लोगों को संभल के सांसद ने उकसाया, पुलिस की एफआईआर में जिक्र
संभल हिंसा मामले में अभी तक 25 लोगों को जेल भेजा गया है। इन सबके बीच संभल के सांसद और विधायक के बेटे की भूमिका जिक्र एफआईआर में किया गया है।
24 नवंबर को संभल के जामा मस्जिद में सर्वे के बाद हिंसा भड़क गई थी। कुल पांच लोगों की मौत हुई। प्रशासनिक अमला भी घायल हुआ। हिंसा को जहां सराकरी तंत्र सुनियोजित बता रहा है वहीं विपक्ष सरकारी हिंसा बता रहा है। अब संभल पुलिस ने संभल के सांसद जियाउर रहमान बर्क और संभल के विधायक के बेटे के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज की है उसकी कॉपी आ गई है। पुलिस का कहना है कि सांसद जियाउर रहमान और एमएलए के बेटे ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों को उकसाया था।
सब-इंस्पेक्टर दीपक राठी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में बर्क को आरोपी नंबर 1 और महमूद को आरोपी नंबर २ के रूप में नामजद किया गया है, साथ ही छह नामजद और 700-800 अज्ञात लोगों के नाम भी दर्ज हैं। इसमें कहा गया है कि बर्क "हिंसा से कुछ दिन पहले बिना अनुमति के मस्जिद गए थे, भड़काऊ भाषण दिए और व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए भीड़ को उकसाया। महमूद पर आरोप है कि उसने भीड़ को यह कहकर प्रोत्साहित किया कि बर्क हमारे साथ है। अपनी मंशा पूरी करो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ ने पुलिस पर डंडों, हॉकी स्टिक और अवैध असलहों से हमला किया। पिस्तौल, आंसू गैस के गोले और मैगजीन लूट ली। झड़पों के दौरान लगातार गोलीबारी की खबर मिली। कथित तौर पर भीड़ का उद्देश्य सर्वेक्षण को बाधित करना और अधिकारियों को नुकसान पहुंचाना था। हिंसा में घायल हुए सर्किल अधिकारी अनुज चौधरी ने कहा कि भीड़ का इरादा अदालत द्वारा आदेश किए गए सर्वेक्षण को रोकना था। एफआईआर में मस्जिद की प्रबंधन समिति के सदस्य वकील जफर अली पर भी आरोप लगाया गया है।
एफआईआर में भारत न्याय संहिता की धारा 191-2 (दंगा), 191-3 (घातक हथियारों के साथ दंगा), 190 (सामान्य उद्देश्य के लिए किया गया अपराध), 221 (लोक सेवक के काम में बाधा डालना), 132 (लोक सेवक पर हमला), 125 (सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डालना), 324-5 (नुकसान पहुंचाने वाली शरारत), 196 (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 326 एफ (विस्फोटकों द्वारा शरारत), साथ ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने संबंधी अधिनियम की धारा 3 और 5 के तहत आरोप शामिल हैं। बर्क ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया है कि वह उस समय बेंगलुरु में थे। उन्होंने कहा, "यह पुलिस और प्रशासन की साजिश है। मैं राज्य में था ही नहीं।" उन्होंने सर्वेक्षण की आलोचना करते हुए कहा, "मस्जिद एक ऐतिहासिक स्थल है जिसे पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत संरक्षित किया गया है।
बिलाल के पिता मोहम्मद हनीफ सहित मृतक के परिवारों ने पुलिस पर गोलीबारी करने का आरोप लगाया है। हनीफ ने कहा कि वो अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। मोहम्मद नईम के परिवार ने सर्कल अधिकारी चौधरी के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए। पुलिस की कार्रवाई का बचाव करते हुए चौधरी ने कहा कि बंदूक तानने का मतलब यह नहीं है कि गोलियां चलाई गईं। अधिकारियों को खुद का बचाव करने का अधिकार है। हमने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्रवाई की। हो सकता है कि मृतक को प्रतिद्वंद्वियों ने गोली मारी हो।
संभल के एसपी कृष्ण कुमार ने भी दावा किया कि मृतकों की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "पीड़ितों को संभवतः देसी पिस्तौल से गोली मारी गई थी। मौतों की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं। इस बीच, यूपी के कमिश्नर आंजनेय सिंह ने बताया कि प्रभावित क्षेत्र से गायब सीसीटीवी कैमरों की वजह से जांच में दिक्कत आ रही है। उन्होंने कहा कि रामपुर में एनआरसी विरोध प्रदर्शन के दौरान भी दंगाइयों ने कैमरे हटा दिए थे। हमें यहां भी यही संदेह है और दोषियों की पहचान करने के लिए डीवीआर जब्त करेंगे। हालांकि, स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने सबूत मिटाने के लिए खुद ही कैमरे हटा दिए।