मद्रास हाईकोर्ट की फटकार के बाद पुलिस ने सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन परिसर पर छापा मारा
मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा एक पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कार्रवाई करते हुए उनके खिलाफ सभी आपराधिक मामलों की रिपोर्ट मांगे जाने के बाद 150 पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन की तलाशी ली.
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-10-01 16:18 GMT
Isha Foundation Police Search Operation: सदगुरु के आश्रम में आज भारी पुलिस बल की मौजूदगी में तलाशी अभियान चलाया गया. ये तलाशी अभियान कोयंबटूर के एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में तीन डीएसपी सहित 150 पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने मंगलवार को थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन के आश्रम में चलाया गया. इस दौरान पुलिस ने आश्रम के कमरों की तलाशी ली तथा वहां रहने वालों से पूछताछ की.
मद्रास हाई कोर्ट के निर्देश के बाद पुलिस ने की कार्रवाई
इस छापेमारी की बात करे तो ये मद्रास हाई कोर्ट के निर्देश से जुड़ी है. हाई कोर्ट ने कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस को वेलिंगिरी की तलहटी में स्थित फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों की जांच करने और स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश जारी किये थे, जिसके एक दिन पुलिस ने छापेमारी की कार्रवाई की. इस फाउंडेशन की स्थापना गुरु जग्गी वासुदेवम जिन्हें सद्गुरु के नाम से भी जाना जाता है, ने की थी.
छापेमारी नहीं महज जांच का हिस्सा
हालाँकि, ईशा योग केंद्र ने पुलिस के इस तलाशी अभियान को महज एक 'जांच' बताकर खारिज कर दिया. फाउंडेशन ने एक बयान में कहा कि कोर्ट के आदेश के कारण एसपी समेत पुलिस ईशा योग केंद्र में सामान्य जांच के लिए आई थी. "वे निवासियों और स्वयंसेवकों से पूछताछ कर रहे हैं, उनकी जीवनशैली को समझ रहे हैं, यह समझ रहे हैं कि वे कैसे आते हैं और कैसे रहते हैं, आदि."
हैबिअस कार्पस याचिका
हाई कोर्ट ने यह आदेश सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज द्वारा दायर हैबियस कार्पस याचिका पर सुनवाई के बाद पारित किया, जिन्होंने दावा किया था कि उनकी दो बेटियों गीता कामराज (42) और लता कामराज (39) को कोयंबटूर स्थित फाउंडेशन में बंदी बनाकर रखा गया है. अपनी याचिका में उन्होंने संगठन पर व्यक्तियों का 'ब्रेन वाश', उन्हें साधु बनाने और उनके परिवारों से उनके संपर्क को प्रतिबंधित करने का आरोप लगाया.
सद्गुरु की अपनी बेटी विवाहित तो दूसरों को सन्यास लेने के लिए क्यों कहते हैं
न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी. शिवगणनम ने सवाल उठाया कि जब सद्गुरु की अपनी बेटी विवाहित और खुशहाल जीवन जी रही है, तो वे अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी की तलहटी में स्थित संगठन के योग केंद्र में रह रही डॉ. कामराज की बेटियों ने अदालत में कहा कि वे अपनी मर्जी से केंद्र में रह रही हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी भी तरह की जबरदस्ती या हिरासत में रखे जाने से इनकार किया है.
हालांकि, डॉ. कामराज ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि उनकी बड़ी बेटी, जो ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से मेक्ट्रोनिक्स में स्नातकोत्तर है, 2008 में अपने पति से तलाक लेने से पहले अच्छी खासी तनख्वाह कमा रही थी. तलाक के बाद, उसने फाउंडेशन में योग कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया.
याचिका में कहा गया है कि छोटी बेटी, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, अपनी बहन के साथ चली गई और आखिरकार स्थायी रूप से केंद्र में रहने का फैसला किया. डॉ. कामराज के अनुसार, फाउंडेशन ने उनकी बेटियों को खाना और दवाइयाँ दीं, जिससे उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएँ कमज़ोर हो गईं, जिसके कारण उन्होंने अपने परिवार से सभी संबंध तोड़ लिए.
याचिकाकर्ता की बेटियों ने कहा अपनी मर्जी से आश्रम का जीवन अपनाया
हालांकि कामराज की बेटियों ने अदालत में जोर देकर कहा कि ईशा में उनका रहना स्वैच्छिक था, लेकिन जस्टिस सुब्रमण्यम और शिवगनम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे. "हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से बसाया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांतवासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है. यही संदेह है," जस्टिस शिवगनम ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की.
इसके अलावा, न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने बेटियों से पूछा कि वे आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने का दावा करती हैं. उन्होंने कहा, "क्या आपको नहीं लगता कि अपने माता-पिता की उपेक्षा करना पाप है? 'सभी से प्रेम करो और किसी से घृणा मत करो' भक्ति का सिद्धांत है, लेकिन हम आपके अंदर अपने माता-पिता के लिए बहुत नफरत देख सकते हैं. आप उन्हें सम्मानपूर्वक संबोधित भी नहीं कर रही हैं."
अदालत ने अतिरिक्त लोक अभियोजक ई राज थिलक को 4 अक्टूबर तक एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.
जांच
इस बीच, कोयंबटूर जिले के पुलिस अधीक्षक के कार्तिकेयन और जिला समाज कल्याण अधिकारी आर अंबिका मंगलवार को फाउंडेशन पहुंचे और वहां रह रहीं महिलाओं का "ब्रेन वाश" करने के आरोपों की जांच की. जांच के दौरान एहतियात के तौर पर लगभग 150 पुलिसकर्मियों की एक मजबूत टुकड़ी ईशा फाउंडेशन पर तैनात थी. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "अधिकारियों ने फाउंडेशन के लोगों से पूछताछ की."
अनावश्यक विवाद: ईशा फाउंडेशन
तलाशी अभियान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ईशा फाउंडेशन ने इस बात से इनकार किया कि वे भिक्षु बनने की वकालत करते हैं या लोगों से विवाह न करने के लिए कहते हैं, क्योंकि ये व्यक्तिगत निर्णय होते हैं.
फाउंडेशन ने यहां एक बयान में कहा, "ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग और आध्यात्मिकता प्रदान करने के लिए की थी. हमारा मानना है कि वयस्क मनुष्यों के पास अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और बुद्धि है." यहां हजारों ऐसे लोग रहते हैं जो साधु नहीं हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य या साधुत्व ग्रहण कर लिया है. इसके बावजूद याचिकाकर्ता चाहता था कि साधुओं को अदालत के सामने पेश किया जाए और साधुओं ने खुद को अदालत के सामने पेश किया है. बयान में कहा गया है, "उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे अपनी इच्छा से ईशा योग केंद्र में रह रहे हैं. अब जबकि मामला अदालत के संज्ञान में है, हमें उम्मीद है कि सत्य की जीत होगी और सभी अनावश्यक विवादों का अंत होगा." उन्होंने कहा कि वे "लोगों से शादी करने या साधु बनने के लिए नहीं कहते हैं; ये व्यक्तिगत विकल्प हैं."
इसमें दावा किया गया है कि याचिकाकर्ता और अन्य लोगों ने फाउंडेशन द्वारा बनाए जा रहे श्मशान घाट के बारे में जांच करने के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमिटी होने का झूठा बहाना बनाकर परिसर में जबरन घुसने की कोशिश की और उन्होंने फाउंडेशन के खिलाफ आपराधिक शिकायत भी दर्ज कराई है. उच्च न्यायालय ने पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी थी. इसमें कहा गया है, "इसके अलावा फाउंडेशन के खिलाफ कोई अन्य आपराधिक मामला नहीं है. जो कोई भी फाउंडेशन के खिलाफ गलत सूचना फैलाने में लिप्त होगा, उसके खिलाफ देश के कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाएगा."