कीलाड़ी में नई खोज: ASI के नकारे गए क्षेत्र में मिला बड़ा सबूत
कीलाड़ी से लगातार मिल रहे नए सबूत यह संकेत देते हैं कि तमिलनाडु की प्राचीन सभ्यता कहीं ज़्यादा विकसित और संगठित थी, जितना पहले समझा गया था। अब सभी की नजरें इस ओर हैं कि आगे की खुदाई में क्या और चौंकाने वाले रहस्य सामने आते हैं।;
तमिलनाडु के कीलाड़ी (Keeladi) पुरातात्विक स्थल पर खुदाई के तीसरे खांचे (trench) में 30 फीट लंबी एक नई संरचना पाए जाने की खबर सामने आई है। यह खोज उस स्थान पर हुई है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) पहले कोई महत्वपूर्ण प्रमाण नहीं कहकर खारिज कर चुका था। यह संरचना उस समय सामने आई है, जब ASI ने एक सेवानिवृत्त पुरातत्वविद् से रिपोर्ट लिखने को कहा था, जिसमें बताया गया था कि तीसरे खांचे में कोई खास पुरातात्विक सामग्री नहीं है। अब उसी खांचे में इस लंबी संरचना का मिलना पुरानी रिपोर्ट्स पर सवाल खड़े कर रहा है।
शहरी सभ्यता के प्रमाण
कीलाड़ी स्थल पर अब तक दो चरणों की खुदाई में ASI को करीब 5,800 कलाकृतियां मिल चुकी हैं. इससे पहले तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग ने 14,000 से अधिक कलाकृतियां खोजी थीं। इन खोजों में मिट्टी के बर्तन, लेखांकित टुकड़े और औजार शामिल हैं, जो यह दर्शाते हैं कि संगम युग के दौरान तमिलनाडु में एक शहरी सभ्यता मौजूद थी। वर्तमान में तमिलनाडु सरकार कीलाड़ी स्थल को ओपन-एयर म्यूज़ियम में बदलने की प्रक्रिया में है।
पहले की खुदाई और विवाद
कीलाड़ी में ASI ने पहले 2014, 2016 और 2017 में खुदाई की थी। 2014 और 2016 की खुदाई अमरनाथ रामकृष्ण के नेतृत्व में हुई थी। बाद में उन्हें परियोजना से हटा दिया गया और उनकी जगह श्रीराम को नियुक्त किया गया। श्रीराम की टीम ने उस क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से में खुदाई की और यह कहकर काम बंद कर दिया कि "यहां कुछ महत्वपूर्ण नहीं मिला।" अब उसी जगह से मिली नई संरचना ने ASI की उस रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
संरचना की विशेषताएं
विशेषज्ञों के अनुसार यह संरचना पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई हैऔर इसे करीब 90 सेंटीमीटर गहराई पर पश्चिमी हिस्से में खोजा गया है। इसकी लंबाई लगभग 10 मीटर (30 फीट) बताई जा रही है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह संरचनाकिसी कार्यशाला या औद्योगिक भवन की हो सकती है।
इतिहासकारों ने उठाए सवाल
प्रेसिडेंसी कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रोफेसर वी. मरप्पन ने The Federal से बातचीत में कहा कि इस नई खोज से कीलाड़ी की ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्ता और भी मजबूत होती है। इस ढांचे में इस्तेमाल की गई ईंटें बिल्कुल वैसी ही हैं जैसी कीलाड़ी की अन्य संरचनाओं में पाई गई थीं। उन्होंने आगे कहा कि अमरनाथ रामकृष्ण की टीम ने पहले ही कहा था कि यह क्षेत्र औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। अब यह नई संरचना साबित करती है कि शायद अभी और हिस्से ज़मीन के नीचे दबे हुए हैं। इस खोज ने ASI की पहले की रिपोर्ट्स पर इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के बीच चिंता और आलोचना को जन्म दिया है।