्रेस और सपा पर निशाना साध रही हैं। लेकिन राहुल गांधी पर वो कुछ अधिक हमलावर हैं। इस रणनीति के पीछे की क्या वजह है उसे समझने से पहले मायावती ने क्या कुछ कहा पहले उसे जानने की जरूरत है।

मायावती ने क्या कहा

सपा जिसने 2 जून 1995 में बीएसपी द्वारा समर्थन वापिसी पर मुझ पर जानलेवा हमला कराया था तो इस पर कांग्रेस कभी क्यों नहीं बोलती है? जबकि उस दौरान् केन्द्र में रही कांग्रेसी सरकार ने भी समय से अपना दायित्व नहीं निभाया था।

 तभी फिर मान्य. श्री कांशीराम जी को अपनी बीमारी की गम्भीर हालत में भी हॉस्पिटल छोड़कर रात को इनके मा. गृह मन्त्री को भी हड़काना पड़ा था तथा विपक्ष ने भी संसद को घेरा, तब जाकर यह कांग्रेसी सरकार हरकत में आई थी।

क्योंकि उस समय केन्द्र की कांग्रेसी सरकार की भी नीयत खराब हो चुकी थी, जो कुछ भी अनहोनी के बाद यहाँ यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाकर, पर्दे के पीछे से अपनी सरकार चलाना चाहती थी, जिनका यह षड़यन्त्र बीएसपी ने फेल कर दिया था।

साथ ही, उस समय सपा के आपराधिक तत्वों से बीजेपी सहित समूचे विपक्ष ने मानवता व इन्सानियत के नाते मुझे बचाने में जो अपना दायित्व निभाया है तो इसकी कांग्रेस को बीच-बीच मे तकलीफ क्यों होती रहती है, लोग सचेत रहें।

इसके इलावा, बीएसपी वर्षों से जातीय जनगणना के लिए पहले केन्द्र में कांग्रेस पर और अब बीजेपी पर भी अपना पूरा दबाव बना रही है, जिसकी पार्टी वर्षों से इसकी पक्षधर रही है तथा अभी भी है।

लेकिन जातीय जनगणना के बाद, क्या कांग्रेस SC, ST व OBC वर्गों का वाजिब हक दिला पायेगी? जो SC/ST आरक्षण में वर्गीकरण व क्रीमीलेयर को लेकर अभी भी चुप्पी साधे हुए है, जवाब दे।

क्या था 1995 गेस्ट हाउस कांड 

आज से करीब 29 साल पहले यूपी में मुलायम सिंह और मायावती की साझा सरकार थी। एग्रीमेंट ढाई ढाई साल का था। एग्रीमेंट के मुताबिक मुलायम सिंह को सत्ता मायावती को सौंपनी थी। लेकिन सत्ता हस्तांतरण को लेकर विवाद हो गया। समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच तल्खी बढ़ती जा रही थी। महीना जून का था तारीख 3-4 जून। मौसम में गरमी तो थी ही सियासी पारा भी चढ़ाव पर था। मायावती, स्टेट गेस्ट हाउस में रुकी हुई थीं। लेकिन उस रात का मंजर ऐसा था कि मायावती की जान पर आ गई थी। किसी तरह से लखनऊ बीजेपी के स्थानीय नेताओं की मदद से उनकी जान बची और उस घटना को स्टेट गेस्ट हाउस कांड का नाम मिला। उसके बाद समाजवादी पार्टी और बीएसपी के रास्ते अलग हो गए। हालांकि 2019 के आम चुनाव में गिले-शिकवे भुलाकर दोनों दल एक साथ आए लेकिन नतीजों के बाद रास्ते अलग हो गए थे। 

अब कांग्रेस पर निशाना क्यों

संविधान और आरक्षण बचाओ, एससी-एसटी कोटा, क्रीमी लेयर के जरिए राहुल गांधी लगातार ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अनुसूचित जाति के वो हितैषी है। ऐसा जब वो कर रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि निशाने पर बीएसपी है। बता दें कि एससी समाज पारंपरिक तौर पर कांग्रेस का वोटबैंक हुआ करता था। लेकिन 1980 के दशक में मायावती की यूपी की राजनीति में एंट्री हुई तो कांग्रेस के हाथ खाली हो गए और कांग्रेस पिछले चालीस साल से यूपी की सत्ता से दूर है। अब जब राहुल गांधी इस विषय पर इतने मुखर हैं कि तो मायावती प्रतीकों और घटनाओं के जरिए अपने समाज को संदेश दे रही हैं कि कांग्रेस से सवाल पूछो कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के साथ क्या किया। 1995 में लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस में जो कुछ हुआ उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और वो उस घटना को संज्ञान में ले सकते थे। लेकिन जमीनी तौर पर कुछ नहीं किया। हकीकत में एससी समाज के वोट की फसल पर कांग्रेस की नजर है। 

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