ऐसा कोई नहीं जिसने ठगा नहीं, बेचारे यूपी के प्राइमरी शिक्षक

2020 में यूपी सरकार ने 69 प्राइमरी टीचर्स की भर्ती की थी और मुकदमा साथ साथ चलता रहा। इलाहाबाद HC के फैसले के बाद दोबारा मेरिट लिस्ट बनेगी। लेकिन मामला और उलझ गया है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-22 05:27 GMT

UP Primary School Teacher:  यूपी के गुरुजी लोग मुश्किल में हैं सभी नहीं वो लोग जिनकी नियुक्ति साल 2020 में हुई थी। जिनके हाथ में चॉक होना चाहिए। जिन्हें कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाना चाहिए। वो प्रदर्शन कर रहे हैं। ये लोग अपनी खुशी से प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने इनकी परेशानी बढ़ा दी है। कुछ को डर सता रहा है कि उनकी नौकरी चली जाएगी तो कुछ को डर सता रहा है कि यूपी की सरकार कहीं खेल ना कर दे। दरअसल 2020 में जिन 69 हजार शिक्षकों की भर्ती हुई उन सबके साथ एक तरह से खेल ही हो गया। आरक्षण के मायाजाल में पूरी कहानी कुछ इस तरह से उलझी कि उससे बाहर निकलने का रास्ता अभी साफ नजर नहीं आ रहा है। हालांकि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने साफ किया है कि किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। लेकिन शिक्षकों को डर लग रहा है कि उनका क्या होगा। अब आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है।

2020 में हुई थी भर्ती
दरअसल 2020 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 69 हजार शिक्षकों की भर्ती हुई। आरोप यह लगा कि यूपी सरकार ने आरक्षण के नियमों की अनदेखी की। यानी कि जितनी संख्या में आरक्षित वर्ग के लोगों को मौका देना चाहिए था वो नहीं दिया गया। ऐसे छात्र जो आरक्षण का फायदा नहीं उठा सके। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन सिंगल बेंच की सुनवाई में उन्हें फादा नहीं मिला। हालांकि वो छात्र निराश नहीं हुई और एक बार फिर अर्जी लगाई। इस दफा हाईकोर्ट की डबल बेंच ने माना कि यूपी सरकार ने आरक्षण के नियमों की अनदेखी की लिहाजा सभी 69 हजार नतीजों की फिर से मेरिट बनाई जाए। जाहिर सी बात है कि वो छात्र जो चयन की प्रक्रिया से वंचित रहे उनके लिए खुशी मनाने का मौका था। लेकिन ऐसे शिक्षक जो पिछले चार साल से नौकरी कर रहे हैं उन पर संकट उठ खड़ा हुआ। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे शिक्षक जो चार साल से पढ़ा रहे हैं उन्हें 31 मार्च 2025 तक पढ़ाने का मौका दिया जाए। लेकिन सवाल वहीं है कि उस तारीख के बाद क्या होगा। क्योंकि जाहिर सी बात है कि अब जब मेरिट लिस्ट बनेगी तो 69 हजार में कुछ हजार लोगों पर गाज गिरेगी।
आरक्षण नियमों की अनदेखी
यानी कि शिक्षकों के सामने परेशानी तो है. अब यूपी सरकार ने आरक्षण के नियमों की अनदेखी कैसे की। इसे समझिए। मान लीजिए की 100 सीटों पर भर्ती होनी है जिसमें 27 ओबीसी, 15 एससी और 7 एसटी समाज से नियुक्ति होनी है और शेष सीट अनारक्षित है। एग्जाम के बाद अनारक्षित, आरक्षित वर्ग की मेरिट बनती है। मान लीजिए कि ओबीसी समाज से चार बच्चे अनारक्षित वर्ग में चयनित होते हैं तो उनका चयन अनारक्षित वर्ग में माना जाएगा और इस तरह से ओबीसी में चार सीट और बढ़ जाती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जो मेरिट लिस्ट बनी उसमें आरक्षित समाज के लड़कों को जो अनारक्षित कैटिगरी में चयनित हुए उन्हें ओबीसी कैटिगरी में माना गया और यहीं से विवाद शुरू हुआ।
आरक्षित वर्ग का कहना था कि नियमावली में यह कहीं नहीं लिखा है कि आरक्षित कैटिगरी का छात्र यदि अनारक्षित में चयनित होता है तो उसे आरक्षित श्रेणी में माना जाएगा। यही वो विषय था जिसकी दुहाई समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी दिया करते थे। लेकिन इसके मूल विषय को भी समझना होगा।
शिक्षामित्र, शिक्षक, शिक्षामित्र

अगर इस पूरे प्रकरण के मूल को देखें तो यह मसला करीब 17-18 साल पुराना है। सूबे में जब अखिलेश यादव के पिता जी शासन कर रहे थे तो करीब एक लाख 37 हजार शिक्षा मित्रों की भर्ती हुई। लेकिन चुनावी फायदा 2007 में मायावती को मिला। 2007 से 2012 के दौरान अखिलेश यादव कहते रहे कि अगर उन्हें मौका मिला तो इन शिक्षामित्रों को शिक्षक बना देंगे। जब उनकी सरकार 2012 में आई तो उन्होंने अपने वादे को पूरा किया। लेकिन 2010 के राइट टू एजुकेशन में टेट की अनिवार्यता को वो भूल गए। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और अदालत ने फैसला सुनाया कि शिक्षामित्र, शिक्षकों की अहर्ता पूरी नहीं करते हैं लिहाजा उन्हें शिक्षक का दर्जा नहीं दिया जा सकता। यानी कि वे फिर शिक्षामित्र बन गए।
हालांकि अदालत ने कहा कि यूपी सरकार एक लाख 37 हजार पदों के लिए भर्ती करे। लेकिन उस समय यानी 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने कहा कि उनके पास बजट नहीं है और भर्ती नहीं कर सकते। लेकिन अदालत अपने फैसले पर अड़ा रहा। अदालत ने कहा कि आप एक साथ नहीं तो 2 बार में भर्ती करें और उसके तहत ही 2019 में भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई। यूपी की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि हकीकत में करीब करीब सभी सरकारों ने (मायावती के समय की नियुक्ति को अपवाद मान सकते हैं) शिक्षकों के साथ छल ही किया है। मौजूदा समय में योगी सरकार ये बात तो कह रही है कि वो किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगी। लेकिन सवाल तो है कि इस तरह के उलझाने वाले निर्णय ही क्यों लिये जाते हैं। 
Tags:    

Similar News