Tamil Nadu Elections 2026: NDA में असमंजस, DMDK-PMK भी असहज

तमिलनाडु में 2026 चुनाव से पहले बीजेपी और एआईएडीएमके के बीच सरकार में हिस्सेदारी को लेकर मतभेद गहरा गए हैं। इसका फायदा डीएमके गठबंधन को मिल सकता है।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-07-15 09:44 GMT

2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के भीतर खिंचाव और मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। एक ओर बीजेपी के वरिष्ठ नेता यह दावा कर रहे हैं कि अगर एनडीए सत्ता में आई तो बीजेपी सरकार में भागीदार होगी, वहीं दूसरी ओर एआईएडीएमके प्रमुख एडप्पडी के. पलानीस्वामी (EPS) यह दोहराते रहे हैं कि उनकी पार्टी अकेले स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी।

राजनीतिक विश्लेषक आर. रंगराज के अनुसार यह टकराव दोनों दलों की रणनीति और संदेश में बुनियादी अंतर को दर्शाता है। बीजेपी की मंशा तमिलनाडु में पहली बार सत्ता में भागीदारी की है, जहां अब तक उसे कभी सरकार चलाने का मौका नहीं मिला। इसलिए बीजेपी एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में रहकर सरकार में दो-तीन मंत्री पद पाने की रणनीति पर काम कर रही है।

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वहीं एआईएडीएमके चाहती है कि यह चुनाव उसकी "सोलो वापसी" के रूप में प्रचारित हो, जहां वह डीएमके के खिलाफ एकमात्र विकल्प के रूप में उभरे। वह सत्ता साझा करने की इच्छुक नहीं है। पार्टी के नेता 1980 में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन की विफलता को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं, हालांकि आज की स्थिति काफी भिन्न है।

बीजेपी की बढ़त की कोशिश, लेकिन भ्रम की स्थिति

बीजेपी छोटे दलों को मंत्री पद का लालच देकर एनडीए का विस्तार करना चाह रही है ताकि खुद को 'केंद्र शक्ति' के रूप में पेश कर सके। इसके विपरीत, एआईएडीएमके गठबंधन में शक्ति संतुलन बिगड़ने से चिंतित है। यही टकराव सार्वजनिक हो रहा है, जिससे मतदाताओं में असमंजस की स्थिति बन रही है।

डीएमके को मिलेगा राजनीतिक फायदा?

विश्लेषकों के अनुसार, बीजेपी और एआईएडीएमके के बीच की यह खींचतान डीएमके गठबंधन के लिए वरदान साबित हो सकती है। डीएमके के नेतृत्व में कांग्रेस, वीसीके, सीपीआई जैसे दलों का एक स्पष्ट, वैचारिक रूप से जुड़ा हुआ गठबंधन है। यहां सत्ता साझा करने को लेकर कोई भ्रम नहीं है सरकार डीएमके ही चलाएगी।वहीं एनडीए में सीट बंटवारे से लेकर नेतृत्व और मंत्रिपरिषद में हिस्सेदारी तक सब कुछ अस्पष्ट है। डीएमडीके जैसे पुराने सहयोगी भ्रमित हैं, तो पीएमके जैसी पार्टियों में अंदरूनी बंटवारा है। कुछ गुट डीएमके से भी संपर्क में हैं।

मतदाताओं का भरोसा टूटेगा?

एनडीए में मचे घमासान से मतदाता निश्चित रूप से भ्रमित होंगे। अभी चुनाव में नौ महीने बाकी हैं लेकिन न रणनीति स्पष्ट है, न संदेश एकजुट। यह बिखराव प्रचार अभियान, कार्यकर्ताओं का मनोबल और जनता का विश्वास तीनों को प्रभावित कर सकता है।वहीं डीएमके 2017 से लगातार चुनाव जीतती आ रही है, जिसमें स्थानीय निकाय चुनाव भी शामिल हैं। पार्टी स्थिरता और संगठित नेतृत्व की प्रतीक बन चुकी है।

एआईएडीएमके के लिए चेतावनी का समय

AIADMK को त्वरित डैमेज कंट्रोल की आवश्यकता है। पार्टी एक ओर अकेले सरकार बनाने का दावा कर रही है, तो दूसरी ओर सहयोगियों के साथ गठबंधन की बात कर रही है, जो विरोधाभासी है। यदि कोई पार्टी 50-60 सीटें बांटने को तैयार है, तो वह स्पष्ट बहुमत की उम्मीद कैसे कर सकती है?

अमित शाह ने दो पार्टियों के साथ समझौते का ऐलान कर दिया है, लेकिन AIADMK की ओर से अभी तक कोई गंभीर बातचीत शुरू नहीं हुई है। न तो कमजोर सहयोगियों को हटाया गया है और न ही कोई ठोस गठबंधन खड़ा हुआ है।

गठबंधनों की विचारधारा की ताकत

डीएमके गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत है उसका साझा वैचारिक आधार बीजेपी विरोध और धर्मनिरपेक्षता। वहीं एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन महज़ सत्ता की साझेदारी तक सीमित लगता है। सहयोगी पार्टियों को बीजेपी पर विश्वास नहीं है, और वे भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। चुनाव के नज़दीक आते-आते, यह अस्थिरता निर्णायक साबित हो सकती है।

तमिलनाडु की राजनीति में गठबंधनों की स्पष्टता और स्थिरता बड़ी भूमिका निभाती है। 2026 के चुनाव में जहां डीएमके एक मजबूत और एकजुट मोर्चे के रूप में खड़ी है, वहीं एनडीए के भीतर गहराता अंतर्विरोध उसे पीछे धकेल सकता है। यदि एनडीए ने जल्द ही अपना संदेश और नेतृत्व स्पष्ट नहीं किया, तो वह मतदाताओं की नजरों में 'असंगठित और असहज' गठबंधन बनकर रह जाएगी।

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