राजनीति से संन्यास का सवाल नहीं, एक इस बयान से मायावती ने दिए कई संदेश
बीएसपी सुप्रीमो मायावती हाल फिलहाल में बोलते हुए कम देखा होगा। लेकिन अब वो खुल कर बोल रही हैं। उनका एक बयान चर्चा में है कि राजनीति से संन्यास नहीं लूंगी।
Mayawati News: दिल्ली- अलीगढ़ हाईवे पर दादरी से कुछ किमी पहले एक गांव है बादलपुर। बीएसपी सुप्रीमो मायावती का नाता इस गांव से है। उस गांव में मायावती के पुश्तैनी मकान में रहने वाले एक शख्स से द फेडरल टीम की मुलाकात हुई। सवाल यही था कि चंद्रशेखर रावण कितना नुकसान पहुंचाएंगे। इस सवाल के जवाब में उस शख्स ने कहा था कि बहन जी को नगीना वाली सीट छोड़ देनी चाहिए थी। चंद्रशेखर भी अपने ही समाज का लड़का है। उसे मौका देना चाहिए। इस जवाब पर सवाल था कि मायावती ही तो जाटव समाज का चेहरा रही हैं और सियासत में जब कोई खिलाफ होकर ताल ठोंकता है तो वो अपना कहां रह जाता। इस सवाल के जवाब में उस शख्स ने कहा कि आपने खुद देखा होगा कि वो एक्टिव कहां है। लेकिन 26 अगस्त को मायावती ने कहा कि राजनीति से संन्यास लेने का सवाल ही नहीं पैदा होता। इस बयान के जरिए वो आखिर किसे संदेश दे रही हैं उसे भी समझना जरूरी है।
ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़े
अगर 2012 के बाद से यूपी में बीएसपी के प्रदर्शन को देखें तो गिरावट आई है। 2022 के विधानसभा चुनाव में तो सिर्फ एक सीट पर जीत मिली और उसे भी कैंडिडेट की जीत माना गया। यानी कि पूरे प्रदेश में 402 विधानसभा सीट पर मायावती का प्रभाव शून्य रहा। 2024 के आम चुनाव में पार्टी का सुपड़ा ही साफ हो गया। यही नहीं पार्टी के वोट शेयर में गिरावट आई। वोट शेयर में गिरावट का मतलब साफ था कि अगर पार्टी नहीं चेती तो इतिहास बनने में देर नहीं लगेगी। इसलिए अपने भतीजे आकाश आनंद को दोबारा से नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया। राजनीति से संन्यास नहीं लेने की बात कह उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने की कोशिश की है।
सपा- कांग्रेस को संदेश
मायावती इस बयान के जरिए अपने विरोधियों को भी संदेश देने की कोशिश की हैं। अगर आप देखें तो वो इस समय राहुल गांधी, अखिलेश यादव पर ना सिर्फ निशाना साध रही हैं बल्कि तीखे सवाल भी कर रही हैं। एससी-एसटी कोटे का मुद्दा हो, क्रीमीलेयर का मुद्दा हो। मायावती सवाल करती हैं कि आखिर राहुल गांधी और अखिलेश यादव इस विषय पर क्यों नहीं बोल रहे हैं। वो यह भी कहती हैं कि कांग्रेस को आरक्षण या संविधान वाले मसले पर बोलने का नैतिक अधिकार नहीं है।
मायावती को यह पता है कि यूपी में कांग्रेस और सपा के मजबूत होने का अर्थ है कि उन्हें सियासी पिच से आउट होकर पैवेलियन जाना पड़ेगा। जहां तक बीजेपी से खतरे का सवाल है तो उसकी तरफ से उनके लिए किसी तरह की चुनौती नहीं है। एससी वर्ग का एक बड़ा धड़ा कभी भी बीजेपी के साथ नहीं रहा है। अब अपने बयान से वो गैर बीजेपी दलों को कड़ी चुनौती पेश करने की कोशिश कर रही हैं। इसके साथ ही मायावती जितना मजबूत होकर उभरेंगी कि सपा और कांग्रेस के राजनीतिक लाभ पर ग्रहण लग जाएगी