फूलपुर में 'केशव' की अग्निपरीक्षा, सपा के 'सरोज' दिखा पाएंगे दम?

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। फूलपुर उनमें से एक है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-14 08:56 GMT

Phoolpur Assembly Bypolls: देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी का चुनावी नतीजा जब सामने आया तो हैरानी आम और खास दोनों लोगों को हुई। अब जबकि 10 विधानसभाओं के लिए उपचुनाव होने जा रहा है तो सबकी नजर तीन खास सीटों पर है। मिल्कीपुर, कटेहरी और फूलपुर उनमें से एक है। मिल्कीपुर और कटेहरी की जिम्मेदारी जहां योगी आदित्यनाथ ने खुद संभाली है। वहीं फूलपुर की जिम्मेदारी डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने ली है। यह चुनाव बीजेपी के लिए तो अहम है साथ ही में अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। समाजवादी पार्टी ने दलित समाज से आने वाले इंद्रजीत सरोज को प्रभारी बनाया है। केशव और सरोज कौन किस पर भारी पड़ेगा यह तो देखने वाली बात होगी। लेकिन सबसे पहले नजर इस विधानसभा की जातीय गणित पर डालते हैं.

जाति की गणित का इशारा कुछ और
अगर फूलपुर की बात करें तो अनुसूचिक जाति की संख्या 75 हजार, यादव 67 हजार, पटेल 60 हजार, ब्राह्मण 45 हजार, मुस्लिम 50 हजार, वैश्य 16 हजार, निषाद 22 हजार, क्षत्रिय 15 हजार हैं। यानी कि संख्या बल के हिसाब से यहां समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी है। लेकिन बीएसपी के ताल ठोंकने के बाद तस्वीर बदल सकती है। दरअसल बीएसपी पहले उपचुनाव में शिरकत नहीं करती थी। लेकिन अब मायावती सक्रिय हुईं है और समाजवादी पार्टी सीधे निशाने पर है। इस सीट के नतीजे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लिए भी है क्योंकि इनका नाता भी इस इलाके से है और फूलपुर लोकसभा से सांसद भी रह चुके हैं। ये अलग बात है कि 2022 में सिराथू विधानसभा से खुद का चुनाव हार गए थे।

बीजेपी-एसपी दोनों के लिए अहम
यह लड़ाई समाजवादी पार्टी के लिए क्यों अहम है। उसे समझने के लिए अखिलेश यादव की उन बातों को ध्यान में रखना होगा जो वो आम चुनाव के दौरान बोला करते थे। आम चुनाव 2024 के दौरान संविधान और आरक्षण खतरे का राग इंडिया गठबंधन के नेताओं ने इतना बुलंद तरीके से किया था कि उसका असर सीटों की संख्या पर दिखाई दिया। अगर फूलपुर में समाजवादी पार्टी जीत दर्ज करने में कामयाब होती है तो समाजवादी के रणनीतिकारों को यकीन कर सकते हैं कि उनकी नीति सही दिशा में है। समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से इंद्रजीत सरोज नाम के दलित चेहरे को प्रभारी बनाया है उससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि वो समाज के सभी वर्गों को एक साथ एक मंच देने में भरोसा करती है। 

अब यह चुनाव केशव प्रसाद मौर्य.के लिए क्यों अहम है उसे समझिए। केशव प्रसाद मौर्य बड़े बड़े बोल के लिए जाने जाते हैं। हालांकि वो 2022 के विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट से चुनाव हार गए थे। चुनाव हारने के बाद भी सामाजिक समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने सरकार में जगह दी। लेकिन आम चुनाव के नतीजों के बाद जिस तरह से उन्होंने सरकार से बड़ा संगठन का नारा बुलंद किया उससे इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ से उनकी नहीं बन रही है। ऐसे में अगर वो इस सीट पर बीजेपी को जीत दिलाने में कामयाब होते हैं तो उनका कद बढ़ेगी। लेकिन यदि नतीजा नकारात्मक होता है तो निश्चित तौर पर साख पर असर पड़ेगा। 


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