आंध्र प्रदेश में हिंदी और परिसीमन पर खामोशी: सत्ता संघर्ष में फंसी तेलुगु पार्टियां

चंद्रबाबू नायडू द्वारा मोदी सरकार को बिना शर्त समर्थन देने से साफ पता चलता है कि टीडीपी ने संघवाद के अपने मूल सिद्धांत से खुद को अलग कर लिया है. परिसीमन पर हमारी डिबेट सीरीज में अगला लेख...;

Update: 2025-03-21 13:53 GMT

आंध्र प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को थोपने और परिसीमन के कारण दक्षिण भारतीय राज्यों के लोकसभा प्रतिनिधित्व पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हो रही है. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की एनडीए सरकार के लिए यह मुद्दा कोई विशेष महत्व नहीं रखता. वहीं, विपक्षी पार्टी YSR कांग्रेस के नेता YS जगन मोहन रेड्डी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकते. क्योंकि राज्य में सत्ता गंवाने के बाद वे अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.

टीडीपी का बदलता रुख

आंध्र प्रदेश के आईटी मंत्री और चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश ने हाल ही में तमिलनाडु में हिंदी थोपने और परिसीमन के मुद्दों को सिर्फ चुनावी समय की हंगामाखोरी करार दिया।. उन्होंने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा कि वह केंद्र सरकार से टकराव की बजाय संवाद को प्राथमिकता देंगे और यह कि उत्तर-दक्षिण भेदभाव अब मौजूद नहीं है. यह बयान उनके पिता चंद्रबाबू नायडू की नीतियों से उलट था, जब उन्होंने 2018-19 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) का एनडीए से गठबंधन तोड़ने के बाद केंद्र सरकार के खिलाफ तीव्र आलोचना की थी.

राजनीतिक अस्तित्व की प्राथमिकता

साल 2019 के चुनावों में शर्मनाक हार और मोदी सरकार के केंद्र में और मजबूत होने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने महसूस किया कि राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखना संघीय दावों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. लोकेश का यह बयान उनके दादा एनटी रामाराव (NTR) के संघीय दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत है, जिन्होंने राज्यों को अधिक अधिकार देने के लिए विपक्षी दलों का गठबंधन बनाया था.

एनटी रामाराव का संघीय दृष्टिकोण

40 साल पहले, फरवरी 1983 में बेंगलुरु में 19 दलों के विपक्षी सम्मेलन को संबोधित करते हुए NTR ने कहा था कि केंद्र एक सांस्कृतिक मिथक है. राज्य के बिना केंद्र कहां है?" उनकी इस बात से घबराई हुई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकार के दृष्टिकोण को समझने के लिए 'सर्कारिया आयोग' की स्थापना की घोषणा की थी. NTR हमेशा राज्यों की शक्ति में विश्वास करते थे. क्योंकि वे केंद्र पर राज्यों की अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंतित थे, खासकर योजनाओं, परियोजनाओं और प्राकृतिक आपदाओं के समय.

पवन कल्याण का समर्थन

हालांकि, कई लोग NTR के संघीय रुख को उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने से जोड़ते थे, वे वास्तव में भारत में संघीय मोर्चों के अग्रदूत माने जाते हैं. अब चंद्रबाबू नायडू का एनडीए सरकार का समर्थन यह दर्शाता है कि टीडीपी ने अपने संस्थापक संघीय सिद्धांत से मुंह मोड़ लिया है. इसी तरह जन सेना प्रमुख और उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने भी दक्षिण भारतीय भेदभाव की राजनीति को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सनातन धर्म का समर्थन किया है.

आंध्र प्रदेश बनाम तेलंगाना

दिलचस्प बात यह है कि आंध्र प्रदेश में तेलंगाना की तरह एक सक्रिय बौद्धिक वर्ग नहीं है. जहां पूर्व प्रोफेसर, सेवानिवृत्त न्यायधीश, पूर्व नौकरशाह और वैज्ञानिक नीति निर्णयों पर दबाव डालने के लिए समूह बनाते हैं. आंध्र प्रदेश में एकमात्र आवाज जो नियमित रूप से सुनाई देती है, वह 80 वर्षीय पूर्व IAS अधिकारी EAS शर्मा की है, जिन्होंने केंद्र सरकार के बढ़ते विरोधी संघीय रुख के बारे में दक्षिण भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चेतावनी दी थी.

चेतावनी का नोट

साल 2024 में शर्मा ने चंद्रबाबू नायडू को मुख्यमंत्री बनने के बाद केंद्र सरकार के वित्त आयोग और फंड के वितरण पर नियंत्रण के प्रयासों का विरोध करने के लिए पत्र लिखा. उन्होंने नायडू से अनुरोध किया कि वे एनटी रामाराव के मार्ग पर चलें, वरना देर हो जाएगी. शर्मा ने कहा कि साल 1983 में एनटी रामाराव द्वारा आयोजित विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में मैं एक सिविल सेवक के रूप में भाग ले चुका हूं. NTR ने केंद्र से आग्रह किया था कि वह राज्यों को कमजोर करने वाले सभी निर्णयों को वापस ले. वर्तमान एनडीए सरकार इंदिरा गांधी के शासन से कहीं अधिक आक्रामक है.

लोकसभा में असंतुलन

शर्मा ने यह भी कहा कि अगर परिसीमन 2026 की अनुमानित जनसंख्या (1.42 बिलियन) के आधार पर किया जाता है तो तेलंगाना में लोकसभा सीटों की संख्या 17 से बढ़कर 20 और आंध्र प्रदेश में 25 से बढ़कर 28 हो जाएगी. वहीं, उत्तर प्रदेश में सीटों की संख्या 80 से बढ़कर 128 हो जाएगी और बिहार में भी ऐसी ही वृद्धि होगी. दक्षिण और उत्तर के बीच यह असंतुलन गंभीर राजनीतिक और वित्तीय संकट पैदा करेगा.

संघवाद पर खतरा

पूर्व कृषि मंत्री वड्डे शोभनद्रिस्वरा राव ने चेतावनी दी कि भारत में संघवाद तेजी से घट रहा है और यदि इसे रोका नहीं गया तो दक्षिण भारत के हितों को गंभीर खतरा हो सकता है. राव ने कहा कि NTR ने हमेशा मजबूत राज्यों और संघीय प्रणाली का समर्थन किया था. अफसोस, अब आंध्र प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां एनडीए के नियंत्रण में हैं, जो राज्यों के अधिकारों को छीन रही हैं. कृषि कानून, बिजली कानून और NEP जैसे उपाय सभी संघीय दृष्टिकोण के खिलाफ हैं.

भाजपा के साथ गठबंधन

विजयवाड़ा स्थित जन चेतना वेदिका के वल्लमपल्ली लक्ष्मण रेड्डी के अनुसार, आंध्र प्रदेश में केंद्र के खिलाफ लोगों को एकजुट करना मुश्किल होगा. क्योंकि तीन प्रमुख पार्टियां—टीडीपी, जन सेना, और YSR कांग्रेस या तो भाजपा के साथ खुलकर या गुप्त रूप से गठबंधन में हैं. रेड्डी ने कहा कि जबकि टीडीपी, जन सेना और YSR कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी को खुश करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, वामपंथी दलों की आवाज काफी कमजोर हो गई है. आंध्र प्रदेश में भारत के संघीय ढांचे को बचाने के लिए कोई आंदोलन आयोजित करना असंभव है.

Tags:    

Similar News