नजूल जमीन पर पर गैर तो गैर अपनों ने भी 'योगी' को घेरा, क्या है ये पूरा मामला?
यूपी में इस समय नजूल भूमि की चर्चा हो रही है. खास बात यह है कि इससे संबंधित विधेयक का विरोध विधान परिषद में खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने किया।
Nazool Land: देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में नजूल भूमि चर्चा के केंद्र में है। दरअसल यूपी विधानसभा में विपक्ष और सत्ता पक्ष के विधायकों के विरोध के बाद इसे पारित किया गया। हालांकि विधान परिषद में खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विरोध कर दिया और एक तरह से यह विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया। विधानसभा में हर्ष वाजपेयी, सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि जो लोग सालों साल से इस तरह की जमीन पर आशियान बना कर रहे हैं आखिर वो कहां जाएंगे। इन सबके बीच आसान तरीके से बताएंगे कि यह पूरा मामला क्या है।
क्या है नजूल भूमि
नजूल जमीन का मसला सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है। देश के करीब करीब सभी शहरों में यग मामला सामने आता रहा है। इसका इतिहास ब्रिटिश शासन काल से जुड़ा हुआ है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत के अधिकांश हिस्सों पर अंग्रेजों का सीधा शासन था लेकिन रियासतें भी थीं। कई रियासतों ने अंग्रेजी सरकार की जागीर बन गई थीं। हालांकि कुछ की दुश्मनी बनी रही। ऐसी रियासतों ने लड़ाई भी लड़ी. हालांकि हार की वजह से अंग्रेजी सरकार ने उन जमीनों पर कब्जा कर लिया। जो लोग उन जमीनों पर रहते थे वो टैक्स दिया करते थे। 15 अगस्त को देश के आजाद होने के बाद अंग्रेजी सरकारों ने उन जमीनों को खाली कर दिया जिस पर कब्जा किया था। जिन जमीनों के दस्तावेज नहीं थे उन जमीनों को ही नजूल जमीन का नाम मिला।
नजूल भूमि का अधिकार सरकार के पास होता है। इसे राज्य की संपत्ति माना जाता है. हालांकि इसे एक अवधि जो 15 से 99 साल की होती है। लीज जमीन पर एक निश्चित शुल्क के साथ साथ अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन रेवेन्यू विभाग में किया जा सकता है। नियम के मुताबिक सरकार नजूल भूमि को वापस लेने का अधिकार रखती है। अगर बात लखनऊ की करें तो यहां नजूल भूमि के एक बड़े हिस्से का उपयोग हाउसिंग सोसाइटी के लिए किया गया है। अब सरकार उन जमीनों को वापस लेना चाहती है।