सबरीमाला मंदिर गोल्ड विवाद : केरल हाईकोर्ट ने आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए

कोर्ट ने कहा कि सोने से मढ़ी वस्तुओं को गलत तरीके से ‘कॉपर प्लेट’ बताना, उनसे सोना निकालना और उसका दुरुपयोग भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर अपराध हैं।

Update: 2025-10-11 01:11 GMT
SIT को छह हफ्तों के भीतर रिपोर्ट जमा करने और हर दो हफ्ते में जांच की स्थिति अदालत के सामने रखने का आदेश दिया गया

 केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य पुलिस को सबरीमाला मंदिर के “साइड फ्रेम या लिंटल” से सोने की “ग़लत तरीके से निकासी” के मामले में आपराधिक केस दर्ज करने और जांच शुरू करने के निर्देश दिए।

न्यायमूर्ति राजा विजयाराघवन वी और के वी जयकुमार की पीठ ने मुख्य सतर्कता और सुरक्षा अधिकारी (पुलिस अधीक्षक) द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद यह आदेश दिया।

अदालत ने कहा कि जांच की शुरुआत मूल रूप से सबरीमाला में भगवान अयप्पा के मंदिर के द्वारपालक (द्वारपाल) की मूर्तियों पर सोने की परत चढ़ाने से संबंधित थी, लेकिन रिपोर्ट में “दरवाजों के फ्रेम” से जुड़ी गंभीर अनियमितताओं का भी खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट में बताया गया कि लगभग 474.9 ग्राम सोना दाता उन्नीकृष्णन पोटी को सौंपा गया था। लेकिन रिकॉर्ड से यह स्पष्ट नहीं है कि यह सोना दोबारा त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) को लौटाया गया था या नहीं।

अदालत ने यह भी नोट किया कि 2019 में सोने की परत चढ़ाने के लिए दरवाजों के फ्रेम सौंपने से जुड़ी विभिन्न संचार और TDB के निर्णयों में इन वस्तुओं को “कॉपर प्लेट” (तांबे की प्लेट) बताया गया था, “सोने से मढ़ी हुई कॉपर प्लेट” नहीं।

कोर्ट ने कहा, “यह विसंगति बेहद गंभीर है, क्योंकि पहले के आदेश में हमने दर्ज किया था कि 1998-99 में कुल 30.291 किलोग्राम सोना उपयोग किया गया था। प्रारंभिक तौर पर बोर्ड अधिकारियों की गंभीर लापरवाहियां सामने आती हैं, और सभी पहलुओं पर विस्तृत जांच की आवश्यकता है।”

रिपोर्ट के अनुसार, मई 2019 में एक महाजर (अधिकारिक दस्तावेज) तैयार किया गया था, जिसमें दरवाजों के फ्रेम पोटी को सौंपे गए थे। इस दस्तावेज पर मंदिर के थंत्री राजीव कांतारारू, मेलशांति वी.एन. वासुदेवन नम्बूथिरी, और सबरीमाला प्रशासनिक अधिकारी बी. मुरारीबाबू सहित अन्य लोगों के हस्ताक्षर हैं, और इसमें भी दरवाजों के फ्रेम को “कॉपर प्लेट” बताया गया है।

कोर्ट ने कहा, “सोने से मढ़ी वस्तुओं को गलत तरीके से ‘कॉपर प्लेट’ बताना, उनसे सोना निकालना और उसका दुरुपयोग — भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर अपराध हैं।”

SIT को जांच का आदेश

अदालत ने सतर्कता रिपोर्ट को TDB को सौंपने और फिर उसे राज्य पुलिस प्रमुख को भेजने का निर्देश दिया। पुलिस प्रमुख को आदेश दिया गया कि वे एडीजीपी एच. वेंकटेश (क्राइम ब्रांच और लॉ एंड ऑर्डर) को मामले में एफआईआर दर्ज करने और जांच शुरू करने के निर्देश दें।

वेंकटेश, सरकार द्वारा 9 अक्टूबर को गठित विशेष जांच दल (SIT) के प्रमुख हैं। अदालत ने कहा, “साइड फ्रेम/लिंटल से जुड़ी जानकारी की भी SIT जांच करेगी, और जरूरत पड़ी तो अलग-अलग अपराध दर्ज किए जा सकते हैं।”

कोर्ट ने कहा कि SIT “पूर्ण, निष्पक्ष और शीघ्र जांच” करे ताकि सभी दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके। “टीम के अधिकारी इस अदालत के प्रति सीधे जवाबदेह होंगे और जांच में पूरी ईमानदारी और गोपनीयता बरतेंगे।”

SIT को छह हफ्तों के भीतर रिपोर्ट जमा करने और हर दो हफ्ते में जांच की स्थिति अदालत के सामने रखने का आदेश दिया गया। साथ ही, मीडिया या आम जनता से जांच विवरण साझा न करने का निर्देश भी दिया गया।

मीडिया रिपोर्टिंग पर टिप्पणी

अदालत ने मीडिया को लेकर भी दिशा-निर्देश दिए। अदालत ने सन्निधानम परिसर में मीडिया प्रवेश की अनुमति न देने के निर्णय को सही ठहराया, जब पूर्व न्यायाधीश जस्टिस के. टी. शंकरण वहां जाकर सूची तैयार करेंगे।

कोर्ट ने कहा कि ‘द्वारपालकों’ से जुड़ी खबरों पर मीडिया में पैदा हुए “सेंसेशनलिज़्म” पर ध्यान देना उसका दायित्व है। अदालत ने चिंता जताई कि सतर्कता अधिकारी की रिपोर्ट पेश होने से पहले ही कुछ मीडिया संगठनों ने उसके “निष्कर्ष” छाप दिए।

“मीडिया के कुछ हिस्से अपने चुने हुए लोगों — जिनमें पूर्व अधिकारी और आरोपी शामिल हैं — का इंटरव्यू लेकर एक समानांतर जांच चला रहे हैं। इस तरह की कवरेज दर्शक बढ़ाने के लिए होती है, लेकिन इससे तथ्य विकृत हो सकते हैं, जनमत प्रभावित हो सकता है, और जांच पर असर पड़ सकता है,” अदालत ने कहा।

अदालत ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह “समानांतर न्यायिक मंच” में नहीं बदल सकती। “हम मीडिया से अपील करते हैं कि वे केवल रिकॉर्ड और अदालत के आदेशों पर आधारित रिपोर्टिंग करें, पक्षपातपूर्ण नैरेटिव से बचें, और उन लोगों को नायक न बनाएं जो केवल अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।”

कोर्ट ने चेताया कि असत्य या सनसनीखेज रिपोर्टिंग न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डाल सकती है।*

“किसी को दोषी या निर्दोष घोषित करना मीडिया का काम नहीं, बल्कि न्यायपालिका का है,” अदालत ने कहा।

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