विवादास्पद हलफनामे से पंजाब यूनिवर्सिटी में भारी बवाल, छात्र संगठनों का प्रदर्शन

पुतले जलाए गए, विरोध स्वरूप हलफनामे को टॉयलेट पेपर पर छापकर प्रदर्शित किया गया और दो छात्रों ने तो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू को पत्र लिखकर इस मामले में स्वतः संज्ञान लेने की मांग तक कर दी।;

Update: 2025-07-05 13:09 GMT
यह मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के नेता, जो कभी पंजाब यूनिवर्सिटी (PU) के छात्र रह चुके हैं, इस फैसले के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। इस तस्वीर में, छात्र विरोध प्रदर्शन करते हुए नजर आ रहे हैं।

चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी (PU) उस समय विवादों के घेरे में आ गई जब प्रथम वर्ष के छात्रों से ऐसा हलफनामा भरवाया जाने लगा जिसमें उन्हें यह घोषणा करनी थी कि वे बिना विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के कोई भी प्रदर्शन नहीं करेंगे और प्रदर्शन के दौरान ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए निर्धारित डेसिबल सीमा का पालन करेंगे।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि उल्लंघन करने पर छात्रों को परीक्षाओं से वंचित किया जा सकता है, दाख़िला रद्द किया जा सकता है और विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती है।

इस विवादास्पद निर्णय के खिलाफ छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। कुल 11 शर्तों वाले इस हलफनामे को लेकर इतना आक्रोश है कि छात्रों ने पुतले फूंके, हलफनामे को टॉयलेट पेपर पर छपवाकर प्रदर्शन किया और यहां तक कि दो छात्रों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू को पत्र लिखकर इसपर स्वतः संज्ञान लेने की मांग की।

राजनीतिक रंग और विरोध के सुर

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और यहां तक कि भाजपा के कई नेता जो कभी पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं, इस कदम की निंदा कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह हलफनामा संवैधानिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है।

PU के छात्र राजनीति का एक समृद्ध इतिहास रहा है, देश के कई बड़े राजनीतिक नेता यहीं से अपने छात्र राजनीति करियर की शुरुआत कर चुके हैं।

अदालत में याचिका

NSUI के पूर्व PUCSC उपाध्यक्ष अक्षित गर्ग ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए इस हलफनामे को "अवैध और असंवैधानिक" बताया है। याचिका में कहा गया है कि यह हलफनामा छात्रों के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत शांतिपूर्ण सभा के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार का हनन करता है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य छात्रों को राजनीतिक रूप से परिपक्व नागरिक बनाना होना चाहिए, न कि छात्र लोकतंत्र को कुचलना। यह याचिका 7 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

विवादास्पद 11 शर्तें

हलफनामे में शामिल कुछ प्रमुख बिंदु:

शर्त 1: किसी भी प्रदर्शन से पहले विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति लेना आवश्यक होगा।

शर्त 4: नारेबाज़ी या विरोध के दौरान छात्रों को ध्वनि प्रदूषण नहीं करना होगा और प्रशासन द्वारा निर्धारित डेसिबल मानकों का पालन करना होगा।

शर्त 11 (सबसे सख्त): किसी भी शर्त के उल्लंघन पर छात्र को परीक्षा से रोका जाएगा, दोहराने पर दाखिला रद्द कर दिया जाएगा, और आगे किसी भी परिसर में प्रवेश निषेध कर दिया जाएगा। छात्र को विश्वविद्यालय चुनाव में हिस्सा लेने से भी वंचित किया जा सकता है।

शिक्षाविदों और पूर्व छात्रों की तीखी प्रतिक्रिया

चमन लाल (पूर्व डीन, भाषा संकाय): "यह कदम निंदनीय है और तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।" दिव्यांश ठाकुर (पूर्व PUCSC प्रत्याशी): "यह असंवैधानिक है और छात्र लोकतंत्र का गला घोंटता है।" अक्षित गर्ग: "यह भाजपा के असहमति को कुचलने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है।"

राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रिया

AAP सांसद गुरमीत सिंह मीत हेयर ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखते हुए कहा: “यह निर्णय छात्रों के मौलिक अधिकारों पर सीधा हमला है।”

भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी (PUCSC के 1984 के जनरल सेक्रेटरी): “यह कदम अकादमिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध है।” पूर्व महापौर (चंडीगढ़) देवेश मौदगिल (भाजपा): “यह छात्रों के संविधान प्रदत्त अधिकारों पर अनुचित प्रतिबंध है।”

 पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल (कांग्रेस): "यह पूरी तरह दमनकारी कदम है और PU की लोकतांत्रिक परंपराओं को कुचलने की कोशिश है।”

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी: "यह अनुच्छेद 19(1)(b) का सीधा उल्लंघन है और असहमति को दबाने की कोशिश है।”

पूर्व भाजपा सांसद और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन: "मैं इस हलफनामे को लेकर स्तब्ध हूं। ऐसा विवाद टाला जा सकता था।”

प्रशासन का जवाब

PU की कुलपति रेणु विग ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हलफनामे की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने कहा: “इसे लागू करने का उद्देश्य अभिव्यक्ति को दबाना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि शैक्षणिक गतिविधियां बाधित न हों।”

यह विवाद न केवल छात्र राजनीति बल्कि भारत में विश्वविद्यालयों में असहमति की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरों की ओर भी इशारा करता है।

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