जीएसटी सुधार: सरकार का बड़ा दांव, क्या बढ़ेगी जीडीपी ग्रोथ?

जीएसटी 2.0 में दर कटौती और सरलीकरण से उपभोक्ताओं को राहत व खपत में बढ़ोतरी की उम्मीद, लेकिन विशेषज्ञों ने असंगठित क्षेत्र को लेकर चिंता जताई है।;

Update: 2025-09-02 08:45 GMT

प्रस्तावित जीएसटी दर कटौती और तार्किकीकरण (rationalisation) ने माहौल को आशावादी बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे आम आदमी, किसानों, मध्यम वर्ग और एमएसएमई (MSME) पर टैक्स का बोझ कम होगा, जिससे आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहन मिलेगा और वृद्धि भी होगी।

वित्त मंत्रालय की नवीनतम मासिक आर्थिक रिपोर्ट (MER) ने भी यही बात दोहराई कि इससे परिवारों को सीधी राहत मिलेगी और खपत मांग बढ़ेगी"। वहीं आरबीआई के हालिया बुलेटिन ने शेयर बाजार की रिकवरी का श्रेय इसी आशावाद को दिया है, साथ ही स्टैंडर्ड एंड पुअर्स द्वारा भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘BBB-’ से बढ़ाकर ‘BBB’ (स्टेबल आउटलुक) करने को भी।

मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि यह सुधार जीडीपी वृद्धि को 0.5-0.6 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है, जबकि एसबीआई रिसर्च का दावा है कि यह खपत में 1.98 लाख करोड़ रुपये का इजाफा करेगा, जो जीडीपी का 1.6 प्रतिशत है। ऐसे दावे ठीक वैसे ही हैं जैसे जुलाई 2017 में संसद के भव्य मध्यरात्रि सत्र में जीएसटी लॉन्च करते समय किए गए थे।

तब प्रधानमंत्री ने इसे "गुड एंड सिंपल टैक्स" कहा था और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीडीपी को 1-2 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान जताया था। कर विशेषज्ञ विजय केलकर ने तो पहले ही कहा था कि जीएसटी लागू होने पर जीडीपी 2-2.5 प्रतिशत और निर्यात 10-14 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं।

लेकिन हुआ इसका उल्टा। तत्कालीन मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने जीएसटी को "ट्विन शॉक्स" में से एक बताया जिसने विकास की रफ्तार तोड़ी, दूसरा झटका नोटबंदी था। मनमोहन सिंह ने भी इन्हें "ट्विन ब्लो" कहा। इन झटकों के चलते जीडीपी वृद्धि FY17 के 8.3% से FY20 में 3.9% पर आ गई और निर्यात 5% से घटकर -3.4% पर पहुंच गया – वह भी महामारी से पहले।

जीएसटी की विफलता के कारण

जीएसटी को बड़े सुधार के रूप में पेश किया गया था, लेकिन इसकी डिजाइन और लागू करने में गंभीर खामियां थीं।इसमें कई स्लैब रखे गए: 5%, 12%, 18% और 28% के अलावा विशेष दरें (0.25%, 1.5%, 3%) और मुआवजा उपकर (Compensation Cess)।पेट्रोलियम, शराब और बिजली जैसे कई अहम क्षेत्रों को बाहर रखा गया।उल्टे टैक्स ढांचे (Inverted Tax Structure) और एक ही वस्तु पर अलग-अलग दरें (जैसे पॉपकॉर्न) ने इसे जटिल बना दिया।

बार-बार दरों में बदलाव ने इसे "अनिश्चित" कर दिया।लागू करने के स्तर पर भी समस्याएं थीं – छोटे व्यवसायों के लिए भारी कंप्लायंस बोझ, अधूरी आईटी व्यवस्था, इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) में धांधली और एमएसएमई के बड़े पैमाने पर बंद होने से रोजगार का नुकसान।

टैक्स राजस्व पर असर

बजट दस्तावेज बताते हैं कि केंद्र की अप्रत्यक्ष कर वसूली जीएसटी से पहले 46.3% थी, जो जीएसटी लागू होने के बाद 45% पर आ गई। यानी जीएसटी से राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं हुई।राज्यों पर असर और भी बड़ा रहा। एनआईपीएफपी (NIPFP) के अध्ययन के अनुसार, मुआवजा (Compensation) न मिलने पर अधिकांश राज्यों की जीएसटी वसूली FY16 के स्तर से भी कम रही। केवल महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे कुछ ही राज्य बेहतर कर पाए।

क्या नया जीएसटी (GST 2.0) खपत बढ़ाएगा?

सरकार जीएसटी 2.0 के तहत दरों को सरल बनाने और कर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए "नेशनल एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी (NAA)" को दोबारा शुरू करने का प्रस्ताव है। वित्त मंत्री की ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GoM) की सिफारिश के मुताबिक  12% स्लैब की ज्यादातर वस्तुएं 5% स्लैब में लाई जाएंगी। 28% स्लैब की कई वस्तुएं 18% स्लैब में लाई जाएंगी।‘सिन गुड्स’ (जैसे शराब, तंबाकू आदि) पर 40% टैक्स लगाने का प्रस्ताव है।

विशेषज्ञों की राय

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि अगर कारोबारी टैक्स कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को देते हैं तो कीमतें घटेंगी, लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। उन्होंने चेतावनी दी कि आईटीसी प्रावधान से लाभ औपचारिक क्षेत्र को होगा, जबकि असंगठित क्षेत्र और वहां काम करने वाली गरीब आबादी को बहुत फायदा नहीं मिलेगा।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2017 में अरुण जेटली ने कहा था कि जीएसटी का 95% राजस्व केवल 5% पंजीकृत कंपनियों से आता है, जबकि बाकी लाखों कंपनियां बहुत कम टैक्स देती हैं। यानी जीएसटी का फायदा और बोझ दोनों ही बड़े औपचारिक कारोबारों तक सीमित रहता है।

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