देश के इस शहर को आज भी हवाई अड्डे का इंतजार, सिर्फ फाइलों पर काम

उड़ान योजना के तहत लद्दाख शहर के लिए हवाई अड्डे को 4 बार शामिल किया गया। कांग्रेस शासन के दौरान एक बड़ा रनवे बनाया गया। लेकिन नागरिक विमानों के लिए अपर्याप्त था।;

Update: 2025-04-09 02:16 GMT
लद्दाख के कारगिल में नागरिक हवाई अड्डे की मांग पर जोर देते हुए पर्यटन विशेषज्ञ नासिर मुंशी चाहते हैं कि लोग हिमालयी क्षेत्र से नागरिकों को हवाई मार्ग से लाने के लिए एएन-32 कार्गो कूरियर सेवाओं पर निर्भर रहना छोड़ दें। X/@DDNewslive

पहली बार इस विचार के सामने आने के कई सालों बाद भी, खूबसूरत हिमालयी क्षेत्र में स्थित कारगिल आज भी एक नागरिक हवाई अड्डे के लिए तरस रहा है। दशकों से कारगिल के नेता नियमित हवाई सेवाओं की मांग करते आ रहे हैं। लेह के बाद कारगिल लद्दाख का दूसरा सबसे बड़ा शहरी केंद्र है, जिसे केंद्र सरकार सीधे प्रशासित करती है।

चौंकाने वाला खुलासा

हाल ही में संसद में जब केंद्र सरकार ने बताया कि लद्दाख प्रशासन ने कारगिल में सिविल एयरपोर्ट के लिए नई व्यवहार्यता रिपोर्ट की मांग नहीं की है, तो पूरे क्षेत्र में आश्चर्य और नाराज़गी की लहर दौड़ गई।लद्दाख हिल डेवलपमेंट काउंसिल के मुख्य कार्यकारी पार्षद मो. जाफ़र अखून ने सरकार की इस प्रतिक्रिया पर हैरानी जताई।

"कारगिल के नेतृत्व द्वारा नागरिक हवाई अड्डे की मांग सालों से लगातार की जा रही है। यह दावा कि लद्दाख प्रशासन ने नई व्यवहार्यता रिपोर्ट की मांग नहीं की है, दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाला है," अखून ने द फेडरल से कहा।

नजरअंदाजी रोक रहा विकास

अखून का कहना है कि केंद्र सरकार बार-बार इस मुद्दे को नजरअंदाज़ करती रही है, जबकि एक सिविल एयरपोर्ट जिले की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल सकता है।"कारगिल के हवाई अड्डे को चार बार उड़ान योजना (UDAN) में शामिल किया गया। कांग्रेस शासन के दौरान एक रनवे भी बना, लेकिन वह नागरिक विमानों के लिए उपयुक्त नहीं था। आज तक एक भी सिविल विमान कारगिल में नहीं उतरा," उन्होंने कहा।

इतिहास और संघर्ष

कारगिल हवाई अड्डे का इतिहास 1996 से शुरू होता है, जब तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार (जिसमें लद्दाख शामिल था) ने एक हवाई पट्टी बनाई और उसे भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) को नागरिक उपयोग के लिए सौंप दिया।हालांकि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान हवाई अड्डे को नुकसान पहुंचा और 2003 में इसका नियंत्रण भारतीय वायुसेना (IAF) को सौंप दिया गया। तब से लेकर अब तक नागरिक उड़ानें स्थगित हैं, जबकि मांग लगातार बनी हुई है।

MP की लगातार पैरवी

लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफ़ा जान लगातार कारगिल में बेहतर हवाई संपर्क की मांग करते रहे हैं । नए हवाई अड्डे का निर्माण हो या मौजूदा हवाई पट्टी से उड़ानों की शुरुआत।हालांकि वाखा, तुर्तुक, डिस्किट, न्योमा और पदुम/ज़ांस्कर में संभावित स्थलों का सर्वेक्षण हुआ था, लेकिन कोई भी स्थान उपयुक्त नहीं पाया गया।

2018 में UDAN योजना के दूसरे चरण में कारगिल को चुना गया, लेकिन आधारभूत ढांचे की कमी के कारण व्यावसायिक उड़ानें शुरू नहीं हो सकीं।

ढांचे की कमी और विमान की चुनौती

2021 में AAI, वायुसेना और DGCA द्वारा की गई जांच में पाया गया कि कारगिल का भूभाग बड़े विमानों के लिए अनुपयुक्त है।2023 की समीक्षा में निष्कर्ष निकाला गया कि केवल 19-सीटर विमान ही मौजूदा ढांचे में सुरक्षित रूप से उड़ान भर सकते हैं — बोइंग 737 या एयरबस A320 जैसे बड़े विमान नहीं।

MP जान का कहना है कि उन्होंने सरकार से 50-सीटर टर्बो इंजन विमान, जैसे स्पाइसजेट के सिंगल-इंजन विमान, की संभावनाएं तलाशने का अनुरोध किया है। यदि यह संभव नहीं हो, तभी 19-सीटर विकल्प अपनाया जाए।"नागरिक उड्डयन मंत्री कारगिल में उड़ानें शुरू कराने को लेकर सकारात्मक हैं। मैंने गृह मंत्रालय से भी हस्तक्षेप की मांग की है," उन्होंने कहा।

सर्दियों में जीवन संकट में

जान का मानना है कि भविष्य में ज़ोजिला टनल सड़क संपर्क में सुधार कर सकती है, लेकिन सर्दियों में हवाई संपर्क एक गंभीर समस्या बनी हुई है।यह घोड़े की नाल जैसी सुरंग 11,000 फीट की ऊंचाई पर कश्मीर के गांदरबल जिले को कारगिल के द्रास से जोड़ती है।"सर्दियों में छात्र और मरीज जम्मू और श्रीनगर में फंसे रहते हैं। कई लोगों की जान इसलिए चली गई क्योंकि उन्हें सुपर-स्पेशियलिटी इलाज समय पर नहीं मिल पाया। अगर एयरलिफ्ट की सुविधा होती तो कई जानें बचाई जा सकती थीं," उन्होंने कहा।

सैन्य विमान उतर सकते हैं, तो नागरिक क्यों नहीं?

जबकि AN-32 और C-17 जैसे सैन्य विमान कारगिल में सफलतापूर्वक उतरते हैं, लेकिन कोई भी व्यावसायिक एयरलाइन वहां ऑपरेशन नहीं करती।कांग्रेस नेता और पर्यटन विशेषज्ञ नासिर मुंशी का कहना है कि AN-32 के जरिए नागरिकों को एयरलिफ्ट करना एक अस्थायी समाधान है और इससे नियमित नागरिक उड़ानों की मांग दब जाती है।"कारगिल को पर्यटन हब बनाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ स्थानीय टूर ऑपरेटर्स या होटल मालिकों पर नहीं छोड़ी जानी चाहिए।"

पर्यटन की असीम संभावनाएं

मुंशी ने कहा कि कारगिल में मैत्रेय बुद्ध की दुर्लभ प्रतिमाएं हैं, जो विश्व में कहीं और नहीं पाई जातीं।सुरु वैली और द्रास जैसे खूबसूरत क्षेत्र अभी भी पर्यटकों से लगभग अछूते हैं।MP जान ने बताया कि वे अब नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संपर्क में हैं और लद्दाख प्रशासन के औपचारिक अनुरोध पर नई व्यवहार्यता रिपोर्ट की मांग पर विचार किए जाने की उम्मीद कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि एक सेवानिवृत्त पायलट ने सुझाव दिया था कि मौजूदा हवाई अड्डे को पश्कुम और वाखा नाला की ओर विस्तारित किया जाए, जिससे संचालन में सुधार हो सकता है।"अगर गृह मंत्रालय गंभीरता से इस पर काम करे, तो किसी एयरलाइन को मनाया जा सकता है। इस पहल को कारगर बनाने के लिए सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन भी दिए जाने चाहिए।

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