सीट वीआईपी, एक से बढ़कर एक शख्सियतें, फिर भी वोटर्स की दिखी बेरुखी

आम चुनाव 2024 में मतदान का प्रतिशत कम रहा है. यहां पर हम यूपी की कुछ वीआईपी सीट की बात करेंगे जहां 40 प्रतिशत से अधिक मतदाता बूथ तक नहीं पहुंचे.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-03 07:07 GMT

Loksabha Election 2024 Voting Percent: आम चुनाव 2024 के सभी सात चरणों में मतदान का प्रतिशत 2019 की तुलना में कम रहा है. इसके पीछे बड़ी वजह गर्मी बताई जा रही है. लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है कि पश्चिम बंगाल में मतदान अधिक हुआ है. यही नहीं पुरुषों की तुलना में महिलाएं कतारों में अधिक दिखीं. ग्रामीण इलाकों में शहरी इलाकों की तुलना में मतदान अधिकर हुआ. लेकिन शहरी इलाकों के मतदाता उदासीन नजर आए. अगर बात यूपी की करें तो गाजियाबाद से गोरखपुर-वाराणसी तक हाल यही रहा. यहां पर हम चार वीआईपी सीटों की बात करेंगे जहां मतदान का प्रतिशत 40 फीसद से अधिक मतदाता बूथ तक नहीं पहुंचे. इसमें पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, रक्षा मंत्री का संसदीय इलाका लखनऊ, स्मृति ईरानी का अमेठी और राहुल गांधी की संसदीय क्षेत्र रायबरेली शामिल है.

यहां 60 फीसद से कम मतदान

दिग्गजों की सीटों पर 60% से कम वोटिंग हुई. इनमें वाराणसी (नरेंद्र मोदी) 56.34, लखनऊ (राजनाथ सिंह)  में 52.28 फीसद, अमेठी (स्मृति ईरानी) 54.34, रायबरेली (राहुल गांधी) 58.12, फतेहपुर (साध्वी निरंजन ज्योति) 57.09, सुल्तानपुर (मेनका गांधी) 55.63,आजमगढ़ (दिनेश लाल यादव निरहुआ) 56.77, मिर्जापुर (अनुप्रिया पटेल) 57.72 मुजफ्फरनगर (संजीव बाल्यान)  59.13 फीसद शामिल हैं.

यहां पर 60 फीसद से अधिक मतदान

लखीमपुर खीरी में 64.68 फीसद मतदान, कन्नौज में 61.08 फीसद वोटिंग, महराजगंज में 61.79 मतदान चंदौली में 60.34 मतदान हुआ. अब सवाल यह है कि क्या यूपी के पिछड़े जिलों में मतदान वाले दिन गर्मी का प्रकोप कम था. या वहां मतदाताओं को इस बात की समझ है कि एक वोट का मूल्य कितना कीमती है. 

क्या कहते हैं जानकार

जानकार कहते हैं कि शहरी इलाकों में मतदान का प्रतिशत देश के सभी शहरों में एक जैसा ही रहा है. शहरी मतदाता सोशल मीडिया, संगोष्ठियों में सरकार की नाकामी या अच्छाई पर बात तो करते हैं लेकिन जब मत देने की बारी आती है तो कभी गर्मी, कभी बारिश तो कभी ठंड का तर्क तैयार रहता है. अगर आप पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की बात करें तो 58 फीसद वोटिंग का आंकड़ा भी इसलिए हासिल हो सका क्योंकि कुछ विधानसभाओं में ग्रामीण आबादी अधिक है और वहां मतदाता मौसम को धता मतदान करते नजर आए. इसका दूसरा पक्ष यह है कि अब मतदाता यह भी कहते हैं कि भारतीय राजनीति में कोई भी दल पाक साफ नहीं है. भ्रष्टाचार के आरोप या यूं कहें कि दलदल में सब फंसे हुए है लेकिन वोट की बात करते हैं, ऐसी सूरत देख लगता है कि मत देने से बचना चाहिए.

लखनऊ के रहने वाले मतदाता रवि प्रकाश कहते हैं कि मौसम तो एक बहाना है, लोग बिना काम के भी तपती दोपहरी में मौज मस्ती के लिए निकलते हैं. दरअसल अब मतदाताओं में वोटिंग को लेकर जोश में कमी आई है, इस दफा भले ही चुनाव में मुद्दे रहे हों. लेकिन सरकार के खिलाफ उस तरह का आक्रोश नहीं रहा है. अब मतदान में तेजी एक दो वजह है कि या तो सरकार की तरफ से कुछ क्रांतिकारी फैसले लिए किए गए हों या बहुत बड़ी भूल हुई हो. अब ये दोनों बात नहीं है लिहाजा मतदान का उतना अधिक नहीं जो ग्रामीण इलाकों या अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में दर्ज किए गए. 

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