साल 2024 में क्लाईमेट चेंज का तीखा प्रहार, भीषण गर्मी-बरसात ने ली 3,200 लोगों की जान
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, भारत को 2024 में पहले नौ महीनों में 93% दिनों में चरम मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ा.
Global Warming: दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखाई दे रहा है. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से देश के मौसम में काफी बदलाव देखा जा रहा है. कहीं अधिक बारिश हो रही है तो कहीं भीषण गर्मी पड़ रही है. साल 2024 में क्लाइमेट चेंज का काफी असर देखा गया. साल के पहले 9 महीनों में भीषण गर्मी और भारी बरसात की वजह से कई घटनाएं हुईं और इससे 3,200 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. 2. 3 लाख से ज्यादा घर नष्ट हो गए. यह चौंकाने वाला खुलासा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की हाल ही में जारी रिपोर्ट से हुई है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने कहा कि भारत को 2024 में पहले नौ महीनों में 93% दिनों में चरम मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ा. 274 दिनों में से 255 दिन में 3,238 लोगों की जान चले गई. 2.35 लाख से अधिक घर/इमारतें नष्ट हो गए र 3.2 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फसलें प्रभावित हुईं. साल 2023 के पहले नौ महीनों की तुलना में 2024 में गर्मी और ठंड की लहरें चक्रवात, बिजली, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन सहित चरम मौसम की घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है.
सीएसई के आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने पिछले साल इसी अवधि के दौरान 273 दिनों में से 235 दिनों में चरम मौसम दर्ज किया था, जिसमें 2,923 लोगों की जान चली गई थी. 1.84 हेक्टेयर भूमि पर फसलें प्रभावित हुईं और 80,293 घर क्षतिग्रस्त हो गए. नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ने अपनी वार्षिक 'चरम मौसम की स्थिति रिपोर्ट' में उल्लेख किया है कि मध्य प्रदेश में 176 दिनों तक चरम मौसम की घटनाएं हुईं, जो देश में सबसे अधिक है. वहीं, केरल में सबसे अधिक 550 मौतें दर्ज की गईं. उसके बाद मध्य प्रदेश (353) और असम (256) का स्थान है.
रिपोर्ट से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए (85,806). जबकि महाराष्ट्र में 142 दिनों तक चरम घटनाएं देखी गईं. इस राज्य में देश भर में प्रभावित फसल क्षेत्र का 60% से अधिक हिस्सा था, जिसके बाद 2024 में मध्य प्रदेश का स्थान था.
क्षेत्रवार आंकड़ों से पता चलता है कि मध्य भारत ने 218 दिनों के साथ चरम घटनाओं की सबसे अधिक आवृत्ति का सामना किया. इसके बाद 213 दिनों के साथ उत्तर-पश्चिम का स्थान रहा. जान गंवाने के मामले में मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक मौतें (1,001) हुईं. इसके बाद दक्षिणी प्रायद्वीप (762 मौतें), पूर्व और उत्तर-पूर्व (741 मौतें) और उत्तर-पश्चिम (734 मौतें) का स्थान रहा. हालांकि, सीएसई के विश्लेषकों ने बताया कि घटना-विशिष्ट नुकसान विशेष रूप से सार्वजनिक संपत्ति और फसल क्षति पर अधूरे डेटा संग्रह के कारण रिपोर्ट की गई क्षति को कम करके आंका जा सकता है. साल 2024 में अन्य जलवायु रिकॉर्डों का हवाला देते हुए सीएसई ने कहा कि जनवरी 1901 के बाद से भारत का नौवां सबसे सुखा महीना था.