क्या बदल रहा है पाकिस्तान, शरीफ ने तब भी कही थी अतीत भुलाने वाली बात

पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ अतीत को भुलाने की बात कर रहे हैं। भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन क्या वो दिली तौर पर तैयार हैं। यह बड़ा सवाल है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-18 03:32 GMT

India Pakistan Relation: जख्म दो तरह के होते हैं। शारीरिक और मानसिक। शारीरिक जख्म तो समय के साथ भर जाता है। लेकिन मानसिक जख्म का भरना मुमकिन नहीं होता। समय काल परिस्थिति के हिसाब से वो जख्म हरे हो जाते हैं। दरअसल पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने कहा कि अब हमें अतीत को भुलाने का समय आ चुका है, मिलजुलकर आगे बढ़ने की जरूरत है। शरीफ ने ये बात किस संदर्भ में कही उसे भी समझना जरूरी है। हाल ही में विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर इस्लामाबाद में थे। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा ले रहे थे। उनकी पाकिस्तान के पीएम और समकक्ष से द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई, हालांकि अनौपचारिक बात हुई।

मिल कर आगे बढ़ने की जरुरत लेकिन...
एससीओ की बैठक में उन्होंने कहा कि यह बात सच है कि हमें मिलजुलकर आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन हमारे बीच विवाद के जो अहम मुद्दे हैं उन्हें खत्म भी तो किया जाना चाहिए। उसके बगैर एक साथ चल पाना मुश्किल है। अब सवाल यह है कि नवाज शरीफ के इस बयान का औचित्य क्या है जब वो पाकिस्तान की कमान नहीं संभाल रहे हैं, यही नहीं 1999 की कारगिल युद्ध को कैसे भूला जा सकता है। कारगिल लड़ाई से ठीक पहले लाहौर बस सेवा के जरिए तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान की सरजमीं पर पहुंचे थे।

लेकिन पाकिस्तान की जुबा पर कुछ और बात थी दिमाग में कुछ और चल रहा था। यह बात सच है कि पाकिस्तान की सेना ने अपनी सिविल सरकार की नाफरमानी कर कारगिल में घुसपैठ की। लेकिन लाख टके का सवाल तो यही है कि जो सरकार अपनी फौज को नियंत्रण में नहीं रख सकती है उससे बेहतर रिश्ते की उम्मीद कैसे हो सकती है। 

कांटों वाला रिश्ता

अगर भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को देखें तो हमारा नाता नेचुरल है। 1947 से पहले हमारे पुर्वज एक ही जमीन के हिस्सा थे। लेकिन राजनीति की मांग ने दोनों देशों के बीच सीमा रेखा खींच। हम नक्शे पर दो देश बन गए। लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान को जो भूभाग मिला था उसे लेकर कायदे आजम जिन्ना खुश नहीं थे। वो मानते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने सड़ा गला पाकिस्तान दिया है। लेकिन अब वो अपनी ही लड़ाई से कैसे पीछे हट सकते थे,लिहाजा पाकिस्तान को स्वीकार करना पड़ा। पाकिस्तान के बनने के बाद वो एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जिसमें समरसता हो।

जब आप गलत मंसूबों के साथ किसी चीज की शुरुआत करते हैं तो नतीजा बेहतर कैसे हो सकता है। नफरत की सोच के साथ जब आप आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो रुकावटें आती हैं। समझदार लोग मुश्किलों से निकलने की कोशिश करते हैं। लेकिन जलन की आग में जलने वाला शख्स जिस तरह सब कुछ जला देता है ठीक वैसे ही पाकिस्तान के साथ हुआ। 

पाकिस्तान के पाले में गेंद

पाकिस्तान, भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ सकता था। लेकिन उसने जंग का रास्ता चुना। 1965, 1971 और 1999 की लड़ाई तो उसने खुलेआम लड़ी। लेकिन पिछले चार दशक से वो जम्मू-कश्मीर में परोक्ष तौर पर लड़ाई लड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर को तबाह करने के लिए आतंकी तंजीमों की मदद करता है। अपनी जमीन पर ट्रेनिंग और हथियार मुहैया कराता है जिसका जिक्र अलग अलग समय पर अलग अलग मंचों पर भारत करता रहा है। 2019 में जब भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर के संबंध में बड़ा फैसला किया तो पाकिस्तान को नागवार लगा।

पाकिस्तान ने भारत में तैनात अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और उसके बाद रिश्तों पर जमी बर्फ और सख्त हो गई। हाल ही में विदेश मंत्री के दौरे के बाद जिस तरह से नवाज शरीफ ने बयान दिया है उसकी सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है जब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कुछ ठोस कार्रवाई करता हुआ नजर आए।

Tags:    

Similar News