CUET पर उठे सवाल, दिल्ली यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ मॉप-अप राउंड
दिल्ली यूनिवर्सिटी में 7000 से ज्यादा सीटें खाली हैं। मॉप-अप राउंड से 12वीं के अंकों पर दाखिला होगा। शिक्षक इसे CUET की विश्वसनीयता पर सवाल मान रहे हैं।;
दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने अपनी अंडरग्रेजुएट एडमिशन प्रक्रिया में इस साल एक नया कदम उठाया है। विश्वविद्यालय ने खाली पड़ी सीटों को भरने के लिए क्लास 12वीं के अंकों के आधार पर मॉप-अप राउंड शुरू करने का फैसला किया है। इस कदम ने 2022 से लागू कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
7000 से अधिक सीटें खाली
DU के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, विश्वविद्यालय और उसके कॉलेजों में 7000 से ज्यादा सीटें अभी भी खाली हैं। शिक्षकों का कहना है कि यह संख्या असामान्य रूप से अधिक है। इनमें से ज्यादातर सीटें आरक्षित श्रेणी की हैं। दिलचस्प बात यह है कि 2022 से हर साल स्पॉट राउंड के बाद भी 5000 से 7000 सीटें खाली रह जाती हैं। ज्यादातर खाली सीटें ऑफ-कैंपस और महिला कॉलेजों में हैं।
शिक्षकों का विरोध: दोहरी नीति क्यों?
DU का यह फैसला शिक्षकों के बीच असहमति का कारण बना है। उनका कहना है कि अगर CUET को अनिवार्य प्रवेश परीक्षा बनाया गया है, तो अब 12वीं के अंकों को आधार बनाना दोहरी नीति है।
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव अभा देव हबीब ने कहा, मॉप-अप राउंड से साबित होता है कि कई कॉलेज और कोर्स स्थानीय छात्रों पर निर्भर थे। CUET एक अनावश्यक बाधा है, जिसे स्थानीय छात्र पार नहीं करना चाहते। बाहर से आने वाले छात्र इन कॉलेजों या कोर्स में रुचि नहीं रखते। एक ही सीट पर दो अलग-अलग मानदंड लागू करना बिल्कुल बेमानी है।"
NEP और केंद्रीकरण पर सवाल
DU शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा ने इस समस्या की जड़ नई शिक्षा नीति (NEP) को बताया, जिसके तहत CUET लागू किया गया। उनका कहना है कि दाखिला प्रक्रिया का केंद्रीकरण कॉलेजों की स्वायत्तता का हनन है। "कॉलेजों से अधिकार छीनकर पूरी प्रक्रिया केंद्र के हाथ में देना विश्वविद्यालय के अध्यादेशों का उल्लंघन है। यह सिस्टम पारदर्शी नहीं है और छात्रों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।
प्रिंसिपल्स की चिंता
कई कॉलेज प्रिंसिपल्स ने भी CUET पर सवाल उठाए। राजधनी कॉलेज के प्रिंसिपल दर्शन पांडे ने कहा कि कट-ऑफ सिस्टम में कॉलेज अपने अनुभव के आधार पर सीटें भरते थे। तब भी सीटें खाली रहती थीं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में नहीं।एक महिला कॉलेज की प्रिंसिपल ने कहा कि CUET के बाद छात्रों की गुणवत्ता भी गिरी है।"हमारे कॉलेज स्थानीय छात्रों के लिए बने थे, लेकिन अब वे आ ही नहीं रहे।"
देर से एडमिशन, सत्र का नुकसान
शिक्षकों ने यह भी चेतावनी दी कि अभी मॉप-अप राउंड से दाखिला लेने वाले छात्रों को 14 हफ्तों के सेमेस्टर में 6 हफ्ते की पढ़ाई का नुकसान झेलना पड़ेगा। किरोरीमल कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के शिक्षक रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा, "यह कदम सार्वजनिक फंड से चलने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को कमजोर करने का नुस्खा है।
DU प्रशासन का बचाव
DU प्रशासन का कहना है कि हालात इतने खराब नहीं हैं। डीन ऑफ एडमिशन हनीत गांधी ने कहा "ज्यादातर खाली सीटें संस्कृत और हिंदी जैसे कोर्स में हैं, जो पहले भी खाली रहती थीं। कुछ प्रिंसिपल्स ने कहा था कि स्थानीय छात्रों को CUET की जानकारी ही नहीं है। इसलिए हमने 12वीं का मानदंड जोड़ा। लेकिन ज्यादातर मेधावी छात्र हमें CUET से ही मिले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि CUET और 12वीं के अंकों में गहरा संबंध है, और DU एक पैन-इंडियन यूनिवर्सिटी है, इसलिए सिर्फ दिल्ली के छात्रों को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती।
साफ है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला नीति पर CUET बनाम 12वीं अंकों की बहस अभी खत्म नहीं हुई है। एक ओर प्रशासन इसे लचीला मान रहा है, वहीं शिक्षक और छात्र इसे विश्वविद्यालय की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए खतरा बता रहे हैं।