विचारों में जिंदा रहेंगे वीएस अच्युतानंदन, जनता का कॉमरेड जो कभी थका नहीं

केरल ने पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ माकपा नेता को अंतिम विदाई दी, जो आठ दशकों से कम्युनिस्ट आदर्शों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।;

Update: 2025-07-22 04:41 GMT
वी.एस. अच्युतानंदन पार्टी के भीतर एक आलोचक थे, एक विद्रोही जो चुप रहने को तैयार नहीं था, एक ऐसा व्यक्ति जिसे अक्सर हाशिये पर धकेल दिया गया, लेकिन फिर भी पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत, मुखर और प्रासंगिक बनकर लौटा। कई लोगों की नज़र में, वह पार्टी की अंतरात्मा थे। पीटीआई फ़ाइल फ़ोटो

VS Achuthanandan: जब 1940 में वी.एस. अच्युतानंदन को पहली बार पार्टी कार्ड मिला, तब विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन अपने नायकों को गढ़ ही रहा था। क्यूबा में फिदेल कास्त्रो स्कूल के छात्र थे, चे गेवारा अर्जेंटीना में शतरंज की बिसात पर ध्यान केंद्रित किए हुए बालक थे। चीन में माओ त्से तुंग ‘नई जनतंत्र’ पर लेखन कर रहे थे और यान’आन में कम्युनिस्ट पार्टी की ग्रामीण नींव को सुदृढ़ कर रहे थे। मॉस्को में जोसेफ स्टालिन सत्ता की पकड़ मजबूत कर रहे थे, और वहीं, लियोन ट्रॉट्स्की की मेक्सिको में हत्या कर दी गई थी।

इन्हीं उथल-पुथल भरे अंतरराष्ट्रीय परिवेश में पुन्‍नप्रा, अलप्पुझा के एक युवा ने कम्युनिज़्म की राह पकड़ ली। वेलिक्काकथु शंकरण अच्युतानंदन। उन्होंने पार्टी से जुड़ाव क्रांति की चमक या हथियारों की ताकत के लिए नहीं, बल्कि ज़मीनी संघर्ष, सामाजिक न्याय और औपनिवेशिक तथा बाद के स्वतंत्र भारत की सत्ता के प्रतिरोध के लिए किया।

एक जीवित किंवदंती का जन्म

उनके प्रारंभिक संघर्षों की एक कथा अब किंवदंती बन चुकी है। पुन्‍नप्रा-वायलार विद्रोह के दौरान अच्युतानंदन को पुलिस ने गिरफ्तार कर पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। उन्हें मरा हुआ समझकर पुलिस रात के अंधेरे में उनके शव को दो अपराधियों के साथ गाड़ी में डालकर गायब करने की योजना बना रही थी। लेकिन एक चोर ने देखा कि वे जीवित हैं और पुलिस के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। यह मानवीयता की एक छोटी लेकिन निर्णायक चमक थी जिसने एक क्रांतिकारी को मौत से बचा लिया।

पार्टी से अटूट नाता, विचार से न डिगने वाला कदम

अपने लंबे जीवन में अच्युतानंदन ने जेल देखी, पार्टी से निष्कासन झेला, वैचारिक संघर्षों से गुज़रे, लेकिन पार्टी कार्ड कभी नहीं छोड़ा। आठ दशकों तक सक्रिय राजनीति में रहते हुए, वे न केवल केरल के मुख्यमंत्री बने, बल्कि शायद दुनिया के सबसे लंबे समय तक सक्रिय कार्डधारी कम्युनिस्ट भी बने। यह कोई औपचारिक उपाधि नहीं, बल्कि जीवनभर की विचारधारात्मक प्रतिबद्धता का प्रतीक था।

जननेता, नैतिक मार्गदर्शक, पार्टी का अंतरात्मा

केरल जैसे राज्य में, जहाँ राजनीति एक सार्वजनिक अनुष्ठान और निजी आस्था दोनों है, अच्युतानंदन केवल नेता नहीं थे, पार्टी की अंतरात्मा थे। वे आलोचक भी थे, विद्रोही भी, जिन्हें कई बार किनारे कर दिया गया, लेकिन वे हर बार और मजबूत होकर लौटे। उन्होंने खुद को ग्रामीण पुस्तकालयों में पढ़कर शिक्षित किया, कारखानों और खेतों में मजदूरों का नेतृत्व किया, और अंततः एक नैतिक नेतृत्व के रूप में मुख्यमंत्री पद तक पहुँचे।वे पुराने और नए वामपंथ, आदर्श और यथार्थ, तथा क्रांति और लोकतंत्र के बीच पुल थे। उनका जीवन इस बात का उदाहरण था कि सच्चा कम्युनिस्ट न तो कभी हार मानता है, न ही सत्ता में जाकर अपने मूल्यों से समझौता करता है।

अब विचार बनकर जीवित रहेंगे अच्युतानंदन

21 जुलाई की शाम से लेकर रात के 12 बजे तक, जब यह श्रद्धांजलि लिखी जा रही थी, केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में हजारों कॉमरेड्स इकट्ठा हुए। न कोई शोक में बेकाबू चीख, न अराजकता सिर्फ अनुशासित नारे और विचारों की पुनः पुष्टि। AKG सेंटर (CPI(M) का राज्य मुख्यालय) पर लाल झंडों के साथ स्वयंसेवक शांत और सजीले ढंग से अंतिम दर्शन की प्रक्रिया को संचालित कर रहे थे।

रात 11:30 बजे, उनका पार्थिव शरीर तंपुरन्मुक्कु स्थित उनके निवास ले जाया गया। आज, 22 जुलाई को डर्बार हॉल में दोपहर 2 बजे तक आम जनता को अंतिम श्रद्धांजलि देने का अवसर मिलेगा। फिर शुरू होगी अंतिम यात्रा — तिरुवनंतपुरम से अलप्पुझा, उस धरती की ओर जिसने उन्हें जन्म दिया और क्रांति का बीज बोया।

अंतिम विदाई नहीं, विचार की पुनर्प्रतिष्ठा

23 जुलाई को पुन्‍नप्रा-वायलार की मिट्टी में अंतिम संस्कार किया जाएगा। वहीं जहाँ उन्होंने पहली बार लाल झंडा उठाया था, और जीवन भर जिसे कभी गिरने नहीं दिया। आज जब वे वापस लौटते हैं, वे केवल एक साथी नहीं, एक विचार बन चुके हैं।

"तुम हमारे नेत्र हो,

तुम हमारे हृदय हो,

तुम एक गुलाब हो,

जो विचारों में महकता है।

तुम कॉमरेड हो,

जो हमें हमेशा दिशा देते रहोगे।"

अब कोई कहे भी अच्युतानंदन नहीं रहे, तो भी वो हमारे भीतर हमेशा जीवित रहेंगे।

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