क्या दरक जाएगी बिहार में लालू की जमीन, 'PK' के इस एक पोस्टर से समझिए

जन सुराज यात्रा के संचालक प्रशांत किशोर ने पहले ही कह दिया है कि 2 अक्टूबर को वो राजनैतिक दल का गठन करने वाले हैं जिसका मकसद बिहार की व्यवस्था को बदलना है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-26 07:13 GMT

Prashant Kishor Jan Suraj Yatra:  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होने वाला है। वैसे तो इस राज्य में सियासी दलों की कमी नहीं है। लेकिन 2 अक्तूबर को एक और राजनीतिक दल का उदय होने वाला है जिसके कर्ताधर्ता प्रशांत किशोर जिन्हें लोग पीके के नाम से भी जानते हैं। दो साल पहले गांधी जयंती के दिन पीके ने पूरे बिहार को समझने और समझाने के लिए जन सुराज यात्रा का आगाज किया था। वो कहते हैं कि सबसे पहले जब तक हम लोगों की परेशानी को करीब से नहीं देखेंगे, समझेंगे तब तक निदान कहां से खोजेंगे। इन सबके बीच वो महिला कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित करते हुए कहा कि 2025 में बिहार में किसे लालू राज, किसे मोदी-नीतीश राज और किसे जनता का राज चाहिए। इन सबके बीच एक पोस्टर भी सामने आया जिस पर लिखा है कि अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य एवं नए बिहार के निर्माण के लिए,. लाली यादव ने देखा सिर्फ अपना परिवार सभी यादव नेताओं का किया राजनैतिक संघार

40 महिला और 75 अति पिछड़ों को टिकट
प्रशांत किशोर ने कहा था कि 245 विधानसभा सीटों पर कम से कम 40 महिला उम्मीदवार और 75 अत्यंत पिछड़े वर्ग के  लोगों को मौका देंगे। अगर ाआप इस संख्या को देखें को निश्चित तौर पर अभी किसी राजनीतिक दल ने इतने बड़े पैमाने पर समाज के इस तबके को मौका नहीं दिया है। सवाल यह है कि प्रशांत किशोर के इन आंकड़ों को किस रूप में देखना चाहिए। बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि यहां की व्यवस्था में जाति का असर गहराई तक है। आप जाति को राजनीति से अलग नहीं कर सकते।

जहां तक विकास की बात है तो उसे समाज का हर तबका स्वीकार करता है लेकिन टिकट देते समय राजनीतिक दल असरकारी लोगों को देखने लगते हैं। अब जहां तक प्रशांत किशोर द्वारा महिलाओं और अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों को टिकट देने का सवाल है निश्चित तौर पर वो लालू यादव को कमजोर करने की कोशिश है। यह बात सच है कि लालू यादव की पार्टी पिछड़ों की बात तो करती है लेकिन टिकट बंटवारे में यादव समाज का दबदबा रहता है। यही नहीं यादव समाज में उनका खुद का परिवार निर्णय लेने वाली व्यवस्था में शामिल रहता है। तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, मीसा भारती और रोहिणी आचार्य को आप उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं। 

यहां सवाल यह है कि प्रशांत किशोर के चुनाव पर्व हिस्सा बनने से किसका नुकसान अधिक होगा। इस विषय पर राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अगर आप 2025 में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद करते हैं तो वो सपना देखने की तरह है। लेकिन हां, आने वाले समय के लिए बदलाव जरूर होगा। देश के अलग अलग हिस्सों की तरह बिहार में भी युवा आबादी फर्स्ट टाइम वोटर्स की संख्या बढ़ रही है। जब वो किसी ऐसे राजनीतिक दल को देखेंगे जो समावेशी हो, जिसके दरवाजे समाज के हर तबके यानी गरीब से गरीब के लिए भी खुला हो तो निश्चित तौर पर बदलाव आएगा। हालांकि यह सोचना गलत होगा कि एकाएक प्रशांत किशोर की पार्टी आरजेडी, जेडीयू, बीजेपी, कांग्रेस जैसे स्थापित दलों को खत्म कर देंगे। 

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