19 भाषाओं को हिंदी ने निगल लिया, एम के स्टालिन का आरोप
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने 19 भाषाओं की सूची दी, जिनके बारे में उनका कहना है कि उन्हें हिंदी ने निगल लिया है, और आगे कहा कि "कई अन्य भाषाएं अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं";
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने गुरुवार (27 फरवरी) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपने "अन्य राज्यों के भाइयों और बहनों" को आगाह करते हुए कहा कि "प्राचीन मातृभाषाओं को खत्म करने वाला सबसे बड़ा खतरा एकल हिंदी पहचान को थोपने का प्रयास है।"जैसे-जैसे भाषा को लेकर बहस तेज हो रही है और तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्य केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत हिंदी थोपने के प्रयासों का विरोध कर रहे हैं, स्टालिन अन्य राज्यों के लोगों को याद दिला रहे हैं कि उनकी अपनी मातृभाषाएं "हिंदी द्वारा निगल ली गई हैं।"
"यूपी और बिहार की भाषाएं अब अतीत की धरोहर मात्र"
स्टालिन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उत्तर प्रदेश और बिहार कभी सिर्फ "हिंदी प्रदेश" नहीं थे, बल्कि उनकी अपनी विशिष्ट भाषाएं थीं। लेकिन अब वे भाषाएं "बीते समय की बात बन चुकी हैं।"
तमिलनाडु सरकार का हिंदी विरोध
स्टालिन की पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), ने अतीत में तमिलनाडु में हिंदी थोपने के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिससे उसे राजनीतिक रूप से बड़ा लाभ भी मिला। अब राज्य सरकार केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है और हिंदी को "पिछले दरवाजे से थोपने" की कोशिशों का पुरजोर विरोध कर रही है।
"कई भारतीय भाषाओं को हिंदी ने निगल लिया"
स्टालिन ने उन 19 भाषाओं की सूची साझा की, जिन्हें उनके अनुसार हिंदी ने "निगल" लिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि "अब कई अन्य भाषाएं अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।"
उन्होंने लिखा,
"मेरे प्रिय अन्य राज्यों के भाइयों और बहनों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुर्माली, कुरुख, मुंडारी और कई अन्य भाषाएं अब बचने के लिए संघर्ष कर रही हैं।"
"तमिलनाडु इसका विरोध करता है, क्योंकि हम जानते हैं कि यह कहां जाकर रुकेगा"
स्टालिन ने अपनी पोस्ट को इस चेतावनी के साथ समाप्त किया:
"एकल हिंदी पहचान थोपने की कोशिश प्राचीन मातृभाषाओं को खत्म कर देती है। यूपी और बिहार कभी सिर्फ ‘हिंदी प्रदेश’ नहीं थे। उनकी असली भाषाएं अब अतीत की बात बन चुकी हैं। तमिलनाडु इसका विरोध करता है, क्योंकि हम जानते हैं कि यह कहां जाकर रुकेगा।"
भाषाई पहचान की लड़ाई जारी
तमिलनाडु लंबे समय से हिंदी के अनिवार्य थोपने के विरोध में रहा है और इस मुद्दे पर डटे रहने की बात करता रहा है। स्टालिन का यह बयान नई शिक्षा नीति (NEP) के खिलाफ राज्य की मजबूत स्थिति को दोहराता है और इस बहस को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाता है।