त्योहारी सीजन से पहले US टैरिफ ने बढ़ाई भारत की मुश्किलें, अब सरकार पर नजर
अमेरिका के 50% टैरिफ से भारत के निर्यातक संकट में, छंटनी का खतरा गहरा गया है। टेक्सटाइल, ज्वेलरी समेत कई क्षेत्रों पर असर नजर आ रहा है।;
अमेरिका ने आधिकारिक रूप से भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। 27 अगस्त से 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लागू होते ही भारत पर छाया निराशा का माहौल और गहरा गया। भारतीय निर्यातक सबसे लाभकारी बाज़ार खोने और बड़े पैमाने पर कामगारों की छंटनी की संभावना से सन्न रह गए। पूंजी बाज़ार भी धराशायी हो गए—निफ्टी 50 में 255 अंकों और बीएसई सेंसेक्स में 850 अंकों की गिरावट दर्ज की गई।
राहत: ट्रांजिट में माल बचेगा
अमेरिकी अधिसूचना के अनुसार, 27 अगस्त 2025 से पहले भारत से रवाना हुए और रास्ते में मौजूद माल पर अतिरिक्त शुल्क लागू नहीं होगा। ऐसे माल को अमेरिका में 17 सितंबर 2025 की आधी रात (ईस्टर्न डेलाइट टाइम) तक उपभोग के लिए प्रवेश करना होगा। इसके लिए अमेरिकी आयातक को निर्धारित फॉर्म में प्रमाणित करना होगा।
FIEO का अलार्म
भारतीय निर्यात संगठनों का शीर्ष निकाय फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (FIEO) ने चेतावनी दी है कि यह टैरिफ भारत के अमेरिका-गामी निर्यात का 55% प्रभावित करेगा, यानी करीब 47–48 अरब डॉलर का माल।प्राइसिंग में 30–35% की बढ़त से भारतीय उत्पाद चीन, वियतनाम, कंबोडिया, फिलीपींस और अन्य एशियाई देशों की तुलना में गैर-प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
सबसे अधिक प्रभावित होंगे श्रम-प्रधान क्षेत्र—
टेक्सटाइल और परिधान
रत्न और आभूषण
चमड़ा
सिरेमिक और केमिकल्स
हस्तशिल्प और कालीन
झींगे (श्रीम्प्स)
टिरुपुर, नोएडा और सूरत जैसे परिधान केंद्रों में उत्पादन पहले ही ठप हो चुका है।भारत और ब्राज़ील को सबसे ऊँचा 50% टैरिफ झेलना पड़ रहा है, जबकि अन्य देशों के लिए यह कहीं कम है—
चीन: 30%
यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, कोरिया: 15%
बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका: 20%
इंडोनेशिया, कंबोडिया, पाकिस्तान: 19%
श्रम क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी
श्रम-प्रधान उद्योगों में छंटनी का संकट मंडरा रहा है।इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और पेट्रोलियम जैसे पूंजी-प्रधान और टेक्नोलॉजी-आधारित उत्पादों को छूट दी गई है।गारमेंट एक्सपोर्ट्स एंड मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (GEMA) के अध्यक्ष विजय जिंदल ने कहा कि जुलाई के अंत से ही कपड़ा और परिधान इकाइयाँ सप्ताह में दो दिन कर्मचारियों को निकाल रही हैं। अब यह स्थिति बड़े पैमाने पर छंटनी में बदल जाएगी। उन्होंने कहा, “हमारी उम्मीदें टूट गई हैं। हमें भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा।”
अमेरिका भारतीय माल का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और भारत को सबसे ज्यादा व्यापार अधिशेष भी वहीं से मिलता है—2024 में 45.8 अरब डॉलर। इसके उलट चीन के साथ भारत को करीब 100 अरब डॉलर का घाटा झेलना पड़ता है।
अर्थव्यवस्था पर असर
यह टैरिफ सिर्फ श्रम-प्रधान उद्योगों और नौकरियों पर ही असर नहीं डालेगा, बल्कि त्योहारी सीजन के बीच भारत की पूरी विकास गाथा पर चोट करेगा।इसका असर कई स्तरों पर दिखेगा।
पूंजी बाज़ार पर दबाव
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी में तेजी
रुपये का अवमूल्यन
बैंकों की निर्यात क्षेत्रों को कर्ज देने में हिचक
एफडीआई पर नकारात्मक असर
निजी निवेश (Capex) की रफ्तार में गिरावट
वैश्विक निवेश बैंकों ने अनुमान लगाया है कि यदि अमेरिकी टैरिफ एक साल तक जारी रहा, तो भारत की जीडीपी 60–80 बेसिस पॉइंट तक गिर सकती है।
आगे का रास्ता
निर्यातक अब सरकार के 25,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की ओर उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन यह राहत अपने साथ नई चुनौतियां भी ला सकती है। सरकारी पूंजीगत खर्च में कटौती, बढ़ता कर्ज़ और वित्तीय घाटा। कुल मिलाकर, भारत के लिए आने वाला समय बेहद तूफानी साबित हो सकता है।