बिहार में एक और पार्टी दस्तक के लिए तैयार, क्या PK की राह आसान होगी?

आने वाले कुछ महीनों में बिहार में एक नए दल का उदय होने जा रहा है. जन सुराज अभियान को प्रशांत किशोर अब नए कलेवर में पेश करने वाले हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-07-29 02:07 GMT

Prashant Kishor Jan Suraj Abhiyan: लोकतंत्र के मेले में हर किसी को करतब दिखाने का अधिकार है. जिसकी करतब लोगों को पसंद आएगी उसकी तरफ लोग खींचे चले जाएंगे। जिसके करतब में दम नहीं होगा उसकी राजनीति यात्रा बेदम होगी। देश के सभी सूबों में बिहार भले ही आर्थिक तौर या विकास के पैमाने पर पिछड़ा हो। लेकिन राजनीतिक चेतना का धनी रहा है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण उसके बड़े उदाहरण रहे हैं. उससे पहले जाएं तो चंपारण आंदोलन ने अंग्रेजों की चूलें हिलाने के लिए जमीन तैयार की थी। हालांकि बात हम २१ वीं सदी के तीसरे दशक की करने वाले हैे जिसमें एक शख्स जन सुराज अभियान चला रहा है जो अब अपने अंतिम चरण में है. यह अभियान अक्टूबर के महीने में राजनीतिक शक्ल ले लेगा। 

अक्टूबर में राजनीतिक दल का गठन

पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कहना है कि उनका जन सुराज अभियान 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर एक राजनीतिक पार्टी बन जाएगा और अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ेगा। किशोर यहां जन सुराज की एक राज्य स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती सहित कई लोगों ने भाग लिया और अभियान में शामिल हुए। दो साल पहले अभियान शुरू करने वाले किशोर ने कहा, "जैसा कि पहले कहा गया है, जन सुराज 2 अक्टूबर को एक राजनीतिक पार्टी बन जाएगी और अगले साल विधानसभा चुनाव लड़ेगी। पार्टी नेतृत्व जैसे अन्य विवरण समय आने पर तय किए जाएंगे।

भारत रत्न से सम्मानित समाजवादी नेता के छोटे बेटे वीरेंद्र नाथ ठाकुर की बेटी जागृति ठाकुर के प्रवेश का स्वागत किया। दिवंगत ठाकुर के बड़े बेटे राम नाथ ठाकुर जेडी(यू) के सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। जन सुराज में शामिल होने वाले अन्य लोगों में पूर्व राजद एमएलसी रामबली सिंह चंद्रवंशी शामिल थे, जिन्हें हाल ही में अनुशासनहीनता के आधार पर विधान परिषद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, और आनंद मिश्रा, एक पूर्व आईपीएस अधिकारी जिन्होंने भाजपा से टिकट की उम्मीद में सेवा से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन टिकट से वंचित होने के बाद उन्होंने बक्सर से निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था।

क्या है जमीनी हकीकत

जानकार कहते हैं कि बिहार की राजनीति विचित्र घटनाओं और विरोधाभास का मेल है। अगर आप जेपी आंदोलन को देखें तो केंद्रीय हुकुमत के खिलाफ पूरे बिहार को जोड़ दिया। लोग अपने नाम के आगे जाति लिखने से परहेज करने लगे। लेकिन जमीन पर जाति का जोर कम नहीं हुआ। अगर ऐसा होता तो जाति आधारित प्राइवेट सेनाओं जैसे रणवीर सेना, लोरिक सेना, सनलाइट सेना का उदय नहीं हुआ होता। अगर राजनीतिक जागरूकता ने जमीन पर रंग दिखाया होता तो मंडल कमीशन के लागू किए जाने के बाद जातियों का विभाजन भी तेज नहीं हुआ होता। हालांकि बदलते समय के साथ अब जाति का जोर थोड़ा कम हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ है।

अगर आप प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान को देखें तो इसमें दो मत नहीं कि उन्हें लोगों का समर्थन मिल रहा है. लोगों में एक तरह की छटपहाट भी है बिहार बदलना चाहिए। लेकिन किसी भी राजनैतिक मुहिम के कारगर होने के पीछे वोटों की राजनीति क्योंकि वोटों की संख्या ही विधानमंडल में आपकी ताकत बनेगी. इसके लिए प्रशांत किशोर को लीक से हटकर कुछ ऐसा काम करना होगा जो स्थापित दलों के वर्चस्व को कमजोर कर सके। 

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