पश्चिम बंगाल राज्यपाल और सरकार के बीच खींचतान, नहीं ले पा रहे दो विधायक का शपथ

पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और सरकार के बीच चल रही कटुता इस हद तक बढ़ गई है कि दो नवनिर्वाचित विधायक शपथ नहीं ले पा रहे हैं.

Update: 2024-06-27 10:40 GMT

West Bengal MLA Oath Ceremony: पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और सत्तारूढ़ सरकार के बीच चल रही दुश्मनी और कटुता इस हद तक बढ़ गई है कि दो नवनिर्वाचित विधायकों के लिए बड़ी बाधा बन रही है. भगवांगोला के विधायक रेयात हुसैन सरकार और बारानगर के विधायक सायंतिका बनर्जी का शपथ ग्रहण समारोह निर्वाचित होने के 22 दिन बाद भी नहीं हुआ है, जिससे जन प्रतिनिधि के रूप में उनके कामकाज में बाधा उत्पन्न हो रही है.

आयोजन स्थल विवाद के कारण शपथ लेने से चूके दो विधायक अब गुरुवार (27 जून) को पश्चिम बंगाल विधानसभा के बाहर धरना दे रहे हैं. बनर्जी और सरकार मांग कर रहे हैं कि राज्यपाल सीवी आनंद बोस उन्हें विधानसभा के अंदर शपथ ग्रहण समारोह आयोजित कराकर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य निभाने की अनुमति दें.

आयोजन स्थल विवाद

समस्या तब शुरू हुई जब राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा कि दोनों विधायक राजभवन में शपथ लें. उन्होंने शपथ ग्रहण की तारीख 26 जून तय की थी. लेकिन यह नहीं बताया कि उन्हें शपथ कौन दिलाएगा. राज्यपाल ने विधायकों को लिखे पत्र में कहा कि वे दोपहर 3.30 बजे तक उनका इंतजार करेंगे. वहीं, दोनों विधायकों ने राजभवन को बताया कि वे विधानसभा में शपथ लेंगे और उन्हें स्पीकर बिमान बनर्जी शपथ दिलाएं.

बुधवार को उस समय नाटकीय घटनाक्रम हुआ, जब दोनों विधायक विधानसभा परिसर में धरने पर बैठ गए और उनके हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था कि शपथ के लिए राज्यपाल के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं. उनके साथ संसदीय कार्य मंत्री सोवनदेब चट्टोपाध्याय भी थे. वे दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक राज्यपाल का इंतज़ार करते रहे. जब विधायक धरना-प्रदर्शन में व्यस्त थे तो राज्यपाल नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

कानूनी सलाह

बंगाल विधानसभा अध्यक्ष ने गतिरोध को खत्म करने के लिए कानूनी सलाह लेने का फैसला किया है. स्पीकर बनर्जी ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो मैं राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) से भी मिलूंगी. उन्होंने बोस पर शपथ ग्रहण समारोह को अहंकार की लड़ाई में बदलने और जानबूझकर मामले को उलझाने का आरोप लगाया. बनर्जी ने कहा कि विधायकों को शपथ ग्रहण कराने का काम हमेशा स्पीकर द्वारा किया जाता है. यहां तक कि डॉ. बीआर आंबेडकर ने भी इसका जिक्र किया था. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्यपाल ने स्पीकर को सूचित करना भी जरूरी नहीं समझा.

पहली बार नहीं विवाद

नव-निर्वाचित सदस्यों द्वारा राज्यपाल के समक्ष शपथ लेने के कई उदाहरण हैं. सबसे ताजा उदाहरण धूपगुड़ी के तृणमूल कांग्रेस विधायक निर्मल चंद्र रॉय का है, जिन्हें राज्यपाल बोस ने पिछले साल सितंबर में राजभवन में शपथ दिलाई थी. ऐसा पहली बार नहीं है, जब इस तरह की गतिरोध की स्थिति पैदा हुई है. कुछ साल पहले टीएमसी के बल्लीगंज विधायक बाबुल सुप्रियो के शपथ ग्रहण में दो सप्ताह से अधिक की देरी हुई थी. क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष और तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच इस बात को लेकर विवाद था कि समारोह की अध्यक्षता कौन करेगा. धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 188 का हवाला देते हुए यह काम डिप्टी स्पीकर आशीष बनर्जी को सौंपा था, जिसमें कहा गया है कि विधानसभा के नए सदस्यों को राज्यपाल या उनके द्वारा ऐसा करने के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी चाहिए. हालांकि, स्पीकर द्वारा राज्यपाल के प्रस्ताव पर सहमति जताए जाने के बाद गतिरोध सुलझ गया था.

यौन उत्पीड़न का आरोप

पश्चिम बंगाल के वर्तमान राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार और उनके बीच संबंध और भी खराब हो गए हैं. टीएमसी ने इस आरोप को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया और मुख्यमंत्री ने एक चुनावी रैली में यहां तक कह दिया कि जब तक राज्यपाल बोस अपने पद पर रहेंगे, वह राजभवन नहीं जाएंगी. बोस ने हाल ही में यह भी कहा कि वह मुख्यमंत्री के साथ मौखिक टकराव में शामिल नहीं होंगे. क्योंकि इससे राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच कार्य संबंधों में पूर्ण रूप से टूटन का संकेत मिलता है.

बता दें कि संवैधानिक प्रावधान के अनुसार राज्यपाल विधायकों को शपथ दिलाते हैं. लेकिन परंपरागत रूप से राज्यपाल विधायकों को शपथ दिलाने के लिए स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को नियुक्त करते हैं.

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