केरल के मुसलमानों का नहीं है पाकिस्तान से कोई लेना-देना, अलग है उनका इतिहास

भारत में मुस्लिम पहचान केरल में एक समंदर पार सभ्यता से जुड़ी परंपरा की देन है। ये उत्तर भारत की भू-आधारित राजनीतिक कहानी की देन नहीं है।;

Update: 2025-05-15 11:35 GMT
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जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तो केरल को अक्सर एक राजनीतिक आरोपों वाले नैरेटिव में घसीटा जाता है। खासकर जब वाम मोर्चा या कांग्रेस जैसी पार्टियाँ केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना करती हैं, तब दक्षिणपंथी तबकों द्वारा केरल पर "पाकिस्तान-समर्थक" होने का आरोप लगाया जाता है।

झूठे आरोप और सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा

सोशल मीडिया पर केरल के IUML (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) के हरे झंडों को पाकिस्तानी झंडा बताकर प्रचारित किया जाता है, मॉर्फ की गई तस्वीरें और संपादित वीडियो क्लिप साझा कर कांग्रेस या वाम दलों पर “जिहादी तुष्टिकरण” का आरोप लगाया जाता है। लेकिन ये आरोप इतिहास और सच्चाई से कोसों दूर हैं।

केरल के मुसलमानों की समुद्री विरासत

केरल में इस्लाम की जड़ें उत्तर भारत से पहले की हैं। मालाबार के मुसलमानों की पहचान अरब समुद्री व्यापार मार्ग से जुड़ी है — सऊदी अरब, ओमान, यमन जैसे देशों से आए व्यापारियों के ज़रिए। इतिहासकार डॉ. अभिलाष मलयिल बताते हैं, “केरल के मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान उस समय बनी जब इस्लाम का उदय हो रहा था। वे अपने पूर्वजों को शुरुआती सहाबी (साथी) मानते हैं जो अरब व्यापारियों के रूप में केरल आए थे।”

पाकिस्तान की दो-राष्ट्र थ्योरी को केरल में समर्थन नहीं मिला

मालाबार के मुस्लिम समुदाय ने पाकिस्तान आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया। मुस्लिम लीग के स्थानीय नेताओं ने "Why Pakistan?" जैसे पर्चे बाँटकर अलग राष्ट्र की अवधारणा को खारिज किया। जिन्ना की पार्टी से अलग होकर इस्माइल साहिब ने एक भारत समर्थक IUML की नींव रखी, जिसने पाकिस्तान आंदोलन का खुला विरोध किया। उर्दू नहीं, अरबी केरल के मुसलमानों की धार्मिक और शैक्षिक भाषा रही है।

सांस्कृतिक अलगाव: उत्तर भारत से अलग पहचान

केरल के मुसलमान शाफई मसलक को मानते हैं, जो उत्तर भारत के हानाफ़ी मत से अलग है। मुग़ल शासकों का कोई उल्लेख उनके धार्मिक ग्रंथों या मस्जिदों के खुत्बों में नहीं मिलता है। इसके बजाय कुछ खुत्बों में ओमान के सुलतान का नाम आता है — यह दर्शाता है कि उनका झुकाव पश्चिम एशिया की ओर रहा है, न कि उत्तर भारत की ओर।

"पाकिस्तान समर्थक" नारों का मिथक

दक्षिणपंथी अक्सर यह दावा करते हैं कि मालाबार के मुसलमानों ने "पाकिस्तान लेने के लिए छुरी भी खरीदेंगे" जैसे नारे लगाए। लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड इस दावे का समर्थन नहीं करते। विभाजन के समय अधिकांश केरल मुस्लिम भारत में ही रहे, केवल मुट्ठी भर लोग पाकिस्तान गए — जिनमें से कुछ बाद में भारत लौटे और नागरिकता के लिए कानूनी लड़ाई में फंसे।

केरल सरकार का मानवीय रुख

आज भी केरल में लगभग 104 ऐसे लोग हैं जो पाकिस्तान से लौटे और अब भारतीय नागरिकता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। केरल सरकार ने उन्हें निर्वासित करने से मना कर दिया, और मानवीय आधार पर उनका समर्थन किया।

निष्कर्ष

केरल के मुसलमानों की पहचान पाकिस्तान समर्थक राजनीति से नहीं, बल्कि समुद्र पार की सांस्कृतिक और व्यापारिक विरासत से बनी है। वे स्थानीय परंपराओं, भारतीय संविधान, और लोकतांत्रिक मूल्यों में रचे-बसे हैं। उन्हें बार-बार किसी विदेशी एजेंडे से जोड़ना न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि सामाजिक रूप से भी खतरनाक ध्रुवीकरण का उपकरण है।

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